महानताके लिये पद जरूरी नहीं
रूसी क्रान्तिके जनक लेनिन उन दिनों पेरिसमें रूसी क्रान्तिके लिये प्रयासरत थे। दो दिनोंतक भूखे रहनेके बाद लेनिन पेरिसके एक रेस्तराँमें पहुँचे। वहाँ उन्होंने खाना तो खा लिया, पर बिल चुकानेके लिये पैसे नहीं थे। वे खाना परोसनेवाले बैरेसे बोले-‘मैं रूसी नागरिक लेनिन हूँ। राजनीतिक कारणोंसे मुझे रूससे निकाल दिया गया है। आपके देश पेरिसमें मैं जीवन कर रहा हूँ। मेरे पास धनका अभाव है। आज आप मेरे भोजनका बिल चुका दो। किसी दिन मैं तुम्हें यह राशि वापस कर दूंगा।’ बैरेने खुशी-खुशी बिलकी राशि अपनी जेब से अदा कर दी।
कई सालों बाद रूसको क्रान्ति सफल रही और लेनिन रूसके शासक बने। उन्होंने उपहारों एवं धन्यवादपत्रके साथ बेरके पास धन भिजवाया। बैरेने सन्देश वाहकसे कहा – ‘महान् लेनिनसे कहना कि उस दिन मैंने उन्हें अपने देशका अतिथि समझकर भोजन कराया था। उस राशिको उधारके रूपमें मैंने अपनी डायरीमें दर्ज नहीं किया है।’ सन्देशवाहकके बहुत कहनेपर भी उस बैरेने उससे पैसे नहीं लिये। साथ ही साबित किया कि महानता दिखानेके लिये बड़े पदकी जरूरत नहीं होती।
position is not necessary for greatness
Lenin, the father of the Russian Revolution, was striving for the Russian Revolution in Paris in those days. After starving for two days, Lenin reached a restaurant in Paris. There he ate food, but had no money to pay the bill. The waiter who served the food said – ‘I am Lenin, a Russian citizen. I have been expelled from Russia for political reasons. I am living in your country Paris. I am short of money. Pay my food bill today. Some day I will return this amount to you.’ The baron happily paid the bill amount from his own pocket.
After many years the Russian Revolution was successful and Lenin became the ruler of Russia. He sent money to Berke along with gifts and a letter of thanks. Barane said to the messenger – ‘Tell great Lenin that on that day I fed him considering him as a guest of my country. I have not recorded that amount as loan in my diary. That barre did not take money from the messenger even after saying a lot. Also proved that big medals are not needed to show greatness.