शिवाजी, तू फरिश्ता है, फरिश्ता !
शिवाजी महाराज एक दिन रास्ता देख रहे थे अपने सेनापतिका । वह आया तो उसके हाथमें कुरान शरीफ थी और बगलमें थी एक डोली । बोला ‘छत्रपति ! आज मुगल सेना दूरतक खदेड़ दी गयी। बेचारा बहलोल खाँ भाग गया जान बचाकर । उसकी बीवी अपनी सुन्दरताके लिये प्रसिद्ध है। उसीको हम पकड़ लाये हैं आपकी सेवाके लिये और यह है कुरान।’
छत्रपतिने कुरान शरीफको लेकर चूमा। फिर डोलीके पास आकर बहलोलकी बेगमको बाहर आनेको कहा। उसे देखकर शिवाजी बोले-‘सचमुच तू बड़ी ही सुन्दरी है। काश! मैं तेरे पेटसे पैदा हुआ होता तो मैं भी कुछ सुन्दरता पा जाता।’
फिर दूसरे अधिकारीको बुलाकर कहा-‘आप इस बेगमको और कुरान शरीफको पूरे आदर और सम्मानके साथ बहलोल खाँको सौंप आइये।’
उसके चले जानेपर शिवाजी अपने सेनापतिपर बुरी तरह बिगड़ पड़े- ‘आप इतने दिनसे मेरे साथ हैं और आप मुझे पहचान पाये! यह कौन बहादुरी है कि दूसरोंकी बहू-बेटियोंकी इज्जत लूटी जाय ? उनके धर्मग्रन्थोंकी होली जलायी जाय ? ऐसा करना तो घोर कायरता है, नामर्दी है। वीरोंको ऐसी चीजें कभी शोभा देती हैं ?’
बहलोल खाँने बेगमको आदरसे वापस आते देखा और कुरान शरीफकी इज्जत होती देखी तो वह पानी पानी हो गया।
उसने प्रार्थना की शिवाजीसे मिलनेकी। नियत समयपर देखा, शिवाजी मशाल लिये अँधेरेमें बहलोलका इन्तजार कर रहे हैं।
आते ही बहलोल ‘फरिश्ता’ कहकर लिपट गया।शिवाजीसे। बोला- ‘शिवाजी! तू फरिश्ता है, फरिश्ता।’
फिर वह शिवाजीके पैरोंपर गिरने लगा – ‘ए फरिश्ते, माफ कर दे मुझे। बेगुनाहोंका खून है मेर हाथपर। मुझे दुनियामें रहनेका हक नहीं। सिर्फ तेरे कदम चूमनेको रुका था।’
कटारीसे उसने आत्महत्या करनी चाही। शिवाजीने उसे पकड़कर गले लगा लिया और उसकी कटारी छीनकर दूर फेंक दी।
Shivaji, you are an angel, an angel!
One day Shivaji Maharaj was looking for the way for his commander. When he came, he had Quran Sharif in his hand and a doli was beside him. Said ‘Chhatrapati! Today the Mughal army was chased far away. Poor Bahlol Khan ran away after saving his life. His wife is famous for her beauty. We have got hold of that only for your service and this is the Quran.
Chhatrapati kissed the Quran Sharif. Then coming near the doli asked Bahlolki Begum to come out. Seeing her, Shivaji said – ‘Truly you are very beautiful. If only! Had I been born from your womb, I too would have attained some beauty.’
Then called another officer and said – ‘You hand over this Begum and Quran Sharif to Bahlol Khan with full respect and honor.’
On his departure, Shivaji got angry with his commander- ‘You have been with me for so many days and you have recognized me! Who is brave enough to rob the respect of other’s daughter-in-law? Should the bonfire of their scriptures be lit? To do so is sheer cowardice, impotent. Do such things ever suit the heroes?’
Bahlol Khane saw Begum coming back with respect and respect for Quran Sharif, he became watery.
He prayed to meet Shivaji. Saw at the appointed time, Shivaji waiting for Bahalol in the dark with a torch.
As soon as he came, Bahlol hugged Shivaji by saying ‘angel’. Said – ‘Shivaji! You are an angel, an angel.’
Then he started falling at Shivaji’s feet – ‘O angel, forgive me. I have the blood of innocents on my hands. I have no right to live in this world. I only stopped to kiss your feet.’
He wanted to commit suicide with a dagger. Shivaji caught hold of him and hugged him and snatched his dagger and threw it away.