मानव-जीवन एक शून्य- बिन्दुके सदृश है। तबतक उसका कुछ भी मूल्य नहीं, जबतक उसके आगे त्याग एवं वैराग्यका कोई अङ्क न लगे। भोग और भोजनमें तथा वसन और भवनमें विमुग्ध रहनेवाले मानव जीवनमें भी कभी इतना चमत्कारपूर्ण परावर्त होता है कि वह अपने शून्य होते जीवनके आगे वैराग्यका अङ्क लगाकर मर्त्यसे अमृत हो जाता है।
विदेह देशकी राजधानी मिथिलाके राजा नमि भव भोगोंमें अत्यन्त आसक्त रहते थे। भोगके अतिरेकमेंसे दाह ज्वरका वह भयंकर कालकूट फूट निकला, जो रात-दिन नमिके प्रिय देहको सालता रहता। नमिका जीवन-सुख जीवन- भारमें परिणत हो गया— सर्वत्र दुख और दर्दकी दुनिया ।
वैद्यराजने वामन चन्दनके लेपका आदेश दिया। चन्दन घिसनेका और लेप करनेका काम राजरानियोंने अपने हाथमें ही रखा-नमिके प्रति रानियोंके मनमें कितना गहरा अनुराग था।चन्दन घिसते समय चूड़ियोंके सम्मिलनसे समुत्थित कोलाहल भी जब नमिको सह्य न हो सका, तब रानियोंने सौभाग्यसंसूचक एक-एक चूड़ी रखकर अपना काम चालू रखा। अब काम होते भी कोलाहल नहीं था, वातावरणमें शान्ति थी ।
नमिने पूछा- क्या चन्दन नहीं घिसा जा रहा है ? उत्तर मिला-घिसा तो जा रहा है, परंतु हर रानीके हाथमें एक-एक चूड़ी होनेसे संघर्षणजन्य शब्द नहीं हो पा रहा है।
नमिकी अन्तश्चेतना जागी। राजा नमि हृदयके अन्तस्तलमें उतरकर सोचने लगा-एकत्वमें ही वास्तविक सुखका अधिष्ठान है। एकत्व-भावनाकी, असङ्गत्व विचारणाकी पराकाष्ठामेंसे वैराग्य आविर्भूत हुआ, जिसको पाकर नमि एक पलभर भी राजप्रासादोंमें न रह सके। आत्म-साधनाके महा-पथपर चल पड़े।
भोगका सम्राट् योगका परिव्राट् बनकर आत्म भावमें भावित होकर अमर बन गया।
Human life is like a zero- point. It has no value unless it is preceded by a degree of renunciation and renunciation. Even in the human life, which is absorbed in pleasure and food and in clothing and building, there is sometimes such a miraculous reflection that he becomes immortal from mortality by putting the mark of renunciation before his empty life.
Nami, the king of Mithila, the capital of the country of Videha, was very attached to the pleasures of life. From the excess of pleasure emerged the terrible blackness of burning fever, which kept salting Nami’s beloved body day and night. Namika’s life-happiness turned into life- burden—a world of suffering and pain everywhere.
Vaidyaraja ordered the ointment of Vamana sandalwood. The queens kept the work of rubbing and smearing sandalwood in their hands. How deep the queens were in love with Nami. When Nami could not bear the noise caused by the addition of bangles while rubbing sandalwood, the queens continued their work by placing one bangle. Now there was no noise even though the work was going on, the atmosphere was peaceful.
Namine asked, “Isn’t the sandalwood being worn?” The answer is getting mixed up, but with each queen having a bangle in her hand, there is no word of struggle.
Namiki’s consciousness woke up. King Nami went down into the depths of his heart and began to think: Unity is the abode of true happiness. From the pinnacle of the feeling of oneness, of the thought of non-attachment, detachment emerged, which Nami could not stay in the royal palaces for a moment. He set out on the great path of self-realization.
The emperor of pleasure became the parivrata of yoga and became immortal.