एक संत एक बार अपने एक अनुयायीके समीप बैठे थे। अचानक एक दुष्ट मनुष्य वहाँ आया और वह उस व्यक्तिको दुर्वचन कहने लगा, जिसके समीप वे संत साहब बैठे थे। उस सत्पुरुषने कुछ देर तो उसके कठोर वचन सहे; किंतु अन्तमें उसे भी क्रोध आ गया और वह भी उत्तर देने लगा। यह देखकर संत उठ खड़े हुए। वह व्यक्ति बोला- ‘जबतक यह दुष्ट मुझे गालियाँदे रहा था तबतक तो आप बैठे रहे और जब मैं उत्तर दे रहा हूँ तो आप उठकर क्यों जा रहे हैं?’
संत बोले—‘जबतक तुम मौन थे तबतक तो देवता तुम्हारी ओरसे उत्तर देते थे; किंतु जब तुम बोलने लगे तो तुम्हारे भीतर देवताओंके बदले क्रोध आ बैठा । क्रोध तो असुर है और असुरोंका साथ छोड़ ही देना चाहिये, इसलिये मैं जा रहा हूँ।’
Once a saint was sitting near one of his followers. Suddenly a wicked man came there and started abusing the person near whom the saint was sitting. That good man tolerated his harsh words for some time; But in the end he also got angry and he also started answering. Seeing this, the saints stood up. The person said- ‘You kept sitting till this rascal was abusing me and why are you getting up and leaving when I am answering?’
The saint said-‘ As long as you were silent, the gods used to answer on your behalf; But when you started speaking, you got angry against the gods. Anger is a demon and the company of demons must be abandoned, that’s why I am leaving.’