सबसे पहले कर्तव्य

monk sitting buddhist

सबसे पहले कर्तव्य

एक बार बुद्ध किसी गाँवमें अपने एक किसान भक्त यहाँ गये। शामको किसानने उनके प्रवचनका आयोजन किया। बुद्धका प्रवचन सुननेके लिये गाँवके सभी लोग उपस्थित थे। लेकिन वह भक्त कहीं दिखायी नहीं दे रहा था। गाँवके लोगोंमें कानाफूसी होने लगी कि कैसा भक्त है कि प्रवचनका आयोजन करके स्वयं गायब हो गया ? प्रवचन खत्म होनेके बाद सब लोग घर चले गये। रातमें किसान लौटा। बुद्धने पूछा- ‘कहाँ चले गये थे ? गाँवके सभी लोग तुम्हें पूछ रहे थे।’
किसानने कहा- ‘दरअसल प्रवचनकी सभी व्यवस्था हो गयी थी, पर तभी मेरा बैल बीमार हो गया। पहले तो मैंने घरेलू उपचार करके उसे ठीक करनेकी कोशिश की, लेकिन जब उसकी तबीयत अधिक खराब होने लगी तो पशु चिकित्सकके पास ले जाना पड़ा। अगर नहीं ले जाता तो वह नहीं बचता। इसीलिये मैं आपके प्रवचनके समय उपस्थित नहीं रह सका।’
अगले दिन सुबह जब गाँववाले पुनः बुद्धके पास आये तो उन्होंने किसानकी शिकायत करते हुए कहा- ‘वह तो आपका भक्त होनेका दिखावा करता है प्रवचनका आयोजनकर स्वयं ही गायब हो जाता है।’
बुद्धने उन्हें पूरी घटना सुनायी और फिर समझाया कि प्रवचन सुननेकी जगह कर्मको महत्त्व देकर उसने यह सिद्ध कर दिया कि मेरी शिक्षाको उसने ठीक ढंगसे समझा है। उसे अब मेरे प्रवचनकी आवश्यकता नहीं है। मैं यही तो समझाता हूँ कि अपने विवेक और बुद्धिसे सोचो कि कौन-सा काम पहले किया जाना चाहिये और कौन-सा बादमें यदि किसान बीमार बैल छोड़कर मेरे प्रवचन सुननेको प्राथमिकता देता तो दवाके बगैर बैलके प्राण निकल जाते। इसके बाद तो मेरा प्रवचन देना ही व्यर्थ हो जाता। मेरे प्रवचनका सार यही है कि सब कुछ त्यागकर प्राणीमात्रकी रक्षा करो। [श्रीमती अनीताजी कुमावत ]

duty first
Once Buddha visited one of his farmer devotees in a village. The farmer has arranged for his lectures in the evening. All the people of the village were present to listen to Buddha’s discourse. But that devotee was nowhere to be seen. The people of the village started whispering that what kind of devotee is he that he himself disappeared after organizing a discourse? After the discourse was over, everyone went home. The farmer returned at night. Buddha asked – ‘Where did you go? Everyone in the village was asking you.
The farmer said- ‘Actually all the arrangements for the discourse were done, but then my bull got sick. At first I tried to cure him by home remedies, but when his health started getting worse, I had to take him to the vet. If not to be brought, he wouldn’t survive. That’s why I could not be present during your discourse.’
The next morning, when the villagers came to the Buddha again, they complained about the farmer and said- ‘He pretends to be your devotee and disappears on his own after organizing a discourse.’
Buddha told them the whole incident and then explained that by giving importance to work instead of listening to sermons, he proved that he had understood my teaching properly. He does not need my discourse now. All I explain is that think with your discretion and intelligence that which work should be done first and which later. If the farmer gave priority to listening to my sermons after leaving the sick bull, the bull would have died without medicine. After that my discourse would have become futile. The essence of my discourse is that by giving up everything, protect only the living beings. [Mrs. Anitaji Kumawat ]

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