भावनापूर्ण दान
महाराज कुशलने जयतीर्थका पुनरुद्धार कार्य शुरू करवाया। नगरके धनिकोंने उसमें काफी दान देकर स्वेच्छासे सहयोग दिया। नगरकी एक मजदूरिनने, जिसके पास उस समय केवल आठ पैसे थे, सब-के सब दानमें दे दिये। जब दाताओंके नामका स्मृतिस्तम्भ तीर्थके मुख्य द्वारपर लगाया गया तो सभीने उस मजदूरिनका नाम सबसे ऊपरकी पंक्तिमें पढ़कर आश्चर्य प्रकट किया। कई क्षुद्रमना लोगोंके आपत्ति प्रकट करनेपर महाराज कुशलने बताया कि ‘अन्य सभी दाताओंने तो अपनी सम्पत्तिका एक अंश ही दान किया था, लेकिन उस मजदूरिनने तो अपनी समस्त कमाई ही दानमें दे दी थी। इसलिये उसका नाम सबसे ऊपर है।’
दान और त्याग आदिकी महत्ता उसके प्रति भावनापर निर्भर करती है, भौतिक मूल्यपर नहीं। जहाँ उक्त मजदूरिनकी-सी भावना होती है, वहाँ ही यज्ञीय कृत्य पूरे हुए समझने चाहिये।
emotional donation
Maharaj Kushal started the restoration work of Jayateertha. The rich people of the city voluntarily cooperated in it by donating a lot. A laborer of the city, who had only eight paise at that time, gave it all to charity. When the obelisk with the names of the donors was put up at the main gate of the shrine, everyone was surprised to read the name of the laborer in the top row. On the objections of many petty people, Maharaj Kushal told that ‘all the other donors had donated only a part of their property, but that laborer had donated all her earnings. That’s why his name is above all.’
The importance of charity and sacrifice etc. depends on the feeling towards it, not on the material value. Where there is a feeling like that of a labourer, only there the Yagya rituals should be understood to have been completed.