एक समयकी बात है। महात्मा ईसा अपने शिष्यों से घिरे हुए एक स्थानपर विश्राम कर रहे थे। कुछ देर पहले उपदेश देकर कहीं बाहरसे आये हुए थे। कुछ शिष्ट महिलाएँ उनके दर्शनके लिये आ पहुँचीं। शिष्योंने उनको महात्मा ईसाके पास जानेसे रोक दिया। उनकी गोदमें भोले-भाले नन्हें बच्चे थे। “उन्हें मेरे पास आने दो ये बच्चे स्मरण दिलाते हैं कि ईश्वरके प्रेमराज्यमें आनेके लिये इन्हींके समान सीधा-सादा और भोला-भाला बन जाना चाहिये। येभगवत्प्रेमकी निर्मल मूर्ति हैं।’ महात्मा ईसाने बच्चोंको गोदमें ले लिया और अपने स्नेहामृतसे उन्हें धन्य करने लगे।
‘परमात्मा प्रेम हैं। उनके दिव्य राज्यमें-भक्ति साम्राज्यमें प्रवेश करनेका साधन प्रेम केवल प्रेम है। बच्चेके समान सीधे-सादे निष्कपट हृदयसे भगवत्प्रेमकी आराधना करनी चाहिये।’ महात्मा ईसाने शिष्योंको भगवत्प्रेमका रहस्य समझाया।
-रा0 श्री0
Once upon a time. Mahatma Isa was resting in a place surrounded by his disciples. Some time ago, he had come from outside after preaching. Some decent women came to see him. The disciples stopped him from going to Mahatma Jesus. There were innocent little children in his lap. “Let them come to me. These children remind me that to enter the kingdom of God’s love, one must become as simple and innocent as them. They are pure idols of God’s love.” Mahatma Jesus took the children in his lap and started blessing them with his snehamrit.
‘God is love. Love is the only means to enter His divine kingdom – the kingdom of devotion. One should worship God’s love with a simple and sincere heart like a child.’ Mahatma Jesus explained the secret of God’s love to the disciples.
-Ra0 Mr.0