सन् 1897 की बात है, लोकमान्य तिलक दाजी साहेब खरेके बँगलेपर उतरे। रातके 9 ॥ बजे एक यूरोपियन पुलिस सुपरिंटेंडेंट आया और उसने तिलकको बाहर बुलाकर 124 धाराके अन्तर्गत वारंट दिखाया। उसे पाँच मिनट ठहरनेको कहकर तिलक भीतर आये और दाजी साहेबके साथ उस धारापर चर्चा की तथा दाजी साहेबसे कहा- ‘आप मजिस्ट्रेटके बँगलेपरजाकर जमानतके लिये प्रार्थना-पत्र दीजिये और उसका निर्णय जेलमें आकर बताइये ।’
तिलक दस बजेके करीब पुलिसके साथ जेल गये। 10 ॥ बजे जेलमें पहुँचते ही वे निश्चिन्त होकर बिस्तरपर सो गये। तत्काल उन्हें गाढ निद्रा आ गयी 11 ॥ बजे दाजी साहेब आये। तब तिलक सो रहे थे। उन्होंने दो बार आवाज लगायी, तब जाकर वे जगे।
-गो0 न0 बै
It is a matter of year 1897, when Lokmanya Tilak landed at Dajisaheb Khare’s bungalow. 9 at night A European Superintendent of Police came and called Tilak out and showed him the warrant under section 124. Asking him to stay for five minutes, Tilak came inside and discussed the clause with Dajisaheb and said to Dajisaheb- ‘You go to the magistrate’s bungalow and give an application for bail and tell his decision in jail.’
Tilak went to jail with the police around ten o’clock. 10 ॥ As soon as he reached the jail at 12:00, he slept on the bed feeling relaxed. Immediately he fell into a deep sleep 11 ॥ Daji Saheb came at o’clock. Then Tilak was sleeping. He called twice, then he woke up.
-go no bae