द्वारकाके पास पिंडारकक्षेत्रमें स्वभावतः घूमते हुए कुछ ऋषि आ गये थे। उनमें थे विश्वामित्र, असित, कण्व, दुर्वासा, भृगु, अङ्गिरा, कश्यप, वामदेव, अत्रि, वसिष्ठ तथा नारदजी- जैसे त्रिभुवनवन्दित महर्षि एवं देवर्षि। वे महापुरुष परस्पर भगवच्चर्चा करने तथा तत्त्वविचार करनेके अतिरिक्त दूसरा कार्य जानते ही नहीं थे।
यदुवंशके राजकुमार भी द्वारकासे निकले थे घूमने-खेलने। वे सब युवक थे, स्वच्छन्द थे, बलवान् थे। उनके साथ कोई भी वयोवृद्ध नहीं था। युवावस्था, राजकुल, शरीरबल और धनबल और उसपर इस समय पूरी स्वच्छन्दता प्राप्त थी। ऋषियोंको देखकर उन यादव-कुमारोंके मनमें परिहास करनेकी सूझी।
जाम्बवती नन्दन साम्बको सबने साड़ी पहनायी। उनके पेटपर कुछ वस्त्र बाँध दिया। उन्हें साथ लेकर सब ऋषियोंके समीप गये। साम्बने तो घूँघट निकालकर मुख छिपा रखा था, दूसरोंने कृत्रिम नम्रतासे प्रणाम करके पूछा—’महर्षिगण! यह सुन्दरी गर्भवती है और जानना चाहती है कि उसके गर्भसे क्या उत्पन्न होगा। लेकिन लज्जाके मारे स्वयं पूछ नहीं पाती। आपलोग तो सर्वज्ञ हैं, भविष्यदर्शी हैं, इसे बता दें। यह पुत्रचाहती है, क्या उत्पन्न होगा इसके गर्भसे ?’ महर्षियोंकी सर्वज्ञता और शक्तिका यह परिहास था। दुर्वासाजी क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने कहा-‘मूर्खो ! अपने पूरे कुलका नाश करनेवाला मूसल उत्पन्न करेगी यह ।’ ऋषियोंने दुर्वासाका अनुमोदन कर दिया। भयभीत यादव – कुमार घबराकर वहाँसे लौटे। साम्बके पेटपर बँधा वस्त्र खोला तो उसमेंसे एक लोहेका मूसल निकल पड़ा।
अब कोई उपाय तो था नहीं, यादव कुमार वह मूसल लिये राजसभामें आये सब घटना राजा उग्रसेनको | बताकर मूसल सामने रख दिया। महाराजकी आज्ञासे मूसलको कूटकर चूर्ण बना दिया गया। वह सब चूर्ण और कूटनेसे बचा छोटा लौहखण्ड समुद्रमें फेंक दिया गया।
महर्षियोंका शाप मिथ्या कैसे हो सकता था। लौहचूर्ण लहरोंसे बहकर किनारे लगा और एरका नामक घासके रूपमें उग गया। लोहेका बचा टुकड़ा एक मछलीने निगल लिया। वह मछली मछुओंके जालमें पड़ी और एक व्याधको बेची गयी। व्याधने मछलीके पेटसे निकले लोहेके टुकड़ेसे बाणकी नोक बनायी। इसी जरा नामक व्याधका वह बाण श्रीकृष्णचन्द्रकेचरणमें लगा और यादव – वीर जब समुद्र-तटपर परस्पर युद्ध करने लगे मदोन्मत्त होकर, तब शस्त्र समाप्त हो जानेपर एरका घास उखाड़कर परस्पर आघातकरते हुए उसकी चोटसे समाप्त हो गये। इस प्रकार एक विचारहीन परिहासके कारण पूरा यदुवंश हो गया।
Some sages had come naturally wandering in the Pindarakakshetra near Dwarka. Among them were Vishvamitra, Asita, Kanva, Durvasa, Bhrigu, Angira, Kashyapa, Vamdeva, Atri, Vasishta and Naradaji- such as the Maharishis and Devarshis worshiped in the three worlds. Those great men knew no other work than to discuss the Lord with each other and to think about the Tattva.
The princes of the Yadu dynasty also went out from Dwarka to visit and play. They were all young, free-spirited, strong. There was no elderly person with them. Youth, royalty, physical strength and wealth and on top of that at this time he had complete freedom. Seeing the sages, the Yadava-princes thought of making fun of them.
Jambavati Nandan Samba was dressed in sari by all. He tied some clothes on his stomach. He took them with him and went to all the sages. Sambha had removed his veil and hid his face, while the others bowed with artificial humility and asked, ‘Maharshis! This beautiful woman is pregnant and wants to know what will come of her pregnancy. But she can’t ask herself because she’s shy. You are omniscient, you are a seer, tell it. She wants a son, what will come from her womb?’ This was a mockery of the omniscience and power of the Maharishis. Durvasaji became angry. He said, ‘Fools! It will produce a pestilence that will destroy its entire clan. The sages approved of Durvasa. Bhayabhit Yadav: Kumar returned from there in a panic. When he opened the cloth tied to Samba’s stomach, an iron pestle came out of it.
Now there was no remedy, Yadav Kumar he came to the royal assembly with the pestle all the incident King Ugrasena He put the pestle in front of him. By the order of the Maharaja, the pestle was crushed into powder. All that crushed and crushed little piece of iron was thrown into the sea.
How could the curse of the Maharishis be false? Iron powder was swept ashore by the waves and grew into a grass called eraca. The remaining piece of iron was swallowed by a fish. That fish fell into a fishermen’s net and was sold to a hunter. The wolf made an arrowhead from a piece of iron that came out of the fish’s stomach. That arrow of the same hunter named Zara hit the feet of Sri Krishna Chandra and when the Yadavas – heroes began to fight each other on the sea-shore intoxicated, then when the weapons were exhausted, they uprooted the eraka grass and struck each other and died of his injury. Thus the whole Yadu dynasty was destroyed because of one thoughtless joke.