सादगी
विश्वके सबसे बड़े कार-कारखानेके मालिक और अमेरिकाके अरबपती उद्यमी हेनरी फोर्ड अत्यन्त सादगी पसन्द थे। धन
सम्पन्नताकी अतिके बावजूद उन्हें अहंकार छू भी नहीं पाया था। वे अपने कारखाने के छोटे-से-छोटे कर्मचारीसे भी स्नेहपूर्वक मिलते थे। अपने घरके नौकरोंसे भी उनका व्यवहार बहुत मधुर था सभीसे सहजतासे मिलना, सभीकी समस्याएँ सुनना, सभीका पक्ष समझना उनके स्वभावका अभिन्न अंग था।
एक दिन किसी भारतीय उद्योगपतिको फोर्डसे किसी व्यापारिक सौदेके विषयमें बात करनी थी। उसने पहलेसे समय लिया और निश्चित दिन फोर्डके घर पहुँच गया। जब वह फोर्डसे मिला तो देखा कि वे अपने भोजनके बर्तन साफ कर रहे थे। भारतीय उद्योगपति यह देखकर हैरान रह गया। उसने सकुचाते हुए पूछा कि ‘आपके पास तो कई नौकर होंगे, फिर जूठे बर्तनोंकी सफाई स्वयं क्यों कर रहे हैं? आपको ऐसा करते देखकर मुझे बहुत संकोच हो रहा है और शर्म महसूस हो रही है।’
भारतीय उद्योगपतिके ऐसा कहनेपर फोर्डने उसकी ओर देखते हुए मुसकराकर कहा-‘देखो भाई! हर व्यक्ति प्रत्येक सुबह अपने नित्यकर्मोंके लिये अपना सफाईकर्मी बनता है, यह एक ऐसा सच है, जो पूरी दुनियामें देखा जा सकता है; फिर अपने जूठे बर्तन साफ करनेमें क्या बुराई है, और न ही इसमें शर्म महसूस करनेकी बात है।’ अरबपति उद्यमी हेनरीकी यह सादगी और बड़प्पन देखकर भारतीय उद्योगपतिका दिल उनके प्रति आदर भावसे भर गया। अपना काम स्वयं करनेसे परनिर्भरता नहीं रहती। यही आत्मनिर्भरता दृढ़ आत्मविश्वासको जन्म देती है, जो जीवनमें सफलता पानेका आधार बनती है।
Simplicity
America’s billionaire entrepreneur Henry Ford, the owner of the world’s largest car factory, loved simplicity. Funds
Despite the extreme of prosperity, the ego could not even touch him. He used to meet even the smallest worker of his factory with affection. His behavior was very sweet even with the servants of his house, meeting everyone easily, listening to everyone’s problems, understanding everyone’s side was an integral part of his nature.
One day an Indian industrialist had to talk to Ford about a business deal. He took an appointment in advance and reached Ford’s house on the fixed day. When he met Ford, he found that he was cleaning his dinner utensils. The Indian industrialist was surprised to see this. He hesitantly asked, ‘You must have many servants, then why are the liars cleaning the utensils themselves? I am very hesitant and ashamed to see you doing this.
When the Indian industrialist said this, Ford looked at him and said with a smile – ‘Look brother! Every person becomes his own cleaner every morning for his daily chores, this is a fact which can be seen all over the world; Then what is the harm in cleaning your false utensils, nor is there anything to be ashamed of.’ Seeing this simplicity and nobility of billionaire entrepreneur Henry, Indian industrialist’s heart was filled with respect for him. There is no dependence on doing one’s own work. This self-reliance gives rise to strong self-confidence, which becomes the basis of success in life.