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अस्पृश्य
बुद्ध शिष्यसहित सभामें विराजमान थे, उसी समय बाहर खड़ा कोई व्यक्ति बोरसे बोला “क मुझे सभामें बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गयी बुद्ध नेत्र बन्द करके ध्यानमग्न रहे। उस व्यक्ति फिर चिल्लाकर यही प्रस्त किया। एक शिष्याने पू ‘भगवन्! बाहर खड़े उस शिष्यको अन्दर जानेकी अनुमति दीजिये।’ बुद्ध नेत्र खोलकर बोले—’नहीं ! वह अस्पृश्य है।’ ‘अस्पृश्य!’ शिष्यगण आश्चर्यमें डूब गये। बुद्ध उनके मनका भाव समझते हुए बोले— ‘ही! वह अस्पृश्य है।’ शिष्योंने पूछा- ‘वह अस्पृश्य क्यों? कैसे? भगवन्! आपके धर्ममें तो जात-पाँतका भेद नहीं है।’ बुद्ध बोले- ‘आज यह क्रोधमें आया है, क्रोधसे जीवनकी एकता भंग होती है। क्रोधी मानसिक हिंसा करता है। किसी भी कारणसे क्रोध करनेवाला अस्पृश्य है। उसे कुछ समयतक पृथक्, एकान्तमें खड़ा रहना चाहिये। पश्चात्तापकी अग्निमें तपकर यह स्मरण करता रहे कि अहिंसा महान् कर्तव्य है, परम धर्म है।’ शिष्य समझ गये कि अस्पृश्यता क्या है ? अस्पृश्य कौन है ?
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untouchable
Buddha was sitting in the assembly with his disciples, at the same time someone standing outside said to Borsa, “Why was I not allowed to sit in the assembly? Buddha closed his eyes and meditated.” Allow me to go inside.’ Buddha opened his eyes and said – ‘No! He is untouchable.’ ‘The Untouchables!’ The disciples were astonished and the Buddha, understanding his mind, said, “Yes! He is untouchable.” The disciples asked – “Why that untouchable? How? God! There is no difference between caste and creed in your religion.” Buddha said- “Today he has come in anger, anger disturbs the unity of life. An angry person commits mental violence. One who gets angry due to any reason is untouchable. He should stand in isolation for some time. After burning in the fire of repentance, remember that non-violence It is a great duty, it is the ultimate religion. The disciples understood what is untouchability, who is the untouchable?