एक भजनानन्दी साधु घूमते हुए आये और एक मन्दिरमें ठहर गये। मन्दिरके पुजारीने उनसे कहा *आप यहाँ जितने भी दिन रुकना चाहें, प्रसन्नतापूर्वक रहें; किंतु यहाँ भोजनकी कोई व्यवस्था नहीं है। भोजनकी कोई व्यवस्था आप कर लें।’ साधु बोले- ‘तुम्हारे पड़ोसीने कहा है कि मुझे दो रोटियाँ प्रतिदिन वह दे दिया करेगा।’ पुजारी- ‘तब ठीक है। तब तो आप निश्चिन्त रहें,वह सच्चा आदमी है।’ साधुने यह सुनकर आसन उठाया- ‘भाई! यह स्थान मेरे रहनेयोग्य नहीं है और न तुम देव – सेवा करनेयोग्य हो भगवान् विश्वम्भर हैं, अपने जनोंके भरण-पोषणकी उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी है; किंतु उन सर्व-समर्थ भगवान्पर तो तुम्हें मनुष्य- जितना भी विश्वास नहीं ।’
– सु0 सिं0
A Bhajananandi monk came while wandering and stayed in a temple. The priest of the temple said to him * Stay here happily for as long as you want; But there is no arrangement for food here. You make some arrangement for food. The monk said – ‘Your neighbor has said that he will give me two breads every day.’ Priest – ‘It’s okay then. Then you can rest assured, he is a true man.’ Hearing this, the monk raised his seat – ‘Brother! This place is not fit for me to live in and neither are you fit to serve God. But you don’t have as much faith in that all-powerful God as a human being.’