श्री आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता हाईकोर्टके जज और विश्वविद्यालयके वाइस चान्सलर थे। उनके मित्र उन्हें विलायत जानेकी सलाह देते थे और स्वयं उनकी भी इच्छा विलायत जानेकी थी; किंतु उनकी माताने समुद्रयात्रा करनेकी अनुमति नहीं दी, इसलिये यह विचार उन्होंने सर्वथा त्याग दिया।
लार्ड कर्जन भारतके गवर्नर-जनरल होकर आये। उन्होंने एक दिन श्री आशुतोष मुखर्जीको विलायत जानेकी सम्मति दी। श्रीमुखर्जीने कहा-‘मेरी माताकी इच्छा नहीं है।’लार्ड कर्जनने तनिक सत्ताके स्वरमें कहा- ‘जाकर अपनी मातासे कहिये कि भारतके गवर्नर-जनरल आपको विलायत जानेकी आज्ञा करते हैं । ‘
श्रीमुखर्जी जैसे मातृभक्त स्वाभिमानीका उत्तर था ‘यदि ऐसी बात है तो मैं माननीय गवर्नर-जनरलसे कहूँगा कि आशुतोष मुखर्जी अपनी माताकी आज्ञा भङ्ग करके दूसरे किसीकी आज्ञाका पालन नहीं कर सकेगा, फिर भले वह भारतका गवर्नर-जनरल हो या उससे भी बड़ा कोई अधिकारी हो ।’
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Mr. Ashutosh Mukherjee was a judge of the Calcutta High Court and Vice Chancellor of the University. His friends used to advise him to go abroad and he himself also had a desire to go abroad; But his mother did not allow him to go on a sea voyage, so he abandoned this idea altogether.
Lord Curzon came as the Governor-General of India. One day he gave consent to Mr. Ashutosh Mukherjee to go abroad. Shrimukherjee said – ‘My mother does not wish.’ Lord Curzon said in a tone of authority – ‘Go and tell your mother that the Governor-General of India has ordered you to go abroad. ,
The answer of a self-respecting motherly devotee like Shri Mukherjee was ‘If it is so, then I will tell the Honorable Governor-General that Ashutosh Mukherjee will not be able to disobey his mother’s orders and obey anyone else, even if he is the Governor-General of India or any higher officer. ‘
– Su 0 Sin 0