‘भगवती स्वर्णलेखा और गोदावरी सरिताके मध्यदेश – कलिङ्गकी प्रजाने विद्रोह कर दिया है, महाराज! यदि यह विद्रोह पूर्णरूपसे दबा नहीं दिया जायगा तो भरतखण्ड अराजकता और अशान्तिका शिकार हो जायगा।’ प्रधानामात्य राधागुप्तने मगधपति अशोकका ध्यान आकृष्ट किया; राजसभामें सन्नाटा छा गया।
‘पाटलिपुत्रका राजतन्त्र साम्राज्यकी प्रत्येक घटनासे परिचित है। इस विद्रोहको दबानेका उपाय है युद्ध । पूर्वीय महासागरकी उत्तुङ्ग तरङ्गे हमारी रणभेरीसे प्रकम्पित हो जायँगी। सागरका नीला पानी शत्रुके खूनसे लाल हो जायगा।’ अशोककी भृकुटी तन गयी। सम्राट्ने आक्रमणका आदेश दिया। उन्होंने सैन्य संचालनका भार स्वयं सम्हाला । कलिङ्ग प्रान्तमें युद्धका बाजा बज उठा।’विजयश्रीने आपका चरण स्पर्श किया है, सम्राट् । कलिङ्ग मगधके अधिकारमें आ गया ।’ महामन्त्री राधागुप्सने सम्राट्के शिविरमें प्रवेश करके अभिवादन किया।
‘विजयश्री- जिसने मृत्युकी कोखसे जन्म लिया, जिसने सैकड़ों घरों में हिंसाकी विकराल ज्वाला प्रस्फुटित कर असंख्य रमणियोंका सिन्दूर धो डाला, अगणित शिशुओं और वृद्धोंकी जीविका छीन ली, जिसने हरे भरे खेतोंमें शवोंका पहाड़ खड़ा कर दिया है- मुझे नहीं चाहिये; यह पराजय है। राधागुस शस्त्र-अस्वसे प्राप्त विजय अधर्मकी देन हैं।’
सम्राट् शिविरसे बाहर निकलकर रणभूमिमें टहलने लगे। चारों ओर विचित्र -सी सड़न थी; कौए, चील्ह और गिद्ध मँडरा रहे थे। वायुके बहने में विचित्र उदासी थी।’कलिङ्गमें शान्ति स्थापना आपकी देन है; मगधका ऐश्वर्य बढ़ गया ।’ महामन्त्रीने सम्राट्का उद्वेग शान्त करना चाहा। ‘कलिङ्गका युद्ध महापाप हैं और मैं इसका
प्रायश्चित्त करूँगा धर्मविजयसे । आत्मविजय ही सुख, शान्ति और लौकिक तथा अलौकिक समृद्धिकी सिद्धि भूमि है।’ सम्राट्के नेत्रोंसे ज्योतिकी निर्झरिणी प्रवाहित हो उठी। उन्होंने मगध लौटनेका आदेश दिया।
सारे साम्राज्यमें शान्तिकी मन्दाकिनी बह चली।अशोकके धर्मघोषसे सारा का सारा भरतखण्ड धन्य हो उठा। विहार यात्राओं ( राग-रङ्ग तथा आमोद प्रमोद) – ने धर्मयात्राओंका रूप ग्रहण कर लिया। शस्त्र-अस्त्रके स्थानपर देशके कोने-कोनेमें शिलालेख उत्कीर्ण हुए। सम्राट्की प्रेममयी मङ्गलकारिणी वृत्तिने घोषणा की – ‘सारी प्रजा मेरी संतान है। मैं उसकी लौकिक-पारलौकिक सुख-शान्तिकी कामना करता हूँ ।’ -कलिङ्ग-युद्धने धर्म-विजयका पथ प्रशस्त किया।
– रा0 श्री0
‘ Bhagwati Swarnlekha and Godavari River’s middle country – the people of Kalinga have revolted, Maharaj! If this rebellion is not suppressed completely, then Bharatkhand will become a victim of anarchy and unrest.’ Prime Minister Radhagupt attracted the attention of Magadhapati Ashoka; There was silence in the Raj Sabha.
‘Pataliputra’s monarchy is familiar with every incident of the empire. War is the way to suppress this rebellion. The lofty waves of the Eastern Ocean will be shaken by our battle cry. The blue water of the ocean will turn red with the blood of the enemy.’ Ashoka’s forehead was raised. The emperor ordered an attack. He himself handled the burden of military operations. The battle cry rang out in the Kalinga province. ‘Vijayashree has touched your feet, Emperor. Kalinga came under the control of Magadha. Mahamantri Radhagupas greeted the Emperor after entering the camp.
‘Vijayshree – who took birth from the womb of death, who washed away the vermilion of innumerable beauties by erupting violence in hundreds of houses, took away the livelihood of innumerable babies and old people, who has made a mountain of dead bodies stand in the green fields – I do not want; This is defeat. The victory achieved by Radhagus weapons is the gift of unrighteousness.
The emperor came out of the camp and started walking in the battlefield. There was strange decay all around; Crows, eagles and vultures were hovering. There was a strange sadness in the blowing of the wind. ‘Establishment of peace in Kalinga is your gift; Magadha’s wealth increased. The General Secretary tried to pacify the emperor’s anger. ‘Kalinga war is a great sin and I am its
I will make atonement with Dharmavijay. Self-victory is the only land of happiness, peace and worldly and supernatural prosperity.’ Streams of light flowed from the eyes of the emperor. He ordered to return to Magadha.
Mandakini of peace flowed in the entire empire. The whole of Bharatkhand was blessed by Ashoka’s sermon. Vihar Yatras (Raag-Rang and Amod Pramod) – took the form of Dharma Yatras. Inscriptions were engraved in every corner of the country in place of weapons. Emperor’s love and auspicious attitude declared – ‘All the subjects are my children. I wish him worldly and worldly happiness and peace.’ The Kalinga war paved the way for victory over religion.
– Ra0 Mr.0