नशा ही तो— कामका नशा चढ़ गया था सेठ धनदत्तके पुत्रके सिरपर एक नट आया उनके यहाँ और उसने अपनी कलाका प्रदर्शन किया; किंतु उसकी कन्याको देखकर सेठका पुत्र इलायचीकुमार हठ कर बैठा-‘मैं इसीसे विवाह करूँगा। यह मुझे न मिली तो आत्मघात कर लूँगा।’
सेठ धनदत्त क्या करते, इलायची उनका एकमात्र पुत्र था, उसकी हठके आगे उन्हें झुकना पड़ा। उन्होंने नटसे प्रस्ताव किया कि वह अपनी पुत्री दे दे; किंतु नट लाल हो उठा -‘ धनके मदमें मतवाले मत बनो! हम कंगाल सही; किंतु हमारा भी कुलगौरव है; किसीका सम्मान पैसोंसे नहीं खरीदा जा सकता।’
नगर-नगर घूमनेवाले नटके द्वारा यह अपमान सहकर भी सेठ धनदत्त शान्त रह गये। उन्हें अपने पुत्रके प्राणोंकी चिन्ता थी । अन्तमें सेठकी अनुनय विनयपर नट प्रसन्न हुआ। उसने कहा- ‘आपका पुत्र मेरे साथ बारह वर्ष रहकर मेरी कलाका अभ्यास करे। जिस दिन किसी नरेशद्वारा वह पुरस्कृत होगा, उसी दिन मेरी पुत्रीका उससे विवाह हो जायगा ।’
इलायचीकुमारने नटकी बात स्वीकार कर ली। माता-पिता, स्वजन तथा अपने वैभवको त्यागकर वह नटके साथ निकल पड़ा। बारह वर्षतक उसने नटकी | कलाका अभ्यास किया। कठोर श्रम करके वह उसविद्यामें प्रवीण हो गया।
नटके साथ इलायचीकुमार वाराणसी गया और वहाँके नरेश उसकी कला देखकर प्रसन्न हो गये। नरेशने कहा – ‘नटकुमार ! हम तुम्हारी कलापर प्रसन्न हैं, माँगो क्या माँगते हो ?’
उस समय इलायची एक बहुत ऊँचे स्तम्भके सिरेपर बैठा था। उसकी दृष्टि दूर एक भवनके द्वारपर थी। वह देख रहा था कि वहाँ उस द्वारपर एक मुनि खड़े हैं और भवनसे एक अत्यन्त सुन्दरी नवविवाहिता | युवती उन्हें भिक्षा देने आयी है। युवती पर्याप्त अधिक भिक्षा ले आयी है; किंतु मुनि थोड़ी सामग्री लेकर कह रहे हैं-‘ बस करो, बहिन !’ इसी समय वाराणसीनरेशका सम्बोधन उसके कानमें पड़ा – ‘नटकुमार !’ इलायची चौंक पड़ा-‘कौन नटकुमार ? एक नगर सेठका और मेरा इतना पतन !’ पुत्र
इलायचीकुमारका नशा उतर गया। उसने स्तम्भसे उतरकर सीधे उन मुनिके चरणोंमें उपस्थित होकर मस्तक झुकाया। मुनिसे उसने दीक्षा ग्रहण की। नटकुमारीके मोहजालसे ही नहीं, मायारूपी नटिनीके मोहजालसे भी वह छूट गया। नाना योनियोंमें जन्म लेकर अनेक रूपसे नटकी भाँति नाचते रहनेकी परम्परासे छुटकारा पा लिया उसने l
– सु0 सिं0
He was intoxicated with work; a nut came on the head of Seth Dhandatta’s son and he displayed his art; But seeing her daughter, Seth’s son Elaichi Kumar sat stubbornly – ‘ I will marry her only. If I don’t get it, I will commit suicide.’
What would Seth Dhandutt do, Elaichi was his only son, he had to bow down to his stubbornness. He proposed to Natsa that he should give his daughter; But the nut turned red – ‘ Don’t be a drunkard because of money! We paupers right; But we also have total pride; One’s respect cannot be bought with money.
Seth Dhandutt remained calm even after suffering this humiliation by the drama that traveled from city to city. He was worried about his son’s life. At last, Nut was pleased with Seth’s persuasion and humility. He said- ‘Your son should stay with me for twelve years and practice my art. The day he will be rewarded by a king, on the same day my daughter will get married to him.’
Elaichikumar accepted the drama. Leaving parents, relatives and his glory, he left with Nat. He danced for twelve years. Art practice. By working hard, he became proficient in that science.
Elaichikumar went to Varanasi with Nat and the king there was pleased to see his art. Naresh said – ‘Natkumar! We are happy with your art, what do you ask for?’
At that time Elaichi was sitting on the top of a very tall pillar. His eyes were on the door of a building far away. He was seeing that there was a sage standing at that gate and a very beautiful newly married woman from the building. The girl has come to give him alms. The girl has brought enough alms; But Muni is taking some material and saying – ‘Stop it, sister!’ At the same time Varanasinresh’s address came in his ear – ‘Natkumar!’ Cardamom was shocked – ‘Who is Natkumar? Sethka of one city and so much of my downfall! Son
Elaichikumar got over the intoxication. He got down from the pillar and bowed his head directly at the feet of that sage. He took initiation from Muni. He was freed not only from the illusion of Natkumari, but also from the illusion of illusionist Natini. By taking birth in many births, she got rid of the tradition of dancing like a dancer in many forms.