मांसभक्षणसे प्रेतयोनि

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मांसभक्षणसे प्रेतयोनि

महात्मा श्रीसन्तदास बाबाजीने कहा था कि कई वर्षों पहलेकी बात है, कलकत्ता हाईकोर्टके एक सुप्रसिद्ध न्यायाधीश परलोकवासी हो गये थे। कहा जाता है कि वे जब जीवित थे, तब उनके भोजनमें प्रतिदिन दो मुर्गियोंकी आवश्यकता होती थी। उक्त न्यायाधीश महोदय मरकर प्रेत हुए और असह्य नरकयातना भोगने लगे। उस प्रेतात्माने सहायता पानेके लिये बहुत-से आत्मीय स्वजनोंके सामने प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिये, परंतु प्रेतात्माको देखते ही सब लोगोंके डर जानेके कारण वह किसीको अपनी दुःखगाथा नहीं सुना सके। अन्तमें एक धर्मप्राण सज्जन व्यक्तिके सामने प्रकट होकर उन्होंने अपनी क्लेश-कहानी सुनायी। प्रेतात्माने कहा- ‘मैं बड़े भारी क्लेशमें हूँ, मुझे मानो सैकड़ों बिच्छू एक साथ काट रहे हों- ऐसी असह्य यातना मैं भोग रहा हूँ। दारुण प्यासके कारण मेरे प्राण छटपटाते रहते हैं, पर मुझको पीनेके
लिये जल नहीं दिया जाता, खून दिया जाता है। मेरे नामपर यदि कोई गयाजी में पिण्ड दे दे तो मेरी यातना मिट सकती है।’ उक्त सज्जन पुरुषने परलोकगत उन न्यायाधीश महोदयके नामसे गयाजी में पिण्ड दिलवाये, बादमें जात हुआ कि उनकी यातना शान्त हो गयी।
यद्यपि वे अपने क्षेत्रमें न्यायमूर्ति एवं धर्माधीशके नामसे प्रसिद्ध थे तथापि यहाँका प्रतिष्ठित व्यक्ति होनेके कारण कोई परलोकमें नरक-भोगसे बच जायगा, ऐसा मानना सर्वथा भ्रम है। समस्त न्यायके अधिष्ठाता, सर्वान्तर्यामी, सर्वनियन्ता परमात्माका विधान ही सर्वोपरि है। उसकी दृष्टिमें बड़े-छोटे, धनी-निर्धन, पण्डित-मूर्ख आदि सभीके प्रति कोई भेदभाव नहीं है और उन प्राणियोंकि कर्मोंका परिणाम सर्वथा शुद्ध न्यायके अनुसार होता है तथा प्राणीका भावी जन्म या नरक-स्वर्गादिकी व्यवस्था भी उनके स्वकर्मक आधारपर ही होती है।

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Mahatma Srisantdas Babaji had said that many years ago, a well-known judge of the Calcutta High Court had passed away. It is said that when he was alive, his food required two chickens daily. The said judge became a ghost after death and started suffering intolerable hell. To get help, that ghost appeared in front of many close relatives and gave darshan to them, but he could not narrate his sad story to anyone because everyone got scared on seeing the ghost. In the end, appearing in front of a pious gentleman, he narrated his tribulation story. The demon said- ‘I am in great distress, as if hundreds of scorpions are biting me at once- I am suffering such unbearable torture. My soul is throbbing because of great thirst, but I am not able to drink
Water is not given for it, blood is given. If someone donates a pind in my name in Gayaji, then my torture can end.’ The aforesaid gentleman in the afterlife, in the name of that judge, got bodies delivered to Gayaji, later it came to be known that his torment had subsided.
Although he was famous in his area by the name of Justice and Dharmadhish, yet it is an illusion to believe that someone will be saved from hell in the next world because of being a respected person here. The presiding deity of all justice, the all-conquering, all-controlling God’s law is paramount. In his view, there is no discrimination between big-small, rich-poor, scholar-fool etc. and the result of the deeds of those creatures is absolutely according to pure justice and the future birth of the creature or the system of hell-heaven also happens on the basis of their self-karma.

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