वाणीसे व्यक्तित्वका बोध
मुरलीधरके स्वभावसे उसके घरके लोग तंग आ चुके थे। यह हर बात इतने कठोर तरीकेसे बोलता कि लोगोंको चुभ जाती। इससे उसका व्यापार भी प्रभावित हो रहा था। ग्राहक उसकी दुकानपर जानेसे कतराने लगे। दिन-पर-दिन बिक्री कम होती गयी। मुरलीधर चिन्तित हो गया।
एक बार शहरमें एक बाबाजी आये। मुरलीधरने सोचा, क्यों न बाबाजीसे आशीर्वाद लूँ और व्यापारमें सुधारका कोई उपाय पूछूं। यह सोचकर वह सुबह सुबह बाबाजीके डेरेपर जा पहुँचा। वहाँ पहलेसे ही और भी बहुत-से लोग थे। मुरलीधरको वहाँ खड़े खड़े काफी वक्त लग गया, दुकान खोलनेमें देर हो रही थी। मुरलीधरने खीझकर वहाँ उपस्थित लोगों से झगड़ा कर लिया।
बाबाजीने उसकी ओर देखा, उन्हें उसका स्वभाव समझते देर न लगी। बोले-‘आओ बेटा! पहले तुम आ जाओ। इनकी बात बादमें सुन लूँगा।’ मुरलीधरने बाबाजीके चरण छूते हुए उन्हें अपनी समस्या बतायी। बाबाजी बोले- ‘पहले तुम एक कहानी सुनो।’ बाबाजीने उसे कहानी सुनायी.
एक धनी सेठ कई नौकरोंके साथ यात्रापर निकला। रास्ते में उसे प्यास लगी। उसने अपने एक नौकरको पानीकी तलाशमें भेजा। नौकर कुछ दूर गया। वहाँ एक कुआँ था। एक अन्धा व्यक्ति, लोगोंको जल पिला रहा था। नौकरने अकड़कर उससे कहा- ‘अबे ओ अन्धे ! एक लोटा जल मुझे भी दे दे।’ अन्धेने भी उसी अकड़से कहा—’जा भाग यहाँसे, मैं तुझ जैसे मूर्ख बेवकूफ इंसानको पानी नहीं देता।’ नौकरको गुस्सा तो आया, लेकिन वह अन्धेका बिगाड़ भी क्या सकता था ! उसनेवापस लौटकर सेठको सारी बात बतायी।
तब सेठ स्वयं अन्येके पास जल लेनेके लिये गया। उसने मधुर वाणीमें कहा-‘बाबा! मुझे बहुत प्यास लगी है। कृपया एक लोटा जल दें।’ अन्धेने कहा ‘बैठिये सेठजी, अभी जल पिलाता हूँ।’ जल पीनेके बाद सेठने अन्धेसे पूछा-‘बाबा। आपकी तो आँखें ही नहीं हैं, फिर भी आप कैसे जान गये कि मैं सेठ हूँ ?’ तब अन्धेने कहा- ‘सेठजी! मनुष्यकी वाणी ही उसके व्यक्तित्वका बोध कराती है।’
यह कहानी सुनाकर बाबाजीने कहा-‘तुम भी उस नौकरकी तरह कठोर वाणीमें बोलते हो। सभी मीठी सुनना चाहते हैं। मीठी वाणीसे बिगड़े हुए काम बन जाते हैं, जबकि कटु वाणीसे बना बनाया काम बिगड़ जाता है। जैसे तुम्हारा जमा जमाया व्यापार खत्म हो गया।’ मुरलीधरको अपनी गलतीका अहसास हो गया। उसी दिनसे उसने गुस्सा करना छोड़ दिया।
ऐसी बानी बोलिये मनका आपा खोय।
औरनको सीतल करे आपहुँ सीतल होय ॥
speech recognition
The people of his house were fed up with Muralidhar’s nature. He used to say everything in such a harsh manner that people used to get stung. His business was also being affected by this. Customers started shying away from visiting his shop. Day by day the sales kept decreasing. Muralidhar got worried.
Once a Babaji came to the city. Murlidhar thought, why not take blessings from Babaji and ask him some solution to improve the business. Thinking of this, he reached Babaji’s camp early in the morning. There were already many other people there. It took Murlidhar a long time to stand there, it was getting late to open the shop. Murlidhar got angry and quarreled with the people present there.
Babaji looked at him, it didn’t take him long to understand his nature. Said – ‘Come son! you come first I will listen to them later.’ Touching Babaji’s feet, Muralidhar told him his problem. Babaji said – ‘First you listen to a story.’ Babaji told him the story.
A rich Seth went on a journey with many servants. He felt thirsty on the way. He sent one of his servants in search of water. The servant went some distance. There was a well. A blind man was giving water to the people. The servant stubbornly said to him – ‘ Hey blind! Give me a glass of water too.’ The blind man also said with the same arrogance – ‘Go away from here, I do not give water to a fool like you.’ The servant got angry, but what could he do to spoil the blind! He returned and told the whole thing to Seth.
Then Seth himself went to others to get water. He said in a sweet voice – ‘ Baba! I’m very thirsty. Please give me a glass of water.’ The blind said, ‘Sit down Sethji, I will give you water now.’ After drinking water, Seth asked the blind man – ‘ Baba. You don’t even have eyes, yet how did you know that I am Seth?’ Then the blind said – ‘Sethji! It is the speech of a man that gives an understanding of his personality.
After narrating this story, Babaji said – ‘You also speak in harsh language like that servant. Everyone wants to hear sweet. Bad words are made by sweet speech, while the work done by bitter words gets spoiled. Like your accumulated business is over. Muralidhar realized his mistake. From that day he stopped getting angry.
Say such a habit, lose yourself.
Make others cool, you will cool yourself.