हाँ, मेरे पास 40 अशर्फियाँ हैं !
बात है कोई 900 साल पुरानी ।
ईरान देशमें एक स्थान है जीलान। सैयद अब्दुल कादिर नामका एक बच्चा वहाँ जनमा। बड़ा हुआ । बचपनमें उसके पिता मर गये। माँने ही उसे पाला ।
कादिरकी बड़ी इच्छा थी कि वह खूब पढ़े-लिखे और विद्वान् बने। पर जीलान ठहरी छोटी जगह। ऊँची पढ़ाईका वहाँ कोई प्रबन्ध नहीं था।
माँसे उसने कहा- ‘अम्माजान, मैं बगदाद जाऊँगा पढ़ने।’
माँका कलेजा भर आया। बहुत रोका उसने, पर बेटा जिद पकड़ गया। उस जमानेमें न मोटरें थीं, न रेलें। ऊँटोंपर, खच्चरोंपर माल लादकर सिर्फ व्यापारी लोग एक जगहसे दूसरी जगह जाते थे।
ऐसा ही व्यापारियोंका एक दल जब बगदाद जाने लगा तो कादिरकी माँने अपने बेटेको उनके साथ कर दिया। जाते समय माँने बेटेकी फतुहीमें भीतर चालीस अशर्फियाँ टाँक दीं और कहा-‘बेटा! तेरे अब्बा इतनी ही दौलत छोड़ गये हैं। बड़ी सावधानीसे इसे खर्च करना। हाँ, झूठ कभी मत बोलना। अल्लाह बड़ा दयालु है। वह तुझे बचायेगा।’
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रास्तेमें डाकुओंने इस काफिलेपर हमला कर दिया। सारा माल-खजाना उन्होंने लूट लिया। ऊपरसे पीटा भी।
कादिरके कपड़े फटे-पुराने थे। डाकुओंने सोचा, इसके पास क्या रखा है। डाकू लूटकर जा ही रहे थे कि एक डाकूने कादिरसे भी पूछ दिया- ‘क्यों बे लड़के, तेरे पास भी कुछ है मालमत्ता ?”
कादिर बोला- ‘जी हाँ! मेरे पास चालीस अशर्फियाँ हैं।’
डाकू समझे कि लड़का मजाक कर रहा है। उन्होंने डाँटा – ‘बदमाश! हमसे मजाक करता है ?’ जी नहीं’ ऐसा कहकर कादिरने अपनी फतुही उतारकर उसमेंसे 40 अशर्फियाँ निकालकर डाकुओंके सामने रख दीं।
डाकू तो हैरान रह गये।
सरदारने पूछा- ‘क्यों बच्चे, तू तो जानता था कि हम लोग डाकू हैं। हम तेरी अशर्फियाँ छीन लेंगे। फिर तूने ऐसा क्यों किया ?’
कादिर बोला-‘बात यह है सरदार साहब! मुझे मेरी अम्मीजानने कहा है कि ‘बेटा, चाहे जैसी मुसीबत पड़े, झूठ कभी मत बोलना।’ तब इन अशर्फियोंको र बचानेके लिये क्या मैं झूठ बोलता ? अल्लाह बड़ा मेहरबान है। अशर्फियाँ न रहनेपर भी वह मुझपर रहम करेगा।’
डाकू सन्न रह गये। धन्य है ऐसा बच्चा! इतना सीधा, और अच्छा बच्चा! ऐसा नेक और ईमानदार बच्चा! एक यह है और एक हम हैं, जो बेगुनाहोंको सताते हैं! छिः छिः !’
डाकुओं को अपने कारनामोंपर बड़ा पछतावा हुआ। उन्होंने कादिरकी सारी अशर्फियाँ तो उसे लौटा ही दीं, व्यापारियोंका भी सारा माल लौटा दिया।
इतना ही नहीं, उन्होंने सदाके लिये डाका डालना भी छोड़ दिया ! ईमानदारीका कैसा अनोखा असर!
Yes, I have 40 Ashrafis!
It is a matter of 900 years old.
Jilan is a place in the country of Iran. A child named Syed Abdul Qadir was born there. Grown up His father died in his childhood. Only the mother brought him up.
Kadir had a great desire that he should become well educated and scholar. But Jilan remained a small place. There was no arrangement for higher studies there.
He said to his mother- ‘Ammajan, I will go to Baghdad to study.’
Mother’s heart was full. He stopped a lot, but the son got stubborn. In those days there were neither motors nor trains. Only traders used to go from one place to another by loading goods on camels and mules.
When a group of such merchants started going to Baghdad, Qadir’s mother made her son accompany them. While leaving, the mother stitched forty ashrifias inside the son’s fetuhi and said – ‘Son! Your father has left only this much wealth. Spend it very carefully. Yes, never lie. Allah is very merciful. He will save you.’
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On the way, dacoits attacked this convoy. They looted all the wealth. Beaten from above too.
Kadir’s clothes were tattered. The bandits thought, what is kept near it. The dacoits were leaving after looting that one of the dacoits also asked Kadir – ‘Why boy, do you also have some property?’
Kadir said – ‘ Yes! I have forty Asharfis.’
The robber thought that the boy was joking. He scolded – ‘Scoundrel! Does he make fun of us?’ Saying this, Kadir took off his fatuhi and took out 40 Asharfis from it and placed them in front of the dacoits.
The robbers were surprised.
Sardar asked – ‘Why child, you knew that we are dacoits. We will take away your Asharfis. Then why did you do this?’
Qadir said – ‘The matter is Sardar Sahib! My mother-in-law has told me that ‘Son, no matter what trouble you face, never lie.’ Then would I have lied to save these Ashrafis? Allah is very kind. He will have mercy on me even if there are no Asharfis.’
The robbers were stunned. Blessed is such a child! So straight, and nice kid! Such a good and honest child! One is this and one is us, who persecute innocents! Chhh chhh!’
The dacoits felt great remorse for their exploits. Not only did he return all the Asharfis of Kadir to him, he also returned all the goods of the traders.
Not only this, he also gave up dacoity forever! What a wonderful effect of honesty!