अद्भुत डाकू था वह फकीरोंके वेशमें रहता, हाथमें उसके तसबीह रहती। वह डाका डालता, पर अधिकांश धन गरीबोंमें बाँट देता। इतना ही नहीं, प्रत्येकशुक्रवारको वह नमाज पढ़ता था। उसके दलके प्रत्येक सदस्यको शुक्रवारकी नमाज आवश्यक थी। आज्ञोल्लङ्घन करनेवाला दलसे पृथक् कर दिया जाता था ।एक बार व्यापारियोंका समुदाय उसी पथसे जा रहा था, जिधर डाकुओंका यह दल रहता था। डाकुओंने लूटना शुरू कर दिया। एक व्यापारी अपने धनको लेकर छिपानेके लिये भागता हुआ उस तंबूमें जा पहुँचा, जहाँ डाकुओंका सरदार फकीरके वेशमें तसबीह लिये बैठा था व्यापारीने कहा- ‘मैं बड़ी विपत्तिमें पड़ गया हूँ। सारा धन डाकू लूट रहे हैं। कृपापूर्वक आप इसे अपने पास रख लें। बादमें मैं इसे ले जाऊँगा ।’ सरदारने कहा- ‘उस कोनेमें रख दो।’ धनकी थैली रखकर व्यापारी चला गया।
कुछ देर बाद जब डाकू समस्त व्यापारियोंको लूटकर चले गये, तब वह व्यापारी अपना धन लेनेके लिये उस तंबूमें आया। किंतु तंबूके भीतर उसने जो कुछ देखा, उससे उसका शरीर काँपने लगा। आकृतिपर स्वेद-कण झलकने लगे। वहाँ डाकू लूटके धनको बाँट रहे थे। व्यापारी डाकूके ही पास धन रखनेकी अपनी भूलपर मन-ही-मन पछता रहा था। वह धीरेसे वहाँसे जाने लगा। सरदारने पुकारा-‘यहाँ कैसे आया था ?’ व्यापारीने काँपते हुए कहा- ‘मैं अपनी धरोहरवापस लेने आया था, पर मुझसे भूल हो गयी, मैं अभी यहाँसे जा रहा हूँ।’
‘रुको।’ सरदारने उत्तरमें कहा- ‘अपनी धरोहर लेते जाओ। वह उसी जगह पड़ी है।’
व्यापारीको विश्वास नहीं हो रहा था। उसने तिरछे नेत्रोंसे देखा, सचमुच उसकी थैली जहाँ-की-तहाँ रखी हुई थी। उसने थैली उठा ली और प्रसन्नतापूर्वक चला गया।
‘यह क्या किया आपने ?’ डाकुओंने सरदारसे पूछा- ‘इस प्रकार हाथका माल वापस करना कहाँतक उचित है ?’
‘तुमलोग ठीक कहते हो ।’ सरदारने हँसते हुए शान्त-स्वरमें उत्तर दिया। ‘किंतु वह आदमी मुझे ईश्वरका भक्त, फकीर, सच्चा और ईमानदार समझकर धन मेरे पास रख गया था। ईश्वरको प्रसन्न करनेवाले इस वेशके प्रति जो सद्भावना है उसकी रक्षा करना मेरा परम कर्तव्य
है। ईश्वर करे मेरा यह स्वभाव आजीवन बना रहे।’ डाकुओं का यही सरदार आगे चलकर फजल अयाज नामक प्रसिद्ध महात्मा हुआ। – शि0 दु0
He was a wonderful dacoit, he used to live in the guise of fakirs, he used to have tasbeeh in his hand. He would commit robbery, but would distribute most of the money among the poor. Not only this, he used to offer Namaz every Friday. Every member of his party was required to offer Friday prayers. The violator was separated from the party. Once a community of traders was passing through the same path where this band of dacoits lived. The dacoits started looting. A businessman ran to hide his money and reached the tent where the leader of the bandits was sitting in the guise of a fakir carrying a tasbeeh. The businessman said – ‘ I am in great trouble. The dacoits are looting all the money. Please keep it with you. I’ll take it later.’ Sardar said- ‘Put it in that corner.’ The merchant left after keeping the money bag.
After some time, when the dacoits left after robbing all the traders, then that trader came to that tent to take his money. But what he saw inside the tent made his body tremble. Sweat-particles started appearing on the figure. There the dacoits were distributing the looted money. The merchant was repenting in his heart for his mistake of keeping the money with the robber. He slowly started leaving from there. Sardar called – ‘How did you come here?’ The merchant said tremblingly- ‘I had come to take back my heritage, but I made a mistake, I am leaving now.’
‘Wait.’ Sardar said in reply – ‘Take your heritage. She is lying there.’
The merchant could not believe it. He looked with slanting eyes, really his bag was kept everywhere. He picked up the bag and went away happily.
‘What did you do?’ The dacoits asked Sardar – ‘To what extent is it appropriate to return the goods in hand like this?’
‘You are right.’ Sardar smiled and replied in a calm voice. ‘ But that man had kept the money with me thinking that I was a devotee of God, a fakir, truthful and honest. It is my supreme duty to protect the goodwill I have towards this God-pleasing dress.
Is. May God keep this nature of mine for life. This leader of the dacoits later became a famous Mahatma named Fazal Ayaz. – Shi0 Du0