बरगद का पेड़

परोपकारी व्यक्ति सदा दूसरों के प्रति करुणा का भाव रखते हैं और उनकी ख़ुशी और उनके सुख में अपना सुख समझते हैं……!

महापुरुषों के जीवन में भी अनेक उतार चढ़ाव आते है, किंतु वे दूसरों को सुख देने की अपनी प्रवृत्ति नही छोड़ते……!

जीव तो जीव पेड़ पौधे भी अपनी देने की प्रवृत्ति नही छोड़ते, उन्हे दूसरों को देने में ही आनंद आता है……!
पढ़िए…..!
किसी गांव में बरगद का एक पेड़ बहुत वर्षों से खड़ा था…..!

गांव के सभी लोग उसकी छाया में बैठते थे, गांव की महिलाएं त्यौहारों पर उस वृक्ष की पूजा किया करती थीं……!

ऐसे ही समय बीतता गया, और कई वर्षों बाद वृक्ष सूखने लगा, उसकी शाखाएं टूटकर गिरने लगीं और उसकी जड़ें भी अब कमजोर हो चुकी थीं……!
गांववालों ने विचार किया कि अब इस पेड़ को काट दिया जाये और इसकी लकड़ियों से गृहविहीन लोगों के लिए झोपड़ियों का निर्माण किया जाये…..!

गांववालों को आरी-कुल्हाड़ी लाते देख, बरगद के पास खड़ा एक वृक्ष बोला- “दादा” ! आपको इन लोगों की प्रवृत्ति पर जरा भी क्रोध नहीं आता, ये कैसे स्वार्थी लोग हैं……!

जब इन्हें आपकी आवश्यकता थी, तब ये आपकी पूजा किया करते थे, लेकिन आज आपको टूटते हुए देखकर काटने चले हैं……!

बूढ़े बरगद ने जवाब दिया- “नहीं बेटे! मैं तो यह सोचकर बहुत प्रसन्न हूँ कि मरने के बाद भी मैं आज किसी के काम आ सकूंगा…..!

हमें भी अपने जीवन में दूसरो को देते रहने की प्रवृत्ति बनानी चाहिए,भले ही वो किसी भी रूप में हो……!

“राघे-राघे”

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