श्रीराधाजीके हृदयमें चरण कमल

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एक बार भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र अपने सम्पूर्ण 18 परिवार परिकर आदिके साथ सिद्धाश्रम तीर्थमें स्नान करने गये। दैवयोगसे श्रीराधिकाजी भी वहाँ अपनी सखियोंके साथ स्नान करने आयी थीं। बड़े उल्लासके साथ उभय-पक्षके लोगोंका सम्मिलन हुआ। भगवान्की पटरानियोंने स्वयं प्रभुके मुखसे श्रीराधिकाजीकी बड़ी नी महिमा सुन रखी थी। अतएव समय निकालकर वे एकान्तमें श्रीराधिकाजीसे मिलीं। श्रीराधाजीने उनका बड़ा सत्कार किया। बातचीतके प्रसङ्गमें उन्होंने कहा—’बहिनो! चन्द्रमा एक होता है; परंतु चकोर अनेक होते हैं। सूर्य एक होता है, किंतु नेत्र अनेक होते हैं-

चन्द्रो यथैको बहवश्चकोराः

सूर्यो यथैको बहवो दृशः स्युः ।

श्रीकृष्णचन्द्रो भगवांस्तथैव

भक्ता भगिन्यो बहवो वयं च ॥’

उनके वार्तालापका श्रीकृष्णपत्त्रियोंपर बड़ा प्रभाव पड़ा। वे आग्रह करके राधिकाजीको अपने स्थानपर ले आयीं। वहाँ सभीने उनका बड़ा स्वागत किया, भोजनादि भी कराया और अन्तमें श्रीरुक्मिणीजीने स्वयं दूध पिलाया। तत्पश्चात् अनेक प्रकारके शिष्ट-संलाप होनेके बाद श्रीराधाजी अपने स्थानपर लौट आयीं। शयनकेसमय श्रीरुक्मिणीजी नित्य नियमानुसार प्रभुके चरण दाबने बैठीं। चरणतलोंके दर्शन करते ही वे आश्चर्यमें डूब गयीं। उन्होंने देखा भगवान्‌के चरणतलपर तमाम फफोले पड़ रहे हैं। विस्मित होकर उन्होंने सभी सहेलियोंको बुलाया। सभी आश्चर्यसे दंग रह गयीं। भगवान् से पूछनेका किसीको साहस नहीं था । अन्तमें प्रभुने नेत्र खोलकर सबके वहाँ एकत्रित होनेका कारण पूछा। उत्तरमें उन लोगोंने चरणोंके फफोले दिखलाये। पहले तो भगवान्ने टालना चाहा। पर अत्यन्त आग्रह करनेपर उन्होंने कहा-

श्रीराधिकाया हृदयारविन्दे

पादारविन्दं हि विराजते मे।

अद्योष्णदुग्धप्रतिपानतोऽङ्ग्रा

वुच्छालकास्ते मम प्रोच्छलन्ति ॥

अर्थात् श्रीराधाके हृदयमें मेरे चरणकमल दिन-रात विराजमान रहते हैं। तुमने उन्हें बहुत गरम दूध दे दिया। श्रीराधा उसे तुम्हारा दिया हुआ समझकर पी गयीं। दूध उनके हृदयमें गया और इससे मेरे चरणकमलमें फफोले पड़ना स्वाभाविक था ।

प्रभुके वचनसे महिषियोंको बड़ा ही आश्चर्य हुआ। तबसे वे अपने प्रेमको श्रीराधाजीके प्रभु-प्रेमके सामने अत्यन्त तुच्छ मानने लगीं।

-जा0 श0

Once Lord Shrikrishna Chandra along with his entire 18 family members and friends went to Siddhashram pilgrimage to take bath. Coincidentally, Radhikaji also came there to bathe with her friends. People from both sides met with great enthusiasm. The consorts of God had heard the great glory of Shri Radhikaji from the mouth of the Lord himself. Therefore, taking time out, she met Shriradhikaji in solitude. Shriradhaji felicitated him a lot. In the context of the conversation, he said – ‘Sisters! Moon is one; But there are many squares. The sun is one, but the eyes are many.
Chandro Yathaiko Bahvashkora:
Suryo yathaiko bahvo drishah syuah.
Lord Krishnachandro
Devotees, sisters and daughters themselves.
His conversation had a big impact on Shrikrishna’s letters. She insisted and brought Radhikaji to her place. Everyone welcomed him there, provided him with food etc. and in the end Shri Rukmini ji herself fed him milk. After that, after many types of polite conversation, Shriradhaji returned to her place. At the time of sleeping, Shri Rukmini ji sat pressing the feet of the Lord as per the daily rules. As soon as she saw the feet of the feet, she drowned in wonder. He saw all the blisters on the feet of God. Amazed, she called all her friends. Everyone was stunned with surprise. No one had the courage to ask God. At last, the Lord opened his eyes and asked the reason for everyone’s gathering there. In reply, those people showed the blisters on the feet. At first God wanted to avoid it. But on insistence he said-
Shriradhikaya Hridayarvinde
Padarvindam hi virajate me.
adyoshnadugdhapratipanato’ngra
Vuchhalkaaste Mam Prochhlanti ॥
That is, my lotus feet remain in Shriradha’s heart day and night. You gave them very hot milk. Shriradha drank thinking it as your gift. The milk went to his heart and it was natural for my lotus feet to blister.
The sages were very surprised by the words of the Lord. Since then, she started considering her love as very insignificant in front of Shriradhaji’s love for God.
-Ja0 Sh0

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