वह अपने प्राणपर खेल गयी

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इडिथ कवल एक अंग्रेज परिचारिका थी। वह प्रथम महायुद्धके समय घायलोंकी सेवा-शुश्रूषा करनेके लिये बेलजियम गयी हुई थी। वह शत्रु-मित्र सबकी समान रूपसे सेवा करती थी पट्टी बांधते समय इस बातका उसे तनिक भी विचार नहीं रहता था कि वह शत्रु सैनिकका उपचार कर रही है या अपने पक्ष केवीरोंकी सेवा कर रही है।

उसे इस बातसे वृणा अवश्य थी कि जर्मन सैनिक बेलजियमके नागरिकोंको अपने देशके विरुद्ध काम करनेके लिये विवश करें। जर्मन विजेताओंद्वारा नागरिकोंको दास बनाया जाना उसके लिये सर्वथा असहा था। ऐसी स्थितिमें वह संत्रस्त लोगोंको अपने शिविरमें शरण देतीथी और उन्हें हालैंड या फ्रान्स भाग जानेके लिये प्रोत्साहन और सहायता देती थी।

एक दिन जर्मन सैनिकोंने उसको ऐसा करते देख लिया। वह बंदी बना ली गयी। दोनों ओरकी सेनाओंमें हाहाकार मच गया। उसके मृत्यु दण्डकी घोषणा की गयी। अनेक देशोंके राजदूतोंने मानवता और अन्ताराष्ट्रिय नैतिकताके नामपर इस दण्डका विरोध किया; पर जर्मन – न्यायालयने उनके कथनकी उपेक्षा कर दी।

‘मुझे तुमलोग कहाँ ले आये ?’ कवेलने अँधेरी रातमें जर्मन सैनिकसे पूछा। वह निश्चिंत और स्वस्थ थी ।’मृत्युके उपवनमें’– उत्तर था। कवेलने अपने आपको एक रमणीय उपवनमें पाया ।

‘ईश्वर और सत्य साक्षी हैं कि केवल देशभक्ति ही मनुष्यके लिये पर्याप्त नहीं है। देशभक्तिका अर्थ यह नहीं है कि अपने देशकी सम्मान-वृद्धिके लिये दूसरे देशके नागरिकोंको सताया जाय। किसी भी प्राणीके प्रति मेरे मनमें घृणा और कटुताका भाव नहीं है।’ परिचारिका कवेलका इतना कहना था कि शत्रुके पिस्तौलने उसके जीवनका अन्त कर दिया। इडिथ कवेलने पवित्र परिचारिका – सेवावृत्तिके परिणामस्वरूप स्वर्गकी यात्रा की। – रा0 श्री0

Edith Kaval was an English hostess. She had gone to Belgium to take care of the wounded during the First World War. She used to serve everyone, friend or foe equally, while tying the bandage, she did not even think about whether she was treating the enemy soldier or serving the heroes of her side.
He was sure that the German soldiers would force the citizens of Belgium to work against their country. The enslavement of the citizens by the German conquerors was absolutely impossible for him. In such a situation, she used to give shelter to the frightened people in her camp and gave them encouragement and help to run away to Holland or France.
One day German soldiers saw him doing this. She was taken prisoner. There was hue and cry in both the armies. His death sentence was announced. Ambassadors of many countries opposed this punishment in the name of humanity and international morality; But the German court ignored his statement.
‘Where did you guys bring me?’ Kavel asked the German soldier in the dark of the night. She was safe and sound. ‘In the grove of death’ – was the answer. Kavalen found himself in a delightful grove.
‘God and truth bear witness that patriotism alone is not enough for man. Patriotism does not mean that the citizens of other countries should be persecuted for increasing the honor of our country. I have no feelings of hatred and bitterness towards any creature. Nurse Kavel had to say that the enemy’s pistol ended his life. Edith Kwell traveled to heaven as a result of her pious stewardship. – Ra0 Mr.0

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