किसी राज्यमें वहाँका राजकुमार बड़ा लाड़ला था। वह एक दिन रास्तेमें एक लावण्यवती युवतीको देखकर मोहित हो गया। युवती एक सद्गृहस्थ ब्राह्मणकी कन्या थी। पूर्वसंस्कारवश उसको योगका अभ्यास था। इसीसे उसने विवाह नहीं किया था। उसका नाम था योगशीला राजकुमारने अपनी इच्छा अपने पिताको जनायी ! पुत्रमोहग्रस्त राजाने योगशीलाके पितासे कहलवाया कि तुम अपनी पुत्री योगशीलाका विवाह राजकुमारसे कर दो।’ ब्राह्मणने राजाको सेवामें उपस्थित होकर अनेक तरहसे उसे समझाया कि ‘प्रथम तो प्रजाकी प्रत्येक कन्या आपकी कन्याके समान है। इस नाते राजकुमारकी वह बहिन होती है। दूसरे वह ब्राह्मण कन्या है, क्षत्रियके साथ उसका विवाह शास्त्रनिषिद्ध है।’ पर राजाने उसकी एक भी न सुनी। ब्राह्मणको बड़ी चिन्ता हो गयी। वह सोचके मारे सूखने लगा। खाना पीना भी उसका छूट गया। योगशीला बड़ी बुद्धिमती थी, उसने पितासे सारी बातें जानकर कहा कि ‘पिताजी! आप चिन्ता न करें, राजासे कहकर पंद्रह दिनोंका समय मांग लें। मैं अपने धर्मको रक्षा कर लूँगी।’
ब्राह्मणने राजसभामें जाकर राजासे समय माँगलिया। राजकुमारने कहा, ‘’सोलहवें दिन तुम कन्याको यहाँ भेज देना! तब विवाह हो जायगा ।’ ब्राह्मण स्वीकार किया। पंद्रह दिन बीत गये। इस बीचमें योगशीलाने योगकी क्रियाओंसे अपने शरीरको गला डाला। केवल हड्डियोंका ढाँचामात्र रह गया। सारा लावण्य नष्ट हो गया। सोलहवें दिन योगशीला राजमहल में पूर्वनिर्दिष्ट राजकुमारके एकान्त कमरेमें पहुँची। राजकुमार तो उसको देखते ही चीख पड़ा और उसने तत्क्षण उसपरसे दृष्टि हटाकर कहा- ‘तुम कौन हो ?’ योगशीला बोली- ‘राजकुमार मैं वही ब्राह्मणकन्या हूँ, जिसपर तुमने मोहित हो विवाहका प्रस्ताव किया था। मैं अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार तुमसे विवाह करने आयी हूँ। अब देर क्यों करते हो? मनोकामना पूरी करो।’
राजकुमारने कहा- ‘उस दिन तो तुम बड़ी रूपवती थी। तुम्हारे सौन्दर्यकी चाँदनीने मेरा मन मोह लिया था। तुम्हारी वह सुन्दरता कहाँ चली गयी। आज तो तुम चुड़ैल जैसी मालूम होती हो, दूसरी कोई होओगी। मेरे सामनेसे हट जाओ।’
योगशीलाने कहा—’राजकुमार ! मैं वही हूँ, जिसके लिये तुम्हारे पिताने मोहवश अपना राजधर्म त्यागकरतुम्हारे साथ विवाह कर देने को कहा था। मुझमें जो कुछ उस दिन था, वही आज भी है; परंतु मालूम होता है, तुम बड़े ही भोले हो सोचो, उस दिनमें और आजमें मुझमें क्या अन्तर है। केवल मांस, मेद, मज्जा और रक्तमें कुछ कमी हुई है। इसी कारण तुम मुझे सुन्दर नहीं देख पा रहे हो ! यदि तुम्हें मांस, मेद, मज्जा तथारक्तमें ही सुन्दरता दिखायी देती है तो सीधे चले जाओ – कसाईखाने । वहाँ ये चीजें तुम्हें खूब मिलेंगी। तुम्हें लज्जा नहीं आती, जो तुम इन घिनौनी चीजोंपर इतना मोह करते हो ?’
राजकुमार हताश होकर बाहर चला गया। ब्राह्मण कन्या सकुशल अपने घर लौट आयी ।
किसी राज्यमें वहाँका राजकुमार बड़ा लाड़ला था। वह एक दिन रास्तेमें एक लावण्यवती युवतीको देखकर मोहित हो गया। युवती एक सद्गृहस्थ ब्राह्मणकी कन्या थी। पूर्वसंस्कारवश उसको योगका अभ्यास था। इसीसे उसने विवाह नहीं किया था। उसका नाम था योगशीला राजकुमारने अपनी इच्छा अपने पिताको जनायी ! पुत्रमोहग्रस्त राजाने योगशीलाके पितासे कहलवाया कि तुम अपनी पुत्री योगशीलाका विवाह राजकुमारसे कर दो।’ ब्राह्मणने राजाको सेवामें उपस्थित होकर अनेक तरहसे उसे समझाया कि ‘प्रथम तो प्रजाकी प्रत्येक कन्या आपकी कन्याके समान है। इस नाते राजकुमारकी वह बहिन होती है। दूसरे वह ब्राह्मण कन्या है, क्षत्रियके साथ उसका विवाह शास्त्रनिषिद्ध है।’ पर राजाने उसकी एक भी न सुनी। ब्राह्मणको बड़ी चिन्ता हो गयी। वह सोचके मारे सूखने लगा। खाना पीना भी उसका छूट गया। योगशीला बड़ी बुद्धिमती थी, उसने पितासे सारी बातें जानकर कहा कि ‘पिताजी! आप चिन्ता न करें, राजासे कहकर पंद्रह दिनोंका समय मांग लें। मैं अपने धर्मको रक्षा कर लूँगी।’
ब्राह्मणने राजसभामें जाकर राजासे समय माँगलिया। राजकुमारने कहा, ‘’सोलहवें दिन तुम कन्याको यहाँ भेज देना! तब विवाह हो जायगा ।’ ब्राह्मण स्वीकार किया। पंद्रह दिन बीत गये। इस बीचमें योगशीलाने योगकी क्रियाओंसे अपने शरीरको गला डाला। केवल हड्डियोंका ढाँचामात्र रह गया। सारा लावण्य नष्ट हो गया। सोलहवें दिन योगशीला राजमहल में पूर्वनिर्दिष्ट राजकुमारके एकान्त कमरेमें पहुँची। राजकुमार तो उसको देखते ही चीख पड़ा और उसने तत्क्षण उसपरसे दृष्टि हटाकर कहा- ‘तुम कौन हो ?’ योगशीला बोली- ‘राजकुमार मैं वही ब्राह्मणकन्या हूँ, जिसपर तुमने मोहित हो विवाहका प्रस्ताव किया था। मैं अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार तुमसे विवाह करने आयी हूँ। अब देर क्यों करते हो? मनोकामना पूरी करो।’
राजकुमारने कहा- ‘उस दिन तो तुम बड़ी रूपवती थी। तुम्हारे सौन्दर्यकी चाँदनीने मेरा मन मोह लिया था। तुम्हारी वह सुन्दरता कहाँ चली गयी। आज तो तुम चुड़ैल जैसी मालूम होती हो, दूसरी कोई होओगी। मेरे सामनेसे हट जाओ।’
योगशीलाने कहा—’राजकुमार ! मैं वही हूँ, जिसके लिये तुम्हारे पिताने मोहवश अपना राजधर्म त्यागकरतुम्हारे साथ विवाह कर देने को कहा था। मुझमें जो कुछ उस दिन था, वही आज भी है; परंतु मालूम होता है, तुम बड़े ही भोले हो सोचो, उस दिनमें और आजमें मुझमें क्या अन्तर है। केवल मांस, मेद, मज्जा और रक्तमें कुछ कमी हुई है। इसी कारण तुम मुझे सुन्दर नहीं देख पा रहे हो ! यदि तुम्हें मांस, मेद, मज्जा तथारक्तमें ही सुन्दरता दिखायी देती है तो सीधे चले जाओ – कसाईखाने । वहाँ ये चीजें तुम्हें खूब मिलेंगी। तुम्हें लज्जा नहीं आती, जो तुम इन घिनौनी चीजोंपर इतना मोह करते हो ?’
राजकुमार हताश होकर बाहर चला गया। ब्राह्मण कन्या सकुशल अपने घर लौट आयी ।