बाजीराव प्रथम उर्फ बाजीराव बल्लाल पेशवा और निजाम उल मुल्कके बीच सन् 1728 में गोदावरीके किनारे लड़ाई हुई। मराठे जीत गये और मुस्लिम सेनामें अन्नका भारी तोड़ा आ गया। इसी बीच एक मुस्लिम त्योहार आया। निजामने बाजीरावके पास दूत भेजकर अपील की कि सेनामें भोजनको बड़ी कमी आ गयी है, इसलिये अन्न और किरानेकी मदद भेजिये।’
बाजीरावने अपने प्रमुख सहायकों की गुप्त बैठक बुलायी और निजामकी यह अपील उनके समक्ष रखकर निर्णय माँगा। प्रायः सभीने यही सलाह दी कि ‘निजामको कुछ भी न भेजा जाय। इस तरहअनायास शत्रुको भलीभाँति तंग करनेका मतलब सध जायगा।’ पेशवाको यह निर्णय पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा- ‘हम सैनिकोंके लिये यह कदापि उचित नहीं कि शत्रु बीमार, भूखा या सोया हुआ हो तो धोखेमें उसे नष्ट कर डाला जाय। नवाबने जितनी माँग की है, उससे अधिक भेजकर उसका सम्मान किया जाय।’
पेशवाने पाँच हजार बैलोंपर सारी सामग्री रखकर
निजामके पास भिजवा दी। निजाम अत्यन्त प्रभावित हुआ और शीघ्र ही सलाह-मशविरा होकर दोनोंकी भेंट हुई।
-गो0 न0 बै0 (नीतिबोध)
A battle took place on the banks of the Godavari in 1728 between Bajirao I aka Bajirao Ballal Peshwa and Nizam ul Mulk. The Marathas won and the Muslim army suffered a heavy loss of food grains. Meanwhile a Muslim festival came. The Nizam sent a messenger to Bajirao and appealed that there is a great shortage of food in the army, so send food and grocery help.’
Baji Rao called a secret meeting of his chief assistants and sought a decision by placing this appeal of the Nizam in front of them. Almost everyone gave the same advice that nothing should be sent to the Nizam. In this way, the meaning of troubling the enemy without any effort will be achieved. Peshwa did not like this decision. He said- ‘It is never appropriate for us soldiers that if the enemy is sick, hungry or sleeping, then he should be destroyed by deception. He should be honored by sending more than what the Nawab has asked for.
Peshwane placing all the material on five thousand oxen
Sent it to the Nizam. The Nizam was very impressed and soon both of them met after consultation.
– Go 0 no 0 Bai 0 (Nitibodh)