पट्टन-साम्राज्यके महामन्त्री उदयनके पुत्र बाहड़ जैनोंके शत्रुञ्जयतीर्थका पुनरुद्धार करके दिवंगत पिताकी अपूर्ण इच्छा पूरी कर देना चाहते थे। तीर्थोद्धारका कार्य प्रारम्भ हुआ तो जनताके लोगोंने भी मन्त्री महोदयसे प्रार्थना की- ‘आप समर्थ हैं; किंतु हमें भी इसपुण्यकार्यमें भाग लेनेका अवसर प्रदान करें।’ लोगोंकी प्रार्थना स्वीकार हो गयी। जिसकी जितनी शक्ति और श्रद्धा थी, उसने उतना धन दिया। जब तीर्थका उद्धार हो गया और आर्थिक सहायता देनेवालोंकी नामावली घोषित की गयी, तब लक्ष-लक्ष मुद्रा देनेवालेचकित रह गये। सबसे पहला नाम था भीम नामक एक मजदूरका और उसने सहायता दी थी केवल सात पैसेकी।
मन्त्री महोदयने सम्पन्न लोगोंका रोष लक्षित कर लिया। वे बोले – ‘भाइयो! मैंने स्वयं और आप सबने तीर्थके उद्धारमें जो कुछ दिया है, वह अपने धनका एकभाग ही दिया है। लेकिन भीम पता नहीं कितने दिनोंके परिश्रमके बाद सात पैसे बचा पाया था। उसने तो अपना सर्वस्व दान कर दिया है। उसका दान ही सबसे बड़ा दान है, यह निर्णय करनेमें मुझसे भूल तो नहीं हुई ?’ सबने मस्तक झुका रखा था। एक व्यक्ति भी ऐसा नहीं निकला जो इसका विरोध कर सकता। -सु0 सिं0
Bahad, the son of Udayan, the chief minister of the Pattan kingdom, wanted to fulfill the unfulfilled wish of his late father by reviving Shatrunjayatirtha of the Jains. When the work of pilgrimage started, the people also prayed to the minister – ‘You are capable; But give us also an opportunity to participate in this virtuous work. The prayer of the people was accepted. The one who had as much power and faith, he gave that much money. When the pilgrimage was saved and the list of those who gave financial aid was announced, then those who gave lakhs of rupees were astonished. The first name was that of a laborer named Bhima and he had helped only seven paise.
The minister targeted the anger of the rich people. They said – ‘Brothers! Whatever I myself and all of you have given for the salvation of the pilgrimage, I have given only a part of my wealth. But Bhima was able to save seven paise after working hard for many days. He has donated his everything. His donation is the biggest donation, haven’t I made a mistake in deciding this?’ Everyone had bowed their heads. Not even a single person turned out to be able to oppose it. – Su 0 Sin 0