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संत होथी काठियावाड़ के नेकनाम गाँव के मुसलमान थे। बचपन से ही मोरार साहेब की भजन मण्डली में जाते और वहाँ भजन गाया करते थे।
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साधु- संतों की सेवा करने की उनकी टेव थी। यह चाल- ढाल उनके पिता को अच्छी नहीं लगी और वे बड़े दुःखी हुए।
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अपने कुल की रिवाज के अनुसार लड़का तलवार, बंदूक, तमंचा, छुरी और भाला न ले, और तम्बूरा तथा मजीरा लेकर गाने बजाने बैठ जाय-यह ठीक नहीं।
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बाप बेटे को हमेशा दुःख देता रहा। पर सोना आग में तपकर और अधिक चमक उठता है। वैसे ही होथी के ऊपर जितना दुःख बढ़ने लगा, उतना ही अधिक वे भजन करने लगे।
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उनको राम के नाम की सच्ची लगन लगी थी और उनके सामने हिंदू- मुसलमान धर्म का भेद मिट गया था।
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एक दिन मोरार साहेब की भजन मण्डली हरिजनों के निवास स्थान में भजन करने गयी।
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होथी को उसके बाप सिकन्दर ने वहाँ जाने से रोका। फिर भी होथी गया। बड़ी रात को भजन समाप्त हुआ। मण्डली बिखर गयी।
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रास्ते जाते लोग होथो की प्रशंसा कर रहे थे- ‘वाह! कैसा होथी का प्रेम है, कैसी प्रेमभरी मस्ती से होथी ने भजन गाया है?’
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यह प्रशंसा सुनकर होथी के पिता के दिल पर बड़ी चोट लगी और इसकी अपेक्षा उसने अपना मर जाना अच्छा समझा।
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दूसरे दिन जब होथी भजन मण्डली में जाने लगा तब पिता ने अफीम घोल कर पुत्र से कहा- ‘बेटा!अफीम तैयार है; इसे या तो तू पी जा, नहीं तो मैं पी लूँ! पर यह बदनामी मुसलमान की जाति में अब बरदाश्त नहीं होती।’
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भक्त पुत्र ने नम्रता से जवाब दिया- ‘पिता जी! आप क्यों पियेंगे, यह तो मुझे पीना चाहिये।’ यों कहकर उसने हाथ में प्याला ले लिया और अश्रुभरी आँखों से भगवान् से प्रार्थना करने लगा-
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‘प्यारे प्रभु! मैं अफीम से मरूँ तो इसमें मुझे जरा भी गम नहीं! पर इसमें तुम्हारी और तुम्हारी भक्ति की लाज जायगी।
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ऐसे ही समय में तुमने मीरा के विष के प्याले को अमृत बना दिया था। द्रौपदी की लाज जाते समय तुमने चीर बढ़ा दिया था।
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प्रभु! मेरी भक्ति यदि सच्ची हो तो मेरी लाज रखना।’ यों कहकर भक्त होथी अफीम पी गये और कोठरी बंद करके कम्बल ओढ़कर सो गये। बाप ने बाहर से ताला लगा दिया।
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सुनते हैं कि उसी रात को जब हरिजन बस्ती में भजन शुरू हुआ और वहाँ से लौटे हुए श्रोताओं के मुँह से सिकन्दर ने होथी के भजन की प्रशंसा सुनी, तब चकित होकर वह हरिजन बस्ती में गया।
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वहाँ देखता क्या है कि होथी प्रेम मग्न हो भजन गा रहा है। वहाँ से लौटकर उसने कोठरी में होथी को सोये देखा। इससे उसके अचरज का ठिकाना न रहा।
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उसे बड़ा पश्चात्ताप हुआ और वह पुत्र के पैरों में जा गिरा। फिर पिता ने उसे हिंदुओं में भजन गाने की छूट दे दी।
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होथी महान् भक्त हुए और ‘दास होथी’ नाम से अनेकों भजन बनाये।
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जय श्री राम
, Saint Hothi was a Muslim from Neknam village of Kathiawar. From childhood he used to go to Morar Saheb’s bhajan congregation and used to sing bhajans there. , He had a penchant for serving sages and saints. His father did not like this trick and he became very sad. , According to the custom of his clan, the boy should not take sword, gun, pistol, knife and spear, and sit down to play songs with tambura and majira-this is not right. , The father always kept giving sorrow to the son. But gold shines brighter when heated in fire. Similarly, the more sorrow started increasing on Hothi, the more they started doing hymns. , He had a true passion for the name of Ram and the difference between Hindu-Muslim religion was erased in front of him. , One day Morar Saheb’s bhajan group went to perform bhajan in the abode of Harijans. , Hothi was stopped by her father Sikandar from going there. Still went to Hothi. The hymns ended on the big night. The congregation disintegrated. , On the way, people were praising Hotho- ‘Wow! How is Hothi’s love, with what love has Hothi sung the bhajan?’ , Hearing this praise, Hothi’s father was very hurt and instead of this he thought it better to die. , The next day, when Hothi started going to the bhajan congregation, the father mixed opium and said to the son – ‘Son! The opium is ready; Either you drink it, or I will drink it! But this slander is no longer tolerated in the caste of a Muslim. , The devotee son humbly replied – ‘Father! Why would you drink, I should drink it.’ Saying this, he took the cup in his hand and started praying to God with tearful eyes. , ‘Dear Lord! If I die from opium, I don’t mind it at all! But in this you and your devotion will be ashamed. , At such a time, you had turned Meera’s cup of poison into nectar. You had increased the rag while Draupadi’s shame was gone. , Lord! If my devotion is true, then keep my shame. Saying this, the devotee Hothi drank opium and after closing the closet, covered himself with a blanket and slept. The father locked the door from outside. , It is heard that on the same night when bhajans started in Harijan Basti and when Alexander heard the praise of Hothi’s hymns from the mouth of the returning audience, he went to Harijan Basti astounded. , What does he see there that Hothi is singing hymns in love. Returning from there, he saw Hothi sleeping in the cell. This surprised him no more. , He felt great remorse and fell at the feet of his son. Then the father allowed him to sing hymns among the Hindus. , Hothi became a great devotee and composed many bhajans under the name ‘Das Hothi’. , Long live Rama