जीवनका कम्बल
दो साधु थे। किसी भक्तने दोनोंको बहुमूल्य गर्म कम्बल उपहारमें दिये दिनभर यात्रा करनेके बाद दोनों साधु रातके विश्रामके लिये एक धर्मशालामें ठहरे। सर्दीकी रात थी । जब सोनेका समय हुआ तब एक साधुने सोचा कि कम्बल कीमती है, कहीं ऐसा न हो कि रातके समय कोई चुरा ले जाय। उसने लपेटकर उसे अच्छी तरह तह करके सिरहाने लगाया और सो गया। दूसरा साधु जब सोने लगा तब उसने देखा कि सर्दीसे कुछ बच्चे काँप रहे थे और उनके दाँत किटकिटा रहे थे। साधुको दया आयी, उसने अपना कम्बल उन ठिठुरते हुए अनाथ बच्चोंको ओढ़ा दिया।
सुबह जब दोनों साधु उठे, तब दोनोंमेंसे किसीके पास कम्बल नहीं था। एकने स्वेच्छासे ठिठुरते बच्चोंको अपना कम्बल ओढ़ा दिया था और दूसरेके सिरके नीचेसे खिसका लिया गया था। अपनी इच्छासे अपना कम्बल त्यागनेवाला व्यक्ति प्रसन्न था, परंतु चोरी हो गये कम्बलका मालिक साधु बहुत दुखी था। यह जीवनरूपी कम्बल एक-न-एक दिन सबसे छिन जाता है, इस संसारसे वियोग तो निश्चित है, इसलिये जो स्वेच्छासे सांसारिक पदार्थोंमें आसक्तिको त्याग देता है, उसे कोई दुःख नहीं व्यापता, पर जो उससे चिपटा रहता है, वह सदा दुखी ही रहता है। [ श्रीरामकिशोरजी ]
blanket of life
There were two sages. A devotee gifted both of them valuable warm blankets. After traveling throughout the day, both the sages stayed in a Dharamshala for the rest of the night. It was a winter night. When it was time to sleep, a hermit thought that the blanket was precious, lest someone steal it at night. He wrapped it, folded it well and put it on the pillow and fell asleep. When the second monk started sleeping, he saw that some children were shivering with cold and their teeth were chattering. The monk felt pity, he covered those chilling orphans with his blanket.
When both the sages woke up in the morning, neither of them had a blanket. One had voluntarily covered the chilling children with his blanket and had slipped it from under the other’s head. The person who voluntarily gave up his blanket was happy, but the monk who owned the stolen blanket was very sad. This blanket of life gets snatched from everyone one day or the other, separation from this world is certain, so one who voluntarily gives up attachment to worldly things, does not experience any sorrow, but the one who clings to it, remains unhappy forever. . [Shriramkishorji]