असली यज्ञ
काशीसे पाँच मील दूर गंगाके तटपर स्थित एक कुटिया में ‘मोकलपुरके बाबा’ इस नामसे प्रसिद्ध परम विद्वान् संत रहते थे।
एक बार पण्डित मदनमोहन मालवीय उनके दर्शनके लिये पहुँचे। बाबासे बातचीतके दौरान महामना मालवीयजीने कहा- ‘अंग्रेजोंने हमारी प्राचीन शिक्षा पद्धतिको विकृत कर दिया है। मैं काशीमें भारतीयताके आधारपर शिक्षा देनेवाले विद्यालयकी स्थापनाके प्रयासमें लगा हूँ।’
मोकलपुरके बाबाने कहा – ‘पण्डितजी, जरूर
कीजियेगा विद्यालयकी स्थापना। मेरी आहुति भी इस विद्यादानके यज्ञमें जरूर पड़ेगी।’
सन् 1937 ई0के दिसम्बरमें बाबाने एक यज्ञका आयोजन कराया। अनेक राजा-रईस उसमें भाग लेने आये। बाबाने कहा- ‘यदि यज्ञके बीच मेरा निधन हो जाय, तब भी यज्ञ जारी रहना चाहिये। यज्ञमें आये धनमेंसे ज्यादा-से-ज्यादा हिन्दू विश्वविद्यालयके लिये दान देना चाहिये ।’ दूसरे दिन ही बाबाने शरीर त्याग दिया। उनके भक्तोंने यज्ञसे प्राप्त पूरा धन विश्वविद्यालयको दान कर दिया। [ श्रीओमप्रकाशजी छारिया ]
real sacrifice
In a hut situated on the banks of the Ganges, five miles away from Kashi, lived a great learned saint known as ‘Baba of Mokalpur’.
Once Pandit Madan Mohan Malaviya reached for his darshan. During the conversation with Baba, Mahamana Malviyaji said- ‘The British have perverted our ancient education system. I am trying to establish a school in Kashi which will impart education on the basis of Indianness.’
Baba of Mokalpur said – ‘Panditji, definitely
Will establish the school. I will definitely be sacrificed in this sacrifice of education.’
In December 1937, Baba organized a Yagya. Many kings and nobles came to participate in it. Baba said- ‘Even if I pass away in the midst of the yagya, the yagya should continue. Maximum of the money received in the Yagya should be donated for the Hindu University.’ Baba left his body on the second day itself. His devotees donated all the money received from the yagya to the university. [Shri Om Prakashji Chhariya]