संत फ्रांसिसके जीवनकी बात है। इटलीके अस्सीसाई नगरमें अपनी युवावस्थाके दिन उन्होंने राग-रंग और आमोद-प्रमोदमें बिताये। धनियोंके लड़कोंके साथ वे कपड़े पहनने और विलासपूर्ण ढंगसे रहनेमें होड़ लगाया करते थे। एक दिन उनके जीवनमें विचित्र परिवर्तन हुआ।
उन्होंने अपने रेशमी कपड़े फाड़ डाले और चीथड़े पहनकर वे घर गये।
‘फ्रांसिस ! तुमने कैसा रूप बना लिया है ? इस
पागलपनका अर्थ क्या है ?’ पिताने क्रोध प्रकट किया।
‘पिताजी! मैं पागल नहीं हूँ। यदि आप मुझे पागल ही समझते हैं तो यह आपकी बड़ी कृपा है। मुझे इस जीवनसे संतोष है। मेरी अन्तरात्माने मुझे दीनताको वरण करनेके लिये विवश किया है। मैंने उसका पाणिग्रहण किया है। वह मुझे भगवान्से मिला देगी।’ फ्रांसिसका उत्तर था।
‘तुम्हें अस्सीसाईके लोग गाली देते हैं; कल जोतुम्हारे साथ थे, वे ही मित्र आज तुमपर ढेले बरसाते हैं; धूलि और कीचड़ फेंकते हैं। समझदारीसे काम लो फ्रांसिस? हमलोग कहींके न रह जायँगे।’ पिताने पुत्रको बड़े स्नेहसे देखा ।
‘पिताजी! आप गलत सोच रहे हैं। मेरा जीवन भगवान्के चिन्तनसे धन्य हो रहा है। दीनता-सुन्दरीकी शक्ति अपार है। उसका सहारा लेनेपर-हाथ पकड़नेपर भगवान् की कृपा मिलती ही है। हमलोगोंका सम्मान बढ़ गया दूसरोंकी दृष्टिमें । हमें ईश्वरद्वारा निर्मित प्रत्येक वस्तुसे प्रेम करना चाहिये। भगवान् सबके रक्षक हैं। उनकी शरणमें जानेपर जीवका कल्याण हो जाता है।’ फ्रांसिसकी मीठी-मीठी बातोंने पिताको पूर्ण संतुष्ट कर दिया।
फ्रांसिस नगरमें घूम-घूमकर लोगोंको सादे जीवन और उच्च आचार-विचारका उपदेश देने लगे। भगवान् के राज्यमें प्रवेश करनेका साधन दैन्य ही है-इसका उन्हें आजीवन स्मरण था।
– रा0 श्री0
It is about the life of Saint Francis. He spent the days of his youth in the city of Assisi in Italy, in passion and frolic. They used to compete with the boys of the rich in dressing up and living luxuriously. One day a strange change happened in his life.
They tore their silk clothes and went home wearing rags.
‘Francis! What shape have you made? This
What is the meaning of madness? The father expressed his anger.
‘Father! I am not mad. If you consider me mad then it is your great kindness. I am satisfied with this life. My conscience has forced me to choose humility. I have adopted it. She will unite me with the gods.’ Francis was the answer.
‘You are abused by the people of Assisi; The same friends who were with you yesterday, are today raining stones on you; Throwing dust and mud. Be smart Francis? We will be of no use.’ The father looked at the son with great affection.
‘Father! You are thinking wrong. My life is getting blessed by thinking of God. The power of humility and beauty is immense. On taking his support – on holding hands, God’s blessings are received. Our respect has increased in the eyes of others. We should love everything created by God. God is the protector of all. On going to his shelter, the soul gets welfare. The sweet words of Francis completely satisfied the father.
Francis roamed around the city preaching simple life and high morals to the people. The means to enter the kingdom of God is charity – he remembered this throughout his life.