कहाँ कहाँ खोजूँ मैं उसको
किसके दरवाज़े पर जाऊँ
जो मेरे चावल खा जाए
ऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ।
जीवन की इस कठिन डगर में
दोस्त हज़ारों मिल जाते हैं
जो मतलब पूरा होने पर
अपनी राह बदल जाते हैं
हरदम साथ निभाने वाला
साथी ढूँढ कहाँ से लाऊँ
जो मेरे चावल खा जाए
ऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ।
हार सुनिश्चित मालूम थी पर
साथ न छोड़ा दुर्योधन का
मौत सामने आई फिर भी
पैर न पीछे हटा कर्ण का
मित्रों पर जो जान लुटाएँ
कहाँ खोजने उनको जाऊँ
जो मेरे चावल खा जाए
ऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ।
दर्द बयाँ करने पर आए
वे तो साथी कहलाते हैं
मन की बात समझ जाए जो
वे ही मित्र कहे जाते हैं
जिनसे मन के तार जुड़ें वो
किस कोने से ढूँढ के लाऊँ
जो मेरे चावल खा जाए
ऐसा मित्र कहाँ से लाऊँ।
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं…जय श्री कृष्ण