लाला बाबू भाग – 9

गतांक से आगे –

दीक्षा लेने के बाद लाला बाबू का भावोन्माद और बढ़ रहा था …लोग मिलने के लिये आते ही रहते थे ….इसलिये एक दिन अपने ठाकुर जी से इन्होंने प्रार्थना की कि हे नाथ ! मुझे एकान्त स्थान में भजन करने के लिए भेज दो । क्यों ? ठाकुर जी ने प्रत्यक्ष होकर प्रश्न किया ।

क्यों की यहाँ लोगों की भीड़ बहुत आने लगी है ……लाला बाबू का कहना था ।
“मैं भी तो रह रहा हूँ” ….ठाकुर जी इतना ही बोले ….फिर कोई चर्चा नही ।

लाला बाबू को लगा ठाकुर जी भजन के लिए कहीं जाऊँ तो मना थोड़े ही करेंगे ….ऐसा विचार करते हुये वो निकल गये अपने मन्दिर से …और गिरिराज जी की गुफा में जाकर बैठ गये ….भजन करना इन्होंने प्रारम्भ किया …..बृजमण्डल में लाला बाबू का नाम तप वैराग्य की मूर्ति के रूप में जाना जाने लगा था ।

एक बार सिन्धिया राजा ग्वालियर से बृजयात्रा में आये थे …उन्हें किसी सिद्ध पुरुष के दर्शन करने थे …लोगों ने कह दिया कि इन दिनों तो लाला बाबू नामक एक महात्मा हैं जो गिरिराज जी में भजन करते हैं …और भगवत्प्राप्त महापुरुष हैं । दर्शन करने के लिए गये सिन्धिया महाराज ।

गुफा में आज ठाकुर जी की विलक्षण लीला चल रही थी …ठाकुर जी लाला बाबू से कह रहे थे – “बड़ो सिद्ध बने …इतनो ही सिद्ध है तो या धोती कुँ भी उतार के नागा बन जा”। “अरे ! धोती को छोड़ो …श्रीजी आयेंगी …उनके साथ ललिता सखी भी होंगी” लाला बाबू कह रहे थे …..पर कन्हैया जोर जोर से हंसते हुए धोती को खींच रहे हैं …तभी खट खट खट की आवाज़ आयी …तो कन्हैया भाग गए …और ये कहते हुये भागे …”तेरो दुश्मन आय गयो”।

सिन्धिया महाराज ने गुफा में प्रवेश किया …अद्भुत सुगन्ध फैली हुयी थी गुफा में ।

सिन्धिया महाराज तो कुछ बोल ही नही पाये …..उन्होंने बस लाला बाबू को हाथ जोड़कर कहा ….मुझे शिष्य बना लीजिये । लाला बाबू ने मुस्कुराते हुये इतना ही कहा …एक हाथ में संसार और दूसरे हाथ में भगवान …ऐसे नही होता …..राजा ! अगर सच में भगवान को पाना है तो उतारो ये चोला राजा का …और आओ इसी गुफा में ….करते हैं दोनों मिलकर भजन , बोलो ! अगर तुम ये करने को तैयार हो तो ….मैं तुम्हें शिष्य बनाता हूँ ।

सिन्धिया महाराज कुछ नही बोले ….वो वहाँ से चले गये ….फिर दूसरे दिन श्रीराधाकुण्ड में मिल गये …और वही रट …मुझे दीक्षा दो । लाला बाबू ने फिर समझाया …केवल दीक्षा लेने से क्या होगा राजा ! उन्हें पाने के लिए तो दोनों हाथ उठाने पड़ेंगे …..जैसे बालक दोनों हाथ उठाकर कहता है माता पिता से – मुझे गोद में ले लो …..पिता माता तब उसे गोद में लेते हैं । पर सिन्धिया महाराज बस इनको गुरु बनाने पर अड़े हुये थे …त्याग वैराग्य कुछ नही था राजा में ।

पर राजा की जिद्द ज़्यादा ही देखी लाला बाबू ने ….राजा मान नही रहे थे ….तब इन्होंने महामन्त्र कान में फूंक दिया और तुलसी की माला गले में डाल दी ।

सिंधिया महाराज बड़े प्रसन्न थे …..ये दक्षिणा की तैयारी कर रहे थे …तब लघुशंका के लिए गुफा से बाहर आए लाला बाबू ….बाहर राजा के घोड़े खड़े थे घोड़ों का पैर अच्छे से लाला बाबू के पैर में पड़ गया …अत्यन्त पीड़ा हुई ….पैर में घाव भी बन गया …..किन्तु उसी समय श्याम सुन्दर ताली बजाकर हंसते हुये बोले – “दक्षिणा मिल गयी लाला को”।

लाला बाबू ने ध्यान दिया नही …..पैर का घाव बढ़ता चला गया …..”अब तू श्रीवृन्दावन चल”ठाकुर जी ने लाला को कहा । लाला बाबू ने भी देखा घाव बढ़ता जा रहा है …चलो श्रीवृन्दावन में किसी चिकित्सक को दिखाकर अपने ठाकुर जी के सामने ही भजन करेंगे । लाला बाबू श्रीवृन्दावन में चले आये ….पर यहाँ आकर जब घाव को देखा तो चिकित्सक बोला ….ये घाव तो आपके पैर को भी ले जा रहा है ….सड़ गया था घाव ….अब कोई उपाय नही था पैर को काटने के सिवा …पैर काटना ही पड़ा ।

ये क्या हुआ ? अब लाला बाबू चल नही पाते ….चलते भी हैं तो सहारा लेकर ….लेकिन हंसते बहुत है आजकल । पड़े रहते हैं अपने मन्दिर के आँगन में ……कोई पूछता है ..आपको इतना कष्ट क्यों ? तब लाला बाबू जोरों से हंसते हैं और कहते हैं …..इधर उधर जाता रहता था …इसलिये श्यामसुन्दर ने मेरे पैर ही तोड़ दिये अब मैं इनको छोड़के कहीं जा नही सकता ।

कष्ट कहाँ ? लाला बाबू फिर कहते हैं ….ये तो आनन्द है ….वो मुझे कितना चाहता है …देखो तो ! अपने ही पास बैठा लिया …..ये कहते हुए भाव के अश्रु गिरने लगते हैं लाला बाबू के ।

“मरने पर मुझे कोई विमान में न ले जाये …न मेरे लिए कोई विमान बनाया जाये ….मेरे इस देह को बृज रज में घसीटते हुए यमुना जी तक ले जायें …ताकि यहाँ के रज को पाकर बचे देह के पाप भी मिट जायें और “पराभक्ति” की प्राप्ति हो जाये । न जलाया जाये मेरे देह को ….इसे यमुना जी की धारा में प्रवाहित कर दिया जाये …ताकि जल के जीवों को भी आहार मिल जाये”।

ये वसीयत है लाला बाबू की ……..

इन महाभागवत श्रीलाला बाबू का धाम वास हो गया । पूरा बृजमण्डल उमड़ पड़ा था । सब लोग अन्तिम दर्शन करना चाहते थे इन महाभाग के ।

वसीयत अनुसार एक बड़ी डलिया बनाई गयी थी …..उसमें लाला बाबू के देह को रखा गया था …..और उस डलिया को घसीटते हुये …..

“श्रीवृन्दावन धाम की जय , श्यामा श्याम की जय” ….इन जयजयकारों से श्रीधाम का थल नभ सब गूंज उठा था ।

लाला बाबू की वसीयत चर्चा का विषय बन गयी थी ….वसीयत में लिखे उनके अद्भुत भाव की चर्चा से पूरा श्रीधाम गदगद था ….सब लोग लाला बाबू के नाम का जयकार कर रहे थे …..।

ऐसे परमभागवत श्रीलालाबाबू जी के चरणों में मेरा भी शतशत वन्दन है 🙏

चरित्र विश्राम

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