मनुष्य जीवन में एकनिष्ठ होना

मनुष्य जीवन में एकनिष्ठ होना बहुत ही आवश्यक है,,
एक जगह निशाना लगाने से हमारी एकाग्रता सदैव बनी रहती है।
कई जगह निशाने लगाने पर एकाग्रता भंग हो जाती है और कोई निशाना ठीक से नहीं लग सकता
एक लक्ष्य निर्धारित हो तो आसानी से पहुंचा जा सकता है कई लक्ष्य होने से किसी भी मंजिल तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है
अध्यात्म में एकनिष्ठा पर विशेष बल दिया गया है एक लक्ष्य हो तो व्यक्ति एन केन प्रकारेंण पहुंच ही जाता है जो व्यक्ति किसी एक ईस्ट को सर्वभाव से समर्पित हो जाता है उसके ऊपर उसके इष्ट की दृष्टि सदैव बनी रहती है और कृपा करके उसे अपने पास आने का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं
पूजा किसी की भी कर सकते हैं पर इष्ट एक ही होना चाहिए, जिस पर हमारी दृष्टि सदैव रहनी चाहिए, इसलिए अध्यात्म में गुरु को श्रेष्ठ बताया जाता है, वह गुरु जिन्होंने ईश्वर को प्राप्त कर लिया है, जो ब्रह्मलीन है , गुरु शक्ति में जो प्रवेश कर चुके हैं , जिनकी आत्मा पूर्ण रूप से जागृत है, ऐसे गुरु को ही ईस्ट बनाकर उन्हीं के बताए मार्ग पर चलना चाहिए ,
पूजा का अर्थ ही होता है जो पूर्णता तक पहुंचा दे, और पूर्णता वही प्रदान कर सकते हैं जो स्वयं पूर्ण होंगे , इसलिए पूजा किसी की भी कर सकते हैं पर इष्ट किसी एक को ही बनना चाहिए, वह पूर्ण गुरु होना चाहिए , जो मनुष्य को नीचे से ऊपर तक सारे तत्व का ज्ञान कर देते हैं,
किसी महापुरुष ने कहा है,
सिर्फ एक को साधने से सब सब जाएं , किसी ऐसे को ही साधना चाहिए,
सभी को साधने जाएंगे तो सभी के सभी रह जाएंगे किसी को भी साध नहीं पाएंगे,
इसलिए इष्ट को सोच समझ कर चुनना चाहिए जिसके साधने से संसार के सारे तत्व स्वयं ही सध जाएं,
एक-एक तत्व को अगर साधने जाएंगे पूरी जिंदगी में 2,4, या 10 तत्वों को ही साथ सकते हैं ,मुख्य तत्व रह ही जाएगा , जिसको साधना मुख्य लक्ष्य होता है वह रह जाएगा तो बाकियों को साधने से क्या मतलब निकलेगा ,
इसीलिए आत्मज्ञानी पूर्ण गुरु को ही इष्ट बनाकर उनके बताएं मार्ग पर चलना चाहिए, रास्ते में जो भी मिले सबका सम्मान करते हुए आगे बढ़ता रहना चाहिए, किसी के पास जितनी देर ठहरेंगे उतना आपकी मंजिल पर पहुंचने में देर होगी,
संसार में तरह-तरह की दैवीय शक्तियां हैं जो मनुष्य को अपनी तरफ आकर्षित करती हैं , और संसार का सारा सुख वैभव प्रदान करने की क्षमता भी रखती है , इन शक्तियों के प्रभाव में आकर मनुष्य अपनी मंजिल को भूल बैठा है, और अपने सफ़र को लंबा करते जा रहा है ,
मनुष्य रूपी जीव ने जो यात्रा प्रारंभ किया है उसका अंतिम मंजिल गुरु तत्व ही है, जब तक जीव गुरु शक्ति में प्रवेश नहीं कर जाता है तब तक उसकी यात्रा चलती ही रहती है , यह यात्रा हजारों जन्मों की भी हो सकती है , मनुष्य चाहे तो इस यात्रा को लंबी से लंबी और छोटी से छोटी बना सकता है , यह यात्रा तभी हो सकती है जब पूर्ण गुरु मिलते हैं , जब तक किसी पूर्ण गुरु का आगमन हमारे जीवन में नहीं हुआ है तब तक निश्चित मानिए कि हमारी यात्रा बहुत लंबी है , और जिनके जीवन में पूर्ण गुरु का प्रस्थान हो चुका है उनकी यात्रा कुछ दिन की बची है ऐसा मानना चाहिए , सिर्फ एक या दो जन्म की , और यदि गुरु कृपा करें तो एक ही जन्म में मंजिल तक पहुंचा देते हैं , इसके लिए गुरु को प्रसन्न करना अति आवश्यक , और ऐसे गुरु किस बात से प्रसन्न होते हैं यह जान पाना बहुत दुर्लभ काम होता है , इस रहस्य को जिसने जान लिया वह इसी जन्म में मुक्त हो सकता है, नहीं तो यात्रा तो कर ही रहे हैं और यह यात्रा कब तक चलेगी इसका अनुमान लगाना किसी के लिए संभव नहीं है ,
जीव की मंजिल तो निश्चित पहले से ही रहती है वह मंजिल पर पहुंचने में कितना समय लेता है यह उस जीव आत्मा के ऊपर निर्भर करता है,
इसलिए अपनी यात्रा को जल्दी से जल्दी पूरा करने का प्रयास करना चाहिए और जीवन में एक आत्मज्ञानी पूर्ण महापुरुष की तलाश करना चाहिए जिस दिन आत्मज्ञानी पूर्ण गुरु हमारे जीवन में प्राप्त हो जाएंगे समझ लेना चाहिए कि हमारी यात्रा पूरी होने वाली है

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