( राधे चलो अवतार लें )
“जय हो जगत्पावन प्रेम कि जय हो उस अनिर्वचनीय प्रेम कि
उस प्रेम कि जय हो, जिसे पाकर कुछ पानें कि कामना नही रह जाती ।
उस ‘चाह” कि जय हो जिस “प्रेम चाह” से कामनारूपी पिशाचिनी का पूर्ण रूप से नाश हो जाता है ।
और अंत में हे यादवकुल के वंश धर वज्रनाभ तुम जैसे प्रेमी कि भी जय हो जय हो ।
महर्षि शाण्डिल्य से “श्रीराधाचरित्र” सुनने कि इच्छा प्रकट करनें पर महर्षि के आनन्द का ठिकाना नही रहा वो उस प्रेम सिन्धु में डूबने और उबरने लगे थे।
हे द्वारकेश के प्रपौत्र मैं क्या कह पाउँगा श्रीराधा चरित्र को?
जिन श्रीराधा का नाम लेते हुए श्रीशुकदेव जैसे परमहंस को समाधि लग जाती है वो कुछ बोल नही पाते हैं।
हाँ प्रेम अनुभूति का विषय है वज्रनाभ ये वाणी का विषय नही है कुछ देर मौन होकर फिर हँसते हुए बोलना प्रारम्भ करते हैं महर्षि शाण्डिल्य हा हा हा हागूँगे के स्वाद कि तरह है ये प्रेम गूँगे को गुड़ खिलाओ और पूछो – बता कैसा है?
क्या वो कुछ बोल कर बता पायेगा ? हाँ वो नाच कर बता सकता है वो उछल कूद करके पर बोले क्या?
ऐसे ही वत्स तुमने ये मुझ से क्या जानना चाहा।
तुम कहो तो मैं वेद का सम्पूर्ण वर्णन करके तुम्हे बता सकता हूँ तुम कहो तो पुराण इतिहास या वेदान्त गूढ़ प्रतिपादित तत्व का वर्णन करना मुझ शाण्डिल्य को असक्य नही हैं पर प्रेम पर मैं क्या बोलूँ?
प्रेम कि परिभाषा क्या है? परिभाषा तो अनन्त हैं प्रेम कि अनेक कही गयी हैं अनेकानेक कवियों नें इस पर कुछ न कुछ लिखा है कहा है पर सब अधूरा है क्यों कि प्रेम कि पूरी परिभाषा आज तक कोई लिख न सका।
पूरी परिभाषा मिल ही नही सकती क्यों कि प्रेम, वाणी का विषय ही नही है ये शब्दातीत है इतना कहकर महर्षि शाण्डिल्य फिर मौन हो गए थे।
हे महर्षियों में श्रेष्ठ शाण्डिल्य आपनें “प्रेम” के लिए जो कुछ कहा वो तो ब्रह्म के लिए कहा जाता है तो क्या प्रेम और ब्रह्म एक ही हैं ? अंतर नही है दोनों में?
मैं अधिकारी हूँ कि नही हे महर्षि मैं प्रेम तत्व को नही जानता आप कि कृपा हो तो मैं जानना चाहता हूँयानि अनुभव करना चाहता हूँ आप कृपा करें।
हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ नें महर्षि शाण्डिल्य से कहा।
हाँ, ब्रह्म और प्रेम में कोई अंतर नही है फिर कुछ देर कालिन्दी यमुना को देखते हुए मौन हो गए थे महर्षि।
नही नही ब्रह्म से भी बड़ा है प्रेम मुस्कुराते हुए फिर बोले महर्षि शाण्डिल्य।
तभी तो वह ब्रह्म अवतार लेकर आता है केवल प्रेम के लिए।
प्रेम” उस ब्रह्म को भी नचानें कि हिम्मत रखता है क्या नही नचाया ? क्या इसी बृज भूमि में गोपियों नें उन अहीर कि कन्याओं नें माखन खिलानें के बहानें से उस ब्रह्म को अपनी बाहों में भर कर उस सुख को लूटा है जिस सुख कि कल्पना भी ब्रह्मा रूद्र इत्यादि नही कर सकते।
उन गोपियों के आगे वो ब्रह्म नाचता है आहा ये है प्रेम देवता का प्रभाव नेत्रों से झर झर अश्रु बहने लग जाते हैं महर्षि के ये सब कहते हुए।
कृष्ण कौन हैं ? शान्त भाव से पूछा था वज्रनाभ नें ये प्रश्न।
चन्द्र हैं कृष्ण महर्षि आनन्द में डूबे हुए हैं।
कहाँ के चन्द्र ? वज्रनाभ ने फिर पूछा।
श्रीराधा रानी के हृदय में जो प्रेम का सागर उमड़ता रहता है उस प्रेम सागर में से प्रकटा हुआ चन्द्र है – ये कृष्ण।
महर्षि ने उत्तर दिया।
श्रीराधा रानी क्या हैं फिर ? वज्रनाभ नें फिर पूछा ।
वो भी चन्द्र हैं , पूर्ण चन्द्र महर्षि का उत्तर ।
कहाँ कि चन्द्र ? वज्रनाभ आनन्दित हैं , पूछते हुए ।
वत्स वज्रनाभ श्रीकृष्ण के हृदय समुद्र में जो संयोग वियोग कि लहरें चलती और उतरती रहती हैं उसी समुद्र में से प्रकटा चन्द्र है ये श्रीराधा।
तो फिर ये दोनों श्रीराधा कृष्ण कौन हैं?
दोनों चकोर हैं और दोनों ही चन्द्रमा हैं कौन क्या है कुछ नही कहा जा सकता इसे इस तरह से माना जाए राधा ही कृष्ण है और कृष्ण ही राधा है क्या वज्रनाभ प्रेम कि उस उच्चावस्था में अद्वैत नही घटता ? वहाँ कौन पुरुष और कौन स्त्री?
उसी प्रेम कि उच्च भूमि में विराजमान हैं ये दोनों अनादि काल से इसलिये राधा कृष्ण दोनों एक ही हैं ये दो लगते हैं पर हैं नही ?
हे वज्रनाभ जो इस प्रेम रहस्य को समझ जाता है वह योगियों को भी दुर्लभ “प्रेमाभक्ति” को प्राप्त करता है।
इतना कहकर भावसमाधि में डूब गए थे महर्षि शांडिल्य।
हे राधे जय राधे जय श्री कृष्ण जय राधे
“ये आवाज काफी देर से आरही है देखो तो कौन हैं ?
विशाखा सखी नें ललिता सखी से कहा।
कहो ना ज्यादा शोर न मचाएं वैसे भी हमारे “प्यारे” आज उदास हैं उनका कहीं मन भी नही लग रहा।
पर ऐसा क्या हुआ ? ललिता सखी ने विशाखा सखी से पूछा।
प्यारे अपनी प्राण “श्रीजी” को चन्द्रमा दिखा रहे थे और दिखाते हुये बोले “तिहारो मुख तो चन्द्रमा कि तरह है मेरी प्यारी, बस रूठ गयीं हमारी राधा प्यारी विशाखा सखी ने कहा।
पर इसमें रूठने कि बात क्या ? ललिता सखी फूलों कि सेज लगा रही थी और पूछती भी जा रही थी।
जब प्यारे ने अपनी प्राण श्रीराधिका से उनके चिबुक में हाथ रखकर, उनके कपोल को छूते कहा “चन्द्र कि तरह मुख है तुम्हारो“
ओह तो क्या मेरे मुख में कलंक है? मेरे मुख में काला धब्बा है
बस श्रीराधा प्यारी रूठ गयीं।
ओह ललिता सखी भी दुःखी हो गयी,पर श्याम सुन्दर को ये सब कहने कि जरूरत क्या थी?
पर श्रीराधा रानी को भी बात बात में मान नही करना चाहिए ना
विशाखा सखी ने कहा ।
प्रेम बढ़ता है।प्रेम के उतार चढाव में ही तो प्रेम का आनन्द है ।
यही तो प्रेम का रहस्य है रूठना फिर मनाना।
श्रीराधे जय जय राधे जय श्री कृष्ण जय जय राधे
अरी अब तू जा और देख ये कौन आवाज लगा रहा है कह दे हमारे श्याम सुन्दर अभी उदास हैं क्यों कि उनकी आत्मा रूठ गयीं हैं अब वो मनावेंगे।जा ललिते जा कह दे।
ललिता सखी बाहर आयी कौन हैं आप? और क्यों ऐसे पुकार रहे हैं क्या आपको पता नही है ये निकुञ्ज है श्याम सुन्दर अपनी आल्हादिनी के साथ विहार में रहते हैं।
हमें पता है सखी हमें सब पता है पर एक प्रार्थना करनें आये हैं हम लोग उन तीनों देवताओं ने हाथ जोड़कर प्रार्थना कि ललिता सखी से।
पर कुछ सोचती हुई ललिता सखी बोली आप लोग हैं कौन?
हम तीनों देव हैं ब्रह्मा विष्णु और ये महेश।
अच्छा आप लोग सृष्टि कर्ता , पालन कर्ता और संहार कर्ता हैं?
ललिता सखी को देर न लगी समझने में फिर कुछ देर बाद बोली पर आप किस ब्रह्माण्ड के विष्णु , ब्रह्मा और शंकर हैं?
क्या ? ब्रह्मा चकित थे।क्या ब्रह्माण्ड भी अनेक हैं?
ललिता सखी हँसी।अनन्त ब्रह्माण्ड हैं हे ब्रह्मा जी और प्रत्येक ब्रह्माण्ड के अलग अलग विष्णु होते हैं अलग ब्रह्मा होते हैं और अलग अलग शंकर होते हैं।
अब आप ये बताइये कि किस ब्रह्माण्ड के आप लोग ब्रह्मा विष्णु महेश हैं।
कोई उत्तर नही दे सका तो आगे आये भगवान विष्णु हे सखी ललिते हम उस ब्रह्माण्ड के तीनों देव हैं जहाँ का ब्रह्माण्ड वामन भगवान के पद की चोट से फूट गया था।
ओह अच्छा बताइये यहाँ क्यों आये ? ललिता नें पूछा।
पृथ्वी में हाहाकार मचा है कंस जरासन्ध जैसे राक्षसों का अत्याचार चरम पर पहुँच गया है वैसे हम लोग चाहते तो एक एक अवतार लेकर उनका उद्धार कर सकते थे पर
ब्रह्मा चुप हो गए तब भगवान शंकर आगे आये बोले –
हम श्रीश्याम सुन्दर के अवतार कि कामना लेकर आये हैं सखी उनका अवतार हो और हम सबको प्रेम का स्वाद चखनें को मिले।
भगवान शंकर नें प्रार्थना की।
और हम लोगों के साथ साथ अनन्त योगी जन हैं अनन्त ज्ञानी जन हैं।अनन्त भक्तों कि ये इच्छा है की श्री श्याम सुन्दर की दिव्य लीलाओं का आस्वादन पृथ्वी में हो भगवान विष्णु नें ये बात कही ।
ठीक है आप लोग जाइए मैं आपकी प्रार्थना श्याम सुन्दर तक पहुँचा दूंगी इतना कहकर ललिता सखी निकुञ्ज में चली गयीं।
प्यारी मान जाओ ना देखो मैं हूँ तुम्हारा अपराधी हाँ मुझे दण्ड दो राधे मुझे दण्डित करो इस अपराधी को अपने बाहु पाश से बांध कर हृदय में कैद करो।
हे वज्रनाभ उस नित्य निकुञ्ज में आज रूठ गयी हैं श्रीराधा रानी और बड़े अनुनय विनय कर रहे हैं श्याम सुन्दर पर आज राधा मान नही रहीं।
इन पायल को बजनें दो ना ये करधनी कितनी कस रही है तुम्हारी क्षीण कटि में इसे ढीला करो ना
हे राधे तुम्हारी वेणी के फूल मुरझा रहे हैं नए लगा दूँ नए सजा दूँ।
युगल सरकार की जय हो
ललिता सखी ने उस कुञ्ज में प्रवेश किया।
हाँ क्या बात है ललिते
देखो ना “श्री जी” आज मान ही नही रहीं।असहाय से श्याम सुन्दर ललिता सखी से बोले।
मुस्कुराते हुए ललिता नें अपनी बात कही हे श्याम सुन्दर बाहर आज तीन देव आये थे ब्रह्मा ,विष्णु , महेश
क्यों आये थे ? श्याम सुन्दर ने पूछा ।
“पृथ्वी में त्राहि त्राहि मची हुयी है कंसादि राक्षसों का आतंक“
ललिता आगे कुछ और कहने जा रही थी पर श्याम सुन्दर ने रोक दिया बात ये नही है क्या राक्षसों का वध ये विष्णु या महेश से सम्भव नही है ?उठे श्याम सुन्दर तमाल के वृक्ष की डाली पकडकर त्रिभंगी भंगिमा से बोले “बात कुछ और है” ।
हाँ बात ये है कि वो लोग, और अन्य समस्त देवता समस्त ज्ञानीजन, योगी, भक्तजन आपकी इन प्रेममयी लीलाओं का आस्वादन पृथ्वी में करना चाहते हैं ताकि दुःखी मनुष्य आशा पाश में बंधा जीव महत्वाकांक्षा की आग में झुलसता जीव जब आपकी प्रेमपूर्ण लीलाओं को देखेगा सुनेगा गायेगा तो
क्या कहना चाहते थे वो तीन देव ?
श्याम सुन्दर नें ललिता की बात को बीच में ही रोककर स्पष्ट जानना चाहा।
“आप अवतार लें पृथ्वी में आपका अवतार हो ”
ललिता सखी नें हाथ जोड़कर कहा।
ठीक है मैं अवतार लूंगा
श्याम सुन्दर नें मुस्कुराते हुए अपनी प्रियतमा श्रीराधा रानी की ओर देखते हुए कहा।
चौंक गयीं थी श्रीराधा रानी मानों प्रश्न वाचक नजर से देखा था अपने प्रियतम को मानों कह रही हों “मेरे बिना आप अवतार लोगे?
नही नही प्यारी आप तो मेरी हृदयेश्वरी होआपको तो चलना ही पड़ेगाश्याम सुन्दर नें फिर अनुनय विनय प्रारम्भ कर दिया था।
नही प्यारे
अपने हाथों से श्याम सुन्दर के कपोल छूते हुए श्रीराधा ने कहा ।
पर क्यों ? क्यों ? राधे
क्यों की जहाँ श्रीधाम वृन्दावन नहीं गिरी गोवर्धन नहीं और मेरी प्यारी ये यमुना नहीं इतना ही नहीं मेरी ये सखियाँ इनके बिना मेरा मन कहाँ लगेगा ?
तो इन सब को मैं पृथ्वी में ही स्थापित कर दूँ तो?
आनन्दित हो उठी थीं श्रीराधा रानी
हाँ फिर मैं जाऊँगी ।
पर लीला है प्यारी
याद रहे विरह , वियोग की पराकाष्ठा का दर्शन आपको कराना होगा इस जगत को।
प्रेम क्या है प्रेम किसे कहते हैं इस बात को समझाना होगा इस जगत कोश्याम सुन्दर ने कहा।
हे वज्रनाभ नित्य निकुञ्ज में अवतार की भूमिका तैयार हो गयी थी।
महर्षि शाण्डिल्य से ये सब निकुञ्ज का वर्णन सुनकर चकित भाव से यमुना जी की लहरों को ही देखते रहे थे वज्रनाभ ।
“हे राधे वृषभान भूप तनये हे पूर्ण चंद्रानने“
क्रमश:
(पूजनीय हरिशरण उपाध्याय जी)
(Radhe, let’s take incarnation)
“Hail to the world’s pure love, hail to that indescribable love.” Victory to that love, after achieving which there is no desire to achieve anything. May that ‘desire’ be victorious, that ‘desire of love’ which completely destroys the demon of desire. And finally, O descendant of Yadava clan, Vajranabha, victory to a lover like you.
When Maharishi expressed his desire to listen to “Shri Radha Charitra” from Shandilya, Maharishi’s joy knew no bounds and he started drowning and recovering in that river of love. O great grandson of Dwarkesh, what can I say about the character of Shri Radha? Paramahamsa like Shri Shukdev, who goes into samadhi by taking the name of Shri Radha, is unable to say anything.
Yes, love is a matter of feeling. Vajranabh is not a matter of speech. After remaining silent for some time, then he starts speaking with a laugh. Maharishi Shandilya Ha Ha Ha Ha, this love is like the taste of a dumb person. Feed jaggery to a dumb person and ask – tell me how is it? Will he be able to say anything? Yes, he can tell by dancing and jumping, but what can he say? Just like that, what did you want to know from me?
If you want, I can tell you the complete description of the Vedas. If you want, it is not impossible for me Shandilya to describe the Puranas, history or the esoteric principles propounded by Vedanta, but what should I say about love? What is the definition of love? There are infinite definitions of love, many have been said, many poets have written something or the other on it, but everything is incomplete because no one has been able to write the complete definition of love till date. A complete definition cannot be found because love is not a subject of speech, it is beyond words. Having said this, Maharishi Shandilya again became silent.
O Shandilya, the best among the great sages, whatever you said about “love” is said about Brahma, so are love and Brahma the same? Is there no difference between the two?
Am I entitled or not? O Maharishi, I do not know the essence of love. If you are pleased, I want to know, that is, I want to experience it. Please be kind. With folded hands, Shri Krishna’s great grandson Vajranabha said to Maharishi Shandilya.
Yes, there is no difference between Brahma and love. Then Maharishi became silent for some time while looking at Kalindi Yamuna. No no, love is greater than Brahma, Maharishi Shandilya said again smilingly.
That’s why he brings Brahma incarnation only for love. “Love” has the courage to make even that Brahma dance, hasn’t he made it dance? In this Brij Bhoomi, have the Gopis and those Ahir daughters, under the pretext of feeding him butter, taken that Brahma in their arms and robbed him of that happiness, the happiness of which Brahma, Rudra etc. cannot even imagine.
That Brahma dances in front of those Gopis. Aha, this is the effect of God of Love. Tears start flowing from the eyes while Maharishi says all this. Who is Krishna? Vajranabha had asked this question in a calm manner.
Krishna Maharishi is the moon and is immersed in joy. Where is the moon? Vajranabh asked again. The ocean of love that keeps rising in the heart of Shri Radha Rani is the moon that has appeared from that ocean of love – this is Krishna. Maharishi replied.
What is Shriradha Rani then? Vajranabh asked again.
He is also the moon, answers Purna Chandra Maharishi. Where is the moon? Vajranabh is happy, asking. This Sri Radha is the moon that has appeared from the same ocean of waves of union and separation that keep rising and falling in the ocean of Vatsa Vajranabh Shri Krishna’s heart.
Then who are these two Shri Radha Krishna?
Both are square and both are moons, nothing can be said about who is what, it should be considered in this way, Radha is Krishna and Krishna is Radha. Does non-dualism not decrease in that high state of thunderbolt love? Who is man and who is woman there? Both of them have been seated in the same high ground of love since time immemorial, that is why Radha and Krishna are one and the same, they seem to be two but are not?
O Vajranabha, one who understands this secret of love, attains the “devotion of love” that is rare even for yogis. Saying this, Maharishi Shandilya was immersed in trance. Hey Radhe Jai Radhe Jai Shri Krishna Jai Radhe
“This voice has been coming for a long time, look who it is? Vishakha Sakhi said to Lalita Sakhi.
Tell me not to make too much noise. Anyway, our “beloved” is sad today and doesn’t feel like anything. But what happened? Lalita Sakhi asked Vishakha Sakhi. Pyare was showing the moon to his beloved “Shriji” and while showing it he said, “Your face is like the moon my dear, our Radha dear Vishakha Sakhi just got upset,” said.
But what is there to be upset about? Lalita Sakhi was arranging flower beds and was also asking questions. When Pyare said to his beloved Shri Radhika, placing his hand on her cheek and touching her forehead, “Your face is like the moon.”
Oh so do I have a blemish on my face? I have a black spot in my mouth Only Shriradha Pyaari got upset.
Oh Lalita Sakhi also became sad, but what was the need to say all this to Shyam Sundar? But even Shriradha Rani should not be taken for granted. Vishakha Sakhi said. Love grows. The joy of love lies in the ups and downs of love. This is the secret of love, to get angry and then to persuade.
Sri Radhe Jai Jai Radhe Jai Shri Krishna Jai Jai Radhe
Hey, now you go and see who is making this noise, tell him that our Shyam Sundar is sad now because his soul is upset, now he will pacify him. Go Lalita, go and tell him.
Lalita Sakhi came out, who are you? And why are you calling like this, don’t you know? This is Nikunj. Shyam Sundar lives in Vihar with his wife Alhadini. We know Sakhi, we know everything but we have come to pray for one thing. Those three gods folded hands and prayed to Lalita Sakhi. But after thinking something, Lalita Sakhi said, who are you people?
We three gods are Brahma, Vishnu and this is Mahesh. Well, are you the creator, the sustainer and the destroyer?
It did not take long for Lalita Sakhi to understand and then after some time she said, but of which universe are you Vishnu, Brahma and Shankar? What ? Brahma was astonished. Are there many universes also?
Lalita Sakhi laughed. O Lord Brahma, there is an infinite universe and each universe has different Vishnu, different Brahma and different Shankar. Now you tell from which universe you people are Brahma Vishnu Mahesh.
If no one could answer, then Lord Vishnu came forward. O friend Lalita, we are the three gods of that universe where the universe was torn apart by the blow of Lord Vaman’s feet. Oh ok tell me why did you come here? Lalita asked.
There is an uproar in the earth, the atrocities of demons like Kansa, Jarasandha have reached their peak, if we wanted, we could have saved them by taking incarnations one by one, but Brahma became silent then Lord Shankar came forward and said – We have come with the wish of the incarnation of Shrishyam Sundar, may Sakhi be his incarnation and we all get to taste the taste of love.
Lord Shankar prayed. And along with us, there are infinite yogis and infinite knowledgeable people. It is the wish of the infinite devotees that the divine Leelas of Shri Shyam Sundar should be tasted on earth. Lord Vishnu said this.
Okay, you all go, I will convey your request to Shyam Sundar. Saying this, Lalita went to Sakhi Nikunj. Dear, agree, don’t see, I am your culprit. Yes, punish me, Radhe, punish me, tie this criminal with your arms and imprison him in your heart.
Hey Vajranabh, in that Nitya Nikunj, Shri Radha Rani is angry today and Shyam Sundar is pleading her a lot, but today Radha is not agreeing. Let these anklets ring, this girdle is so tight on your thin waist, loosen it. O Radhe, the flowers of your garden are withering, should I plant new ones and decorate them.
Hail the couple government Lalita Sakhi entered that grove.
yes what’s the matter Lalita Look, “Shri ji” is not agreeing today. Helplessly, Shyam Sundar said to Lalita Sakhi. Smiling, Lalita said, Hey Shyam Sundar, three gods had come out today, Brahma, Vishnu, Mahesh. Why did you come? Shyam Sundar asked.
“The terror of Kansadi demons is wreaking havoc on the earth.” Lalita was going to say something else but Shyam Sundar stopped her. Isn’t it the matter that killing demons is not possible with Vishnu or Mahesh? Shyam Sundar got up, held the branch of the tamal tree and said in a tribhangi posture, “The matter is something else.” .
Yes, the thing is that those people, and all the other gods, all the knowledgeable people, yogis and devotees, want to taste these loving activities of yours on the earth so that the sad human being, the living being tied in the loop of hope, the living being burning in the fire of ambition, will see and hear your loving pastimes. if he sings
What did those three gods want to say? Shyam Sundar interrupted Lalita’s talk and wanted to know clearly.
“You incarnate, may you incarnate on earth.” Lalita Sakhi said with folded hands.
ok i will incarnate Shyam Sundar said smilingly while looking towards his beloved Shri Radha Rani.
Shriradha Rani was shocked, as if she had looked at her beloved with questioning eyes as if she was saying, “Will you incarnate without me? No no dear, you are my Hridayeshwari, you will have to go. Shyam Sundar again started persuading.
no dear Shriradha said while touching Shyam Sundar’s cheeks with her hands.
But why ? Why ? Radhe Because there is no Shridham Vrindavan, no Govardhan and my beloved Yamuna, not only this, these friends of mine, where would I feel without them?
So what if I establish all these in the earth itself? Shriradha Rani was overjoyed
Yes then I will go. But Leela is lovely Remember, you will have to show this world the zenith of separation.
What is love, what is called love, this thing has to be explained to this world, Koshyam Sundar said. The role of the incarnation in Hey Vajranabh Nitya Nikunj was ready.
Hearing all these descriptions of Nikunj from Maharishi Shandilya, Vajranabha kept looking at the waves of Yamuna with astonishment.
“O Radhe Vrishabhan Bhupa Tanaye O Purna Chandranane“ Respectively:
(Respected Harisharan Upadhyay ji)