श्रीराधाचरितामृतम्
भाग- 8

( जब आँखें नही खोलीं, श्रीराधारानी ने)

“सिर्फ तू तेरा कोई विकल्प नही“
सच है प्रेमी का क्या विकल्प ?
प्रेम के लिए तो ‘प्रियतम” ही चाहिए अरे फूट जाएँ वे आँखें जो “प्रिय” को छोड़ किसी और को हम निहारे फूट जाएँ वे कान जो “प्रिय” की बातों के सिवा कुछ और सुनना पड़े।
प्रेम अनन्यता की माँग करता है वज्रनाभ प्रेम, मछली के समान है भ्रमर प्रेम का आदर्श नही हो सकता प्रेम का आदर्श तो मीन है जिसे जल के सिवाय कुछ नही चाहिये दूध नही घी नहीसिर्फ जल और जल नही मिले तो मर जाना पसन्द है पर चाहिये तो सिर्फ जल ही आहा धन्य है मछली की अनन्यता।

अपनी इष्ट श्रीराधारानी के प्राकट्य की कथा सुनकर भाव में डूब गए हैं वज्रनाभ महर्षि शाण्डिल्य कहते हैं प्रेम के कुछ आदर्श हैं जिन्हें युगों युगों से प्रेमियों ने सम्मान दिया है।
मछली पपीहा मोर…
हे वज्रनाभ मछली की निष्ठा देखो जल के प्रति पपीहे की निष्ठा देखो स्वाति बून्द के प्रति पपीहा प्यासा मर जाएगा पर स्वाति बून्द को छोड़कर कुछ और पीयेगा ही नही

“गंगा जल भी नही“प्रेम उन्मत्तता से भरे महर्षि शाण्डिल्य बोल।
और ‘मोर“श्याम घन देख आकाश में काले काले बादलों को देख वो नाच उठता है मोर का सर्वस्व है बादलमोर प्यार करता है बादल सेपर बादल ? बादल उस मोर के ऊपर बिजली गिराता है।
बज्रपात करता है इतना करने के बाद भी मोर के प्रेम में कमी कहाँ आती है?
हे वज्रनाभ धन्यवाद देता हूँ मैं तुम्हे कि तुम्हारे कारण ही इन आल्हादिनी श्रीहरिप्रिया सर्वेश्वरी श्रीराधारानी के, पावन चरित्र के, गान करनें का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ है।
अब सुनो “श्रीराधाचरित्र” को इस चरित्र को जो भी सुनेगा गायेगा चिन्तन मनन करेगा उसके हृदय में प्रेम का प्राकट्य होगा ही ये पूर्ण सत्य है।

कीर्तिरानी हमारी “लाली” अपनें नेत्रों को क्यों नही खोल रहीं?
हे महाराज मेरा भी मन बहुत घबडा रहा है कहीं ?
नही ऐसा मत कहो ये अपनें नेत्रों को खोलेगी ।

श्रीराधारानी ने जन्म तो ले लिया पर नेत्र नही खोले।
इतना ही नही दुग्ध का पान भी नही कर रहीं।ये चिन्ता में डालनें वाली बात और हो गयी थी महल में बृषभान और कीर्तिरानी के साथ साथ महल के और बरसानें के लोग भी दुःखी होनें लगे थे।

देखो ना कितने खुश थे हमारे बृषभान महाराज और कीर्तिरानीपर ये क्या हो गया बालिका न दूध पी रही हैं न नेत्र ही खोल रही है।
बरसानें में इस तरह की चर्चाओं नें अपनी जगह बना ली थी।
आज दो दिन होनें को हैंपर बच्ची ऐसे दूध नही पीयेगी तो वो जीयेगी कैसे ? नही ऐसे मत बोलो हमारे महाराज बृषभान ने बहुत तप व्रत किये हैं तब जाकर उनको ये बेटी हुयी है हे भगवान इस पुत्री को स्वस्थ कर दो।
अजी स्वस्थ है बच्ची तो तुमने देखा नही है क्या ?
क्या तेज़ है,क्या दमकता हुआ मुख मण्डल है पर आँखें नही खोल रही इतनी ही बात है ।कुछ लोग ये भी कहते पर इसके साथ सबका मत एक ही था कि मानों अपनें होंठ सिल ही लिए हैं उस बच्ची ने दूध ही नही पीयेगी तो बचेगी कैसे ?
कितने झाड़ फूँक वालों को बुलाया।कितनें वैद्यराज आयेऔर तो और कीर्तिरानी की माता “मुखरा मैया” ने भी बहुत “राई नॉन” कियापर सब कुछ व्यर्थ था कुछ फ़र्क ही नही पड़ा।

बरसाने के लोग कितनें खुश थे पर अब बरसाने में उदासी सी छाने लगी थी सब नारायण भगवान से प्रार्थना करने लगे थे कि हमारी “भानुदुलारी” को आप ठीक कर दें ।हमारे जीवन का सारा पुण्य हम अपने बृषभान जी को देते हैं बस उनकी पुत्री ठीक हो जाए आँखें खोल ले और दूध पीनें लगे।
हे वज्रनाभ इन भोले भाले लोगों को क्या पता की आस्तित्व किस दिव्य प्रेम का दर्शन कराने जा रहा है जगत को।

यशोदा तुम्हे पता चला हमारे मित्र बृषभान के यहाँ पुत्री हुयी है बृजपति नन्द आनन्दित होते हुए बताने लगे थे।
कब ? बृजरानी आनन्दित हो उठीं वो दूध पिला रही थीं अपनें कन्हैया को कन्हैया नें भी सुना तो वो भी मैया की गोद में पड़े पड़े मुस्कुरानें लगे।
कब हुयीं हैं उनके लाली ? बृजरानी ने पूछा।
सिर झुकाकर बड़े संकोच से बोले नन्द दो दिन हो गए।
देखो ना अब बड़े नाराज होंगें बृषभान पता नही कैसे मनाऊँगा मैं उन्हें।
चलिये कोई बात नही मैं कीर्तिरानी को समझा दूंगी पूतना , तृणावर्त , शकटासुर इन सब राक्षसों का कितना आतंक फैला दिया है कंस ने।कन्हैया को हमने कैसी कैसी विपत्तियों से बचाया है मैं समझा दूंगी।वो मान जाएंगीं ।

बृजपति आपने मुझे बुलाया?
एक ग्वाले नें आकर नन्द को प्रणाम करते हुए पूछा।
हाँ सुनो शताधिक बैल गाड़ियों को सुन्दर सुन्दर सजा दो और शीघ्र करो हम लोग बरसाने जा रहे हैं।
नन्द राय की आज्ञा पाकर वो ग्वाला गया बैल गाडीयों को सजा दिया।सुन्दर तरीके से सजाया था।

यशोदा और बृजपति नन्द एक गाडी में बैठे यशोदा की गोद में कन्हैया देखो देखो कैसे हँस रहा है कितना खुश है ऐसा प्रसन्न तो ये आज तक नही हुआ था “ससुराल जा रहा है मेरा कान्हा“इतना जैसे ही बोला यशोदा ने कन्हैया तो खिलखिला उठा।
नन्द और यशोदा ने एक दूसरे को देखा और खूब हँसे ।
कितना अच्छा होता ना कि रोहिणी भी आजातीं
पर यशोदा मथुरा में अपनें पति वसुदेव से मिलने गयीं हैं रोहिणी दाऊ को तो छोड़ जाती यशोदा ने फिर कहा।
अपने पुत्र को भला कोई छोड़ता है छोडो यशोदा तुम भी।

बृजपति चले जा रहे हैं इस प्रकार चर्चा करते हुए।
सौ से अधिक बैल गाडी हैं आधे गाडी में तो लोग बैठे हैं कुछ गाड़ियों में मणि माणिक्य सुवर्ण कुछेक गाड़ीयों में वस्त्र आभूषण इत्यादि कुछेक गाड़ियों में दूध माखन दही ये सब रखकर चले जा रहे हैं बरसानें की ओर।
ये क्या बरसाना उदास है लोग सजे धजे हैं पर वो उल्लास और उमंग नही है किसी में।
बृजपति ने बरसाने में प्रवेश किया, तो कुछ उदासी सी देखी, लोगों में।
महल में चहल पहल तो है बन्दनवार भी लगाये हैं केले के खंभे बड़ी सुन्दरता से सजाएं हैं रंगोली तो हर बरसानें वाले के द्वार पर बना हुआ है मोतियों की चौक भी पुराई है।
पर कुछ उदासी सी छाई है।
महल में प्रवेश किया याचकों की लाइन लगी है महल के द्वार पर स्वयं खड़े हैं बृषभान जी सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण किये हुए माथे में पगड़ी मोतियों की लड़ी गले मेंसोनें के कड़ुआ हाथों में बृषभान जी प्रसन्नता से सब कुछ लुटा रहे हैं।

बधाई हो मित्र बधाई हो
जोर से आवाज लगाई बृजपति नन्द नें बरसाने के अधिपति बृषभान को।
देखा बृषभान जी नें।
कई बैल गाडीयाँ सजी धजी खड़ी हैं महल के द्वार पर।
मित्र बृजपति और बृजरानी

दौड़ पड़े बृषभान जी ।
पास में गए तो गले नही मिले।हम आपसे नाराज हैं दो दिन हो गए और आप अब आये हो हम आपसे बात नही करते?
मित्र का रूठना अधिकार है ।
हाँ हमसे गलती तो हो गयी है अब आप जो दण्ड दें वैसे भी मैं तो कहता ही था की सम्पत्ती वैभव इन बरसानें वालों के पास ही ज्यादा है “बृजपति” तो इन्हें ही बनाना चाहिये।
नन्द जी नें हाथ जोड़कर आगे कहा हम तो नाम के ही बृजपति हैं सच्चे बृजपति तो हे बृषभान जी आप ही हो।
तो क्या दण्ड दोगे हमें बृषभान जी ? “वैसे लड़के वालों के सामनें लड़की वालों को ज्यादा बोलना नही चाहिये” हँसते हुए बृजपति नें बृषभान जी को अपनें हृदय से लगा लिया था।

क्या बात है उदास हो ? हे बृषभान जी आप सत्य पर दृढ रहनें वाले हैं इसलिये आपकी वाणी सदैव सत्य ही होती है।
आपने कहा था मुझे तो “लाली” चाहियेऔर देखिये आपके लाली हो गयी हँसते हुए बोले बृजपति नन्द।
पर आप उदास हैं ? क्यों ? नन्द नें फिर पूछा।
महल में चलते हुए बातें हो रही थीं कीर्तिरानी के पास में आगये थे सब लोग बृजरानी यशोदा के साथ कई गोकुल की सखियाँ चल रही थीं उनके हाथों में हीरे मोती मणि माणिक्य से भरे थाल थे जो “लाली” को न्यौछावर करनें के लिए लाईं थीं बृजरानी ।

बधाई हो कीर्तिरानी।
लाला कन्हैया को गोद में लेकर ही दौड़ पडीं यशोदा।
यशोदा भाभी कीर्तिरानी उठकर बैठ गयीं।
नही लाली कहाँ है ? मैं देखूंगी , लाली कहाँ है ?

ये रही हमारी प्यारी लाली कीर्ति रानी ने दिखाया।
ओह कितनी सुन्दर है ये तो ओह अपलक देखती रहीं उन “भानु दुलारी” को बृजरानी यशोदा ।
क्या न्यौछावर करूँ मैं ? थाल के मणि माणिक्य को छोड़ दिया बृजरानी नें अपनें गले का सबसे मूल्यवान हार उतार कर किशोरी जी को न्योछावर में दे दिया फिर भी मन नही माना अपनें हीरे से जड़े कड़े उतार कर लाली के ऊपर न्यौछावर कर लुटा दिया पर नही इसके आगे ये हार , ये कड़े क्या हैं।

क्या दूँ ? क्या दूँ मैं ? बृजरानी भाव में उछल रही हैं।
कुछ नही मिला तो अपनी गोद में खेल रहे कन्हैया को ही “श्रीजी” के ऊपर घुमा कर उनके ही बगल में रख दिया इससे बढ़िया न्यौछावर और कुछ नही है गदगद् भाव से बोलीं बृजरानी।
पर ये क्या कन्हैया खुश कन्हैया को तो अपनी “प्राण” मिल गयीं वो खिसकते हुए अपनी “सर्वेश्वरी” के पास गए अपनें नन्हे करों से “प्रिया जू” के नन्हे नन्हें नेत्रों को छूआ बस फिर क्या था।

नेत्र खुल गए श्रीराधा के खोल दिए नेत्र श्रीराधा ने।
बृषभान जी ने देखा मेरी लाली नें अपनें नेत्र खोल दिए।
वो तो बृजपति का हाथ पकड़ कर नाचनें लगे बृजपति आप पूछ रहे थे ना कि मैं उदास क्यों हूँ ? मेरी कन्या ने नेत्र नही खोले थे।
ये बात फ़ैल गयी हवा की तरह पूरे बरसानें में अब तो सब लोग आनन्द मनाने लगे नाच गान फिर से शुरू हो गया।
कीर्तिरानी के नेत्रों से आनन्दाश्रु बह चले थे यशोदा भाभी आप सोच नही सकतीं मैं कितनी खुश हूँ आज।
हृदय से लगा लिया था बृजरानी नें कीर्तिरानी को
अरे देखो देखो ये दोनों कैसे खेल रहे हैं

ऐसा लग रहा है जैसे ये दोनों ही प्रेम के खिलौनें हैं और प्रेम से खेल रहे हैं प्रेम ही इनका सर्वस्व है।
श्रीराधा कृष्ण दोनों बालक रूप में एक दूसरे को देखकर किलकारियां भर रहे थे।
अरी कीर्ति बहुत खेल लिए अब थोडा दूध तो पिलाकर देखो।

मुखरा मैया सबसे ज्यादा प्रसन्न हैंउन्होनें आकर दूध पिलाने के लिए कहा कीर्ति रानी जब दूध पिलाने लगीं, नही पीया दूध मात्र कन्हैया को ही देखती रहीं “लली श्रीराधा” पर कन्हैया ने अपनें कोमल हाथों से श्रीराधा के मुख को कीर्ति रानी के वक्ष की ओर कर दिया मानों कह रहे हो, राधे अब तो मैं आगया अब तो दूध पी लो।बस प्रियतम के सुख के लिए प्रियतम की बात सर्वोपरि है ये जानकर श्रीराधा रानी ने दूध पी लिया।

हे वज्रनाभ ये प्रेम की लीला अद्भुत है इसे बुद्धि से नही समझा जा सकता ये तो हृदय के माध्यम से ही समझ में आता है ।
घर घर मंगल छायो आज, कीरति ने लाली जाई है।
पूजनीय हरि शरण जी

क्रमश:



(When Sri Radharani did not open her eyes)

“Only you, there is no option for you” What is the alternative to a true lover? For love, only ‘beloved’ is needed. Let those eyes burst that we look at anyone other than the ‘beloved’, let those ears burst that listen to anything other than the words of the ‘beloved’. Love demands exclusivity, thunderbolt love is like a fish, there cannot be an ideal of illusory love, the ideal of love is Pisces, which needs nothing except water, no milk, no ghee, only water and if water is not available, it is like to die, but if it is needed then it is Only water, oh blessed is the uniqueness of the fish.

Vajranabh is immersed in emotion after hearing the story of the appearance of his beloved Shri Radharani. Maharishi Shandilya says that there are some ideals of love which have been respected by lovers for ages. Fish Papiha Peacock… O Vajranabh, look at the loyalty of the fish, look at the loyalty of the papaya towards water, the papaya will die of thirst but will not drink anything except the Swati drop.

“Not even Ganga water”, said Maharishi Shandilya filled with frenzy of love. And the peacock, seeing the dark clouds in the sky, starts dancing, peacock has everything, clouds are everything, peacock loves clouds better than clouds? The cloud drops lightning on that peacock. Even after doing all this, where does the peacock’s love decrease? O Vajranabh, I thank you that it is because of you that I have got the opportunity to sing the praises of the holy character of this eternally blessed Sri Haripriya Sarveshwari Sri Radharani. Now listen to “Shri Radha Charitra”, whoever listens to this character, sings and meditates on it, love will appear in his heart, this is the absolute truth.

Why is Kirtirani our “Lali” not opening her eyes? Hey Maharaj, I too am feeling very worried. No, don’t say that, she will open her eyes.

Shri Radharani took birth but did not open her eyes. Not only this, she was not even drinking milk. This became even more worrying. In the palace, along with Brishabhan and Kirtirani, the people of the palace and Barsana also started feeling sad.

Look how happy our Brishabhan Maharaj and Kirtirani were, what happened to the girl, she is neither drinking milk nor opening her eyes. Such discussions had made their place in Barsane. Two days have passed but if the child does not drink milk like this, how will she survive? No, don’t say like this, our Maharaj Brishbhan has done a lot of penance and hence he has got this daughter. Oh God, please make this daughter healthy. Hey, the girl is healthy, haven’t you seen? How fast he is, what a glowing face he has, but he is not opening his eyes, that’s the only thing. Some people also say this, but everyone was of the same opinion that it seems as if the girl has sealed her lips, if she does not drink milk then she will be saved. How ? How many exorcists were called, how many Vaidyarajs came and even Kirtirani’s mother “Mukhara Maiya” also did a lot of “rai non” but everything was in vain, it did not make any difference.

The people of Barsana were so happy, but now a feeling of sadness had started spreading in Barsana. Everyone started praying to Lord Narayana that he should cure our “Bhanudulari”. We give all the virtues of our life to our Brishabhan ji, only his daughter is fine. Once done, open your eyes and start drinking milk. O thunderbolt, how do these innocent people know what divine love existence is going to show to the world.

Yashoda, you came to know that our friend Brishabhan has a daughter. Brijapati Nand started telling happily. When ? Brijrani became happy, she was feeding milk to her son Kanhaiya. When Kanhaiya heard this, he also started smiling while lying in his mother’s lap. When did they turn red? Brijrani asked. Nand said with great hesitation, bowing his head, it has been two days. Look, now Brishbhan will be very angry, I don’t know how I will convince him. Come on, no problem, I will explain to Kirtirani how much terror Kansa has spread to all these demons like Putana, Trinavarta, Shaktasur. I will explain to Kanhaiya from what kinds of troubles we have saved him. She will agree.

Brijpati you called me? A cowherd came and bowed to Nanda and asked. Yes, listen, decorate hundreds of bullock carts beautifully and do it quickly, we are going to make it rain. After getting Nand Rai’s permission, the cowherd went and decorated the bullock carts. Decorated them beautifully.

Yashoda and Brijpati Nand are sitting in a car. Look at Kanhaiya in Yashoda’s lap, see how he is laughing, how happy he is, he has never been so happy till date, “My Kanha is going to my in-laws’ house.” As soon as Yashoda said this, Kanhaiya burst into laughter. Nanda and Yashoda looked at each other and laughed loudly. It would have been nice if Rohini had also come. But Yashoda has gone to Mathura to meet her husband Vasudev, so she would have left Rohini Dau, Yashoda said again. No one leaves his son, leave it Yashoda, you too.

Brijpati is leaving while discussing like this. There are more than a hundred bullock carts, people are sitting in half the carts, in some carts they are carrying gems, rubies, gold, clothes, jewelery etc. in some carts, milk, butter, curd, all these are kept in some carts and are going towards Barsan. This rain is sad, people are dressed up but no one has that joy and enthusiasm. When Brijpati entered Barsana, he saw some sadness among the people. There is a lot of activity in the palace, Bandanwar has also been installed, banana pillars have been beautifully decorated, Rangoli has been made at the entrance of every Barsanwala, the square of pearls is also old. But there is some sadness. Entered the palace, there is a line of supplicants. Brishbhan ji himself is standing at the gate of the palace, wearing beautiful silk clothes, a turban on his forehead, a string of pearls around his neck, a gold bracelet in his hands. Brishbhan ji is happily giving away everything.

congratulations friend congratulations Brijapati Nand shouted loudly to the ruler of Barsana, Brishabhan. Brishbhan ji saw. Many decorated bullock carts are standing at the gate of the palace. Friends Brijpati and Brijrani

Brishbhan ji started running. When we went closer, we did not hug. We are angry with you. It has been two days and now you have come and we do not talk to you? A friend has the right to be angry. Yes, we have made a mistake, now whatever punishment you give, anyway I used to say that only these rainmakers have more wealth and wealth, so they should be made “Brajpati”. Nand ji folded his hands and said further, we are Brijpati in name only, the true Brijpati is you, O Brishbhan ji. So what punishment will you give us, Brishbhan ji? “Well, girls should not speak much in front of boys.” Smiling, Brijpati hugged Brishbhan ji.

What’s the matter? Are you sad? Hey Brishbhan ji, you stand firm on the truth, that is why your words are always true. You had said that I want redness and look, you have turned red, said Brijpati Nand laughing. But are you sad? Why ? Nand asked again. While walking in the palace, conversations were going on. Everyone had come near Kirtirani. Many Gokul’s friends were walking with Brijrani Yashoda. In their hands were plates filled with diamonds, pearls and rubies which Brijrani had brought to offer to “Lali”. .

Congratulations Kirtirani. Yashoda ran with Lala Kanhaiya in her lap. Yashoda Bhabhi Kirtirani got up and sat down. No where is the redness? I will see, where is the redness?

Here is our lovely redness shown by Kirti Rani. Oh how beautiful she is, oh Brijrani Yashoda kept looking at that “Bhanu Dulari”. What should I sacrifice? Brijrani left the ruby ​​on the plate and took off her most valuable necklace and gave it to Kishori ji as a sacrifice. Still, she did not agree. She took off her diamond-studded bangles and sacrificed them on Lali, but not before this, this necklace. What are these bracelets?

What should I give? What should I give? Brijrani is jumping with emotion. When nothing was found, she turned Kanhaiya, who was playing in her lap, over Shreeji and placed him next to him. There is no better sacrifice than this. Brijrani said with a heartbroken feeling. But is this Kanhaiya, Kanhaiya is happy, he got his “Pran”, he crawled towards his “Sarveshwari”, touched the tiny eyes of “Priya Ju” with his small hands, what was there then.

Shriradha’s eyes opened. Shriradha opened her eyes. Brishbhan ji saw my redness and opened his eyes. He started dancing holding Brijpati’s hand. Brijpati, you were asking why am I sad? My daughter had not opened her eyes. This news spread like the wind throughout the rainy season, now everyone started rejoicing and dancing and singing started again. Tears of joy were flowing from Kirtirani’s eyes. Yashoda Bhabhi, you can’t imagine how happy I am today. Brijrani had taken Kirtirani to her heart. Hey look at how these two are playing

It seems as if both of them are toys of love and are playing with love, love is their everything. Shri Radha Krishna, both of them were giggling after seeing each other in the form of children. Hey Kirti, you have played a lot, now try feeding me some milk.

Mukhara Maa is the most happy, she asked to come and feed the milk. When Kirti Rani started to feed the milk, she did not drink the milk. She kept looking at Kanhaiya only, “Lalli Shriradha”, but Kanhaiya turned Shriradha’s face towards Kirti Rani’s chest with his soft hands. It seemed as if you were saying, Radhe, now I have come, now drink the milk. Knowing that the matter of the beloved is paramount for the happiness of the beloved, Shri Radha Rani drank the milk.

O thunderbolt, this play of love is amazing, it cannot be understood through the intellect, it can be understood only through the heart. Today there is auspiciousness in every house, Kirati has become red. Respected Hari Sharan Ji

respectively

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