“सन्ध्या आरती” की दिव्य झाँकी…
“प्रेम” केवल एक शब्द का यह कैसा वृहत् ग्रन्थ है….
एक ही आँसू का कैसा विशाल सागर है…
एक ही दृष्टि में वैकुण्ठ से भी उच्च में स्थित निकुञ्ज का विलास दिखा जाता है…
एक ही आह से कैसा बबंडर उठा देता है…
एक ही स्पर्श से कैसी विद्युत धारा !
एक ही क्षण में लाखों युग… क्या कहें इस प्रेम को…आशीर्वादात्मक या सर्व विनाशी ?
🙏क्यों कि प्रेम सब कुछ नष्ट कर देता है…मन बुद्धि चित्त और अहंकार…सब कुछ खत्म…आप कई दिनों से पढ़ तो रहे हो…”सखियों का मन नही है…युगल का मन ही इनका मन है ।
🙏युगल की सोच ही इनकी सोच है…युगल का अहं ही इनका अहं है…इनका अपना कुछ नही… आहा ! यही तो है प्रेम का आनन्द…प्रियतम जो है…बस वही है…हम तो कब के मिट चुके सखी ! उफ़ ! कैसा ब्रह्म युग ? कैसा रहस्य ? कैसी अद्भुभुत विद्युत धारा ? वो नाचता हुआ कैसा दिव्य प्रेम प्रान्त…निकुञ्ज !
🙏जिस निकुञ्ज के मेढ़क भी बोलते हैं…और उनकी आवाज ब्रह्मा सुनते हैं…तो कुछ देर के लिये वो भी आनन्द रस सिंधु में डूब जाते हैं…सखियों के पायल की रुनझुन की आवाज से वैकुण्ठ में विराजमान महालक्ष्मी भी मुग्ध हो जाती हैं…उमा ललचाई नजरों से निकुञ्ज की ओर देखती हैं…जब वहाँ “सन्ध्या आरती” होती है ।
ये देश प्रेम का देश है…अद्भुत है… अद्भुताद्भुत है ।
चलिये…आज हम भी “सन्ध्या आरती” का आनन्द लें ।🙏
🙏चलो प्राण धन ! मेरे प्रिया प्रियतम ! सन्ध्या का समय हो रहा है…वन की शोभा सन्ध्या के समय विलक्षण हो जाती है…निकुञ्ज स्वयं मचल रहा है…आपको “सन्ध्या कुञ्ज” के दर्शन कराने के लिये…
रंगदेवी सखी ने हाथ जोड़कर युगलवर से प्रार्थना करी ।
और आप वन के पुष्प तोड़ कर हे स्वामिनी जु ! साँझी के विलास का सुख भी ले लेना…ललिता सखी ने उत्साह में भरकर कहा था ।
🙏हे प्यारी जु ! आप अतिशय सुन्दर हो… मेरी दृष्टि आप से हटती ही नही हैं…आपकी ये दिव्य रूप माधुरी का पान निरन्तर करता रहूँ, बस मैं तो यही चाहता हूँ…
प्रेम रस से पगे प्रीतम के सरस वचन सुनकर प्रिया का हृदय उल्लसित हो उठा था ।
🙏आप क्या कहना चाह रहे हो प्यारे ?
मुस्कुराते हुए कपोल को छूआ श्रीजी ने अपने प्राणधन के ।
🙏सखियन की अभिलाषा है कि… हे प्यारी ! साँझ को समय है गयो है…सो साँझी सुख विहार के लिये निकुञ्ज में पधारो !
श्याम सुन्दर ने प्रेम भरे वचनों से श्रीजी के हृदय में रस की सृष्टि की…मुस्कुराती हुयी श्रीजी ने… “पधारो प्यारे” यह कहकर उठकर खड़ी हो गयीं…श्याम सुन्दर भी तुरन्त उठ गए… सखियाँ तो पहले से ही तैयार ही थीं ।🙏
सूर्य अस्त होने जा रहा है…साँझ की वेला हो रही है ।
अरुणिमा पूरे निकुञ्ज को और सुन्दरता प्रदान कर रहा है…वयार में कुछ शीतलता आ गयी है…लता वृक्ष अत्यन्त कमनीय लग रहे हैं…नाना प्रकार के फूल खिले हुए हैं…यमुना का पुलिन है ।
यमुना पुलिन में ही सुन्दर सुन्दर कुञ्ज बने हुए हैं…उन कुञ्जों में सखियों के साथ युगलवर प्रवेश करते हैं ।
सुन्दर सुन्दर फूलों से लताएँ झुकी हुयी हैं…रंग-बिरंगी कलियों की भरमार है कुञ्जों में…
श्रीजी अपनी चूनरी में पुष्पों को तोड़ कर रख रही हैं…सखियाँ डलिया भी ले आईँ हैं…उसमें भी पुष्पों का चयन किया जा रहा है ।
पर श्याम सुन्दर ललित त्रिभंगी छटा बिखेरते हुए…स्तम्भ की तरह खड़े हो गए हैं…और टक टकी लगाकर बस देखे जा रहे हैं… त्राटक ही मानो लगा लिया है श्रीजी के मुख चन्द्र पर ।
खिलखिलाने लगीं सखियाँ… और इशारे में लाल जु को दिखाती हुयी बोलीं…सखियों ! देखो ! हमारे श्याम सुन्दर कैसे खम्भ की तरह खड़े हैं…न हिल रहे हैं न डुल रहे हैं…चकोर बन अपनी चन्द्रमा को बस देखे जा रहे हैं…ये झाँकी निराली है सखी ।
पर ये तो कुन्जन की शोभा देख रहे हैं…पुष्पों की सुषमा को रस ले रहे हैं…ललिता सखी बोलीं ।
अजी ! छोड़ो…ये ना तो कुञ्ज की शोभा देख रहे हैं…ना पुष्प न कली… ये तो बस अपनी प्यारी के मुख सुषमा के अनन्य व्रत धारी हैं ।
श्रीजी मुस्कुराती हुयीं…श्याम सुन्दर के पास में आईँ…प्यारे ! कहाँ देख रहे हो ? सखियाँ हँसी कर रही हैं… ऐसे मत देखो !
मैं तो इन कुञ्जन की शोभा को देख रहा हूँ…और ये रंगबिरंगे फूलों की सुषमा को निहार रहा हूँ…श्याम सुन्दर ने अपने आपको सम्भालते हुए कहा ।
गाल में हल्की सी गुलची मारी प्रिया जु ने… और मन्द मुस्कुरान बिखेरती हुयी बोलीं…क्यों झूठ बोल रहे हो…रसिक शेखर ! आप निरन्तर मेरी ओर ही तो देख रहे हो ।
मैं झूठ कहाँ बोल रहा हूँ…क्या ये वन, ये कुञ्ज, निकुञ्ज और ये पुष्प आपके ही श्रीअंग में नही हैं ?
🙏हे वृन्दावनेश्वरी जु ! ये वन और आपको ये विग्रह रूपी वन, दोनों अलग तो हैं नहीं…देखो ! कमल की गन्ध आपके श्रीअंग से प्रकट होती ही है…और गुलाब की तरह आपके लाल लाल अधर हैं…मोगरा वेला की सुभ्रता के दर्शन तो नित्य आपके मुखारविन्द में होते ही रहते हैं…तो हे श्यामा जु ! आपको ये श्रीअंग ही मेरो दिव्य कुञ्ज है…और इसी में मेरा मन रूपी भ्रमर मंडराता रहता है ।
🙏जय हो, जय हो… रसिक शिरोमणि के रसमयी बतियाँ की !
सखियाँ आनन्दित हो उठीं थीं श्याम सुन्दर की ये बातें सुनकर ।
श्रीजी का मन तो मयूर बन नाच रहा था अपने प्रियतम के साथ ।🙏
“सन्ध्या कुञ्ज” में सखियाँ लेकर आगयीं युगल सरकार को ।
ये कुञ्ज अत्यन्त सुन्दर है…नाना प्रकार के फूलों से सजा हुआ है ।
इस कुञ्ज के चारों ओर मोर इधर उधर घूम रहे हैं…पर जैसे ही इन मोरों ने युगल के दर्शन किये… बस पागलों की तरह नाचना शुरू कर दिया था…अपनी मधुर मधुर ध्वनि से कुञ्ज की शोभा को और दिव्य बना रहे थे ये सब…तोताओं का झुण्ड आगया… और ये सब तोते… बड़े प्रेम से “श्रीराधा…श्रीराधा”… नामोच्चारण कर रहे थे… फूलों का झूला बनाया था वृन्दा सखी ने सन्ध्या कुञ्ज में ।
उसी पर विराजमान हुए युगल सरकार ।
सखियाँ ने युगल के चरण पोंछे अपनी चूनरी से… और उस चूनरी को अपने माथे से लगाकर गदगद् हो गयीं थीं ।
सामने भूमि को हाथों से साफ करके… उसमें साँझी की रचना करने लगीं सखियाँ…कलियों से… फूलों से… फिर कलियों से… पहले सफेद फूल लगाये…पर बीच बीच में लाल रंग के फूल…फिर हरे रंग के…फिर पीले रंग के फूल…इस तरह से अत्यन्त सुन्दर साँझी की रचना करके श्रीजी को दर्शन कराया ।
ना ! ना… ऐसे नही स्वामिनी ! आप पहले इस फूलों के झूले से उतरिये…और इन “साँझी देवता” का पूजन कीजिये ।
ललिता सखी ने बड़े ही प्रेम से श्रीजी को झूले से उतारा… लाल जु भी उतर ही गए साथ में ।
“ये साँचो देवता है साँझी”…रंगदेवी ने सहज भाव से कहा…
सखी ! ये कौन सो देवता है ? हमने तो आज तक याको नाम हूँ नाय सुन्यो ? श्याम सुन्दर ने सखियों से पूछा ।
तो ललिता सखी ने तुरन्त उत्तर दिया… देखो ! हम पण्डित हैं या समय श्याम सुन्दर… या लिये पण्डित की बात मानवे में ही यजमान को हित हैं…या लिये कुछ तर्क नही, न कुतर्क ।
सब सखियाँ हँसी ललिता की बातें सुनकर…
जो आज्ञा पण्डितानी जु !…श्याम सुन्दर भी मौन हो गए ।
रंगदेवी ने कहा…हे स्वामिनी ! ये साँझी “प्रेम देवता” है…प्रेम का ही ये एक रूप है…इसलिये इसकी आराधना करने से… प्रियतम अपने अधीन हो जाते हैं…रंगदेवी ने रहस्योदघाटन किया ।
सखियों ! गलत बात है…प्रिया जु हमारे अधीन कैसे हों…याको भी तो कछु पूजा पाठ, हमें भी बताय दो ।
सब सखियाँ हंस पड़ीं श्याम सुन्दर की मधुर बातों को सुनकर… ।
श्रीजी ने साँझी की पूजा की ।🙏
“ओं ऊँ श्रीयं अधिराजः”
बड़े गम्भीर होकर श्याम सुन्दर आँखें बन्दकर के ये मन्त्र जपने लगे थे ।
🙏हे प्रेमपुजारी जी ! अब आप ये कौन सा मन्त्र जप रहे हो ?
सखियों ने हँसते हुए पूछा ।
चुप ! ये गुप्त मन्त्र हैं सखी !…
अरे ! हम को तो बता दो ये कौन सा गुप्त मन्त्र है ?
सखियों ने फिर पूछा ।
सखियों ! ये मन्त्र है…”ओं” यानि महाविष्णु… यानि मेरो अंश… और “ऊँ” यानि महाविष्णु की भार्या महालक्ष्मी… और “श्रीयं” यानि ये मेरे आश्रय में हैं…और “अधिराज” यानि सखियों ! मैं भी जिनके आश्रय में हूँ…वो मेरी “श्रीकिशोरी जी”…ये कहते हुए श्याम सुन्दर श्रीजी के चरणों में गिर गए थे ।
🙏”जय हो प्रेम पुजारी की…जय हो रसिक बिहारी की”
सब सखियाँ आनन्दित हो उठीं ।
और युगलवर को सबने फिर फूलों के झूले में विराजमान कराया ।
भोग लगाया…और बड़ी सुन्दर आरती सजाकर… आरती गाते हुए सब सखियाँ नाचने लगीं…
🙏”सन्ध्या आरती करति सहेली ! श्यामा श्याम गुण गर्व गहेली !!
निरखि निरखि छबि नैन नवेली ! अंग अंग रंगरेलि अलबेली !!
सोहति उर चौंसर चंबेली ! रस रंजन राजति रति रेली !!
तरु श्रृंगार प्रेम की बेली ! “श्रीहरिप्रिया” हरत मन हेली !! “
इसके बाद सखियाँ जय जयकार करती हैं…और पराभक्ति की प्रार्थना करती हैं…और भाव सिंधु में डूबते हुए गदगद् हो रही हैं ।
🙏सन्ध्या आरती की जय जय श्री राधे ! ! श्याम !!!🙏
शेष “रस चर्चा” कल…
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩