“श्रीवृन्दावनमहिमामृतम्” के लेखक श्रीप्रबोधानन्द सरस्वती महाभाग लिखते हैं कि… “श्रीधाम वृन्दावन में प्रवेश करते ही… यहाँ सब सत् चिद् आनन्द घन रूप हो जाते हैं” , यहाँ के युगलवर, यहाँ की सखियाँ, यहाँ के वृक्ष, यहाँ की लताएँ, यहाँ के पक्षी, यहाँ की यमुना, यहाँ का कण-कण ।… ये प्रेम राज्य है… यहाँ कुछ भी जड़ नही है… सब चिन्मय है… सब दिव्य है ।
साधकों ! ये तो दिव्य प्रेम राज्य की बातें हैं… एक सांसारिक लड़के लड़की के प्रेम में भी ये देखा गया है कि… लड़का आकाश के चन्द्रमा से बातें कर रहा है… लड़की बादलों को दूत बनाकर भेज रही है ।
फिर ये तो योगीन्द्र दुर्लभ प्रेमराज्य निकुञ्ज है… यहाँ के लता पत्र पुष्प सब सखियाँ ही हैं, सब सच्चिदानन्दघन हैं – अगर ये कहा जा रहा है… तो ये सामान्य-सी बातें हैं… जहाँ स्वयं ब्रह्म अपनी आल्हादिनी के साथ मिल रहा है… और अनन्त काल से मिल रहा है… फिर भी तृप्त नही हो रहा… फिर ऐसे “प्रेम लोक” की बातें हम क्या करें !… क्या कहें !! बुद्धि काम करना बन्द कर देती है ।
सखियाँ – जो चिद् शक्ति हैं… उन्हीं की तृष्णा ये है कि युगल को भर नयन देखती रहें… पर “तृष्णा ही जहाँ तृप्ति बन जाए… और तृप्ति ही जहाँ तृष्णा का रूप ले ले”… ऐसे प्रेम राज्य में कुछ भी तो असम्भव नही है ।
यमुना का “निकुञ्ज लीला” में अपना स्थान है… यमुना न हो तो निकुञ्ज लीला सम्भव ही नही… इसलिये यमुना को “रसरानी” कहा गया है… उनकी आज्ञा या कृपा के बिना इस प्रेमराज्य में प्रवेश ही नही है… आपको पता है… ये निकुञ्ज यमुना से घिरा हुआ है… और यमुना युगलप्रिया हैं… गोलोक में जहाँ यमुना सूर्य पुत्री हैं… यहाँ निकुञ्ज में यमुना आनन्दतत्व की प्रसारिका हैं ।
चलिये – अब ध्यान में बैठते हैं… भाव राज्य में चलिये… आँखें बन्द करके… यमुना जी का ध्यान कीजिये… क्योंकि… आज की लीला यहीं यमुना जी में होगी…
वन विहार करके युगल सरकार…
🙏”अष्ट सखिन के झुण्ड बिच, ठाड़े धीर समीर !
गल बहियाँ दीये दोउ, निरखत यमुना नीर !!”
वन विहार करके प्रमुदित हैं युगल… उनकी प्रसन्नता देखते ही बन रही है… पीछे सखियाँ का झुण्ड है…
पर ये क्या हुआ ! सामने यमुना बहती हुयी दिखाई दीं ।
प्यारी ! देखो ! यमुना जी कितनी सुन्दर लग रही हैं… श्याम सुन्दर ने दिखाया…
हाँ… प्रियतम ! बस इतना ही बोलीं श्रीजी… और यमुना को निहारने लगीं…
प्यारी ! आपकी नीली साड़ी का जैसा रंग है… वैसा ही यमुना का रंग है… श्याम सुन्दर सहज बोले ।
नही नही… ऐसा लग रहा है कि आप ही नहा कर निकले हो प्यारे !… और आपने यमुना में अपना रंग छोड़ दिया है… श्री जी बोलीं ।
उधर देखो ! श्रीराधे ! अनन्त कमल के पुष्प खिले हैं… जितने रंग हैं सब रंगों के फूल खिले हैं…
हाँ… ऐसा लग रहा है कि यमुना ने आज नख शिख अपना कमल के पुष्पों से श्रृंगार किया है… कितनी सुन्दर शोभा हो रही है ।
हे श्याम ! जल कितना निर्मल है… और इसकी उछलती तरंगें भी कितनी शोभायमान लग रही हैं… है ना ? श्रीराधा जी पूछती हैं ।
उस तरफ देखिये प्रिया जु ! उस तरफ देखिये ! यमुना में जो भँवर पड़ रही है… उसकी शोभा तो और भी विलक्षण है ।
बस ये कहते हुये… युगल सरकार मौन हो गए… और यमुना को शान्त भाव से देखने लगे… सच में यमुना का जल गम्भीर था… और अत्यन्त स्वच्छ… निर्मल ।
तभी –
यमुना जल से एक सुन्दर सखी प्रकट हुयीं… ये यमुना जी थीं ।
इनका रंग बिल्कुल श्यामसुन्दर की तरह ही था… ये प्रसन्न मुख मुद्रा से भरी थीं… आयीं… और युगल के चरणों में इन्होंने प्रणाम किया… और हाथ जोड़कर बोलीं… अगर आप दोनों मुझ पर प्रसन्न हैं तो मैं कुछ विनती करना चाहती हूँ ।
हाँ हाँ… अवश्य करो… क्या कहना है यमुने ?
श्यामसुन्दर ने मुस्कुराते हुये पूछा ।
मेरे “कमल कुञ्ज” में आप अगर पधारें युगल सरकार ! तो मैं अपने आपको धन्य समझूँगी… यमुना ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की ।
कहाँ है आपका “कमल कुञ्ज” ? प्यारे ! मुझे देखना है… हाँ हाँ हम चलेंगे… यमुने ! बताइये कहाँ है कमल कुञ्ज ?
श्रीजी उतावली हो उठीं थीं ।
मेरे अहोभाग्य !
इतना कहकर आगे-आगे यमुना जी चलीं और पीछे युगल सरकार ।
दिव्य “कमलकुञ्ज” है… नाना प्रकार के कमल वहाँ खिले हुए हैं…
उन कमलों में अनन्त भौरें गुंजार कर रहे हैं… सखियाँ आनन्दित हो गयीं… उन कमल के फूलों से सुगन्ध बह रही है… जो पूरे वातावरण को मादक बना रही है…
एक सिंहासन है… जो कमल के पुष्पों से तैयार किया यमुना जी ने… उसी पर युगल सरकार को विराजमान कराया…
चरणों को पखारने लगीं हैं यमुना जी… फिर हाथ जोड़कर बोलीं… आप मेरे कुञ्ज में पधारे हैं… इसलिये कुछ आपको भोग आरोगना ही पड़ेगा… श्याम सुन्दर ने प्रिया जु की ओर देखा… प्रिया जी बस मुस्कुराईं… यमुना सखी समझ गयीं थीं कि मेरा भोग स्वीकार है… बस उसी समय… सुवर्ण की थाल में…
मेवा, मखाने, जल के सुन्दर-सुन्दर फल… चौकी पर सजा कर रख दिया यमुना ने… प्रिया लाल ने जैसे ही भोग पाने के लिये आगे हाथ बढ़ाया… यमुना जी ने हाथ जोड़कर कहा… नही… हे युगलवर ! मेरे हाथों से आप दोनों इस भोग को स्वीकार करें… फिर स्वयं यमुना जी ने अपने हाथों से पहले श्री राधा जी को फिर श्याम सुन्दर को मेवादि बड़े प्रेम से पवाये… उस समय की झाँकी देखते ही बनती थी… सब आनंदित थीं सखियाँ… जयजयकार कर रही थीं बीच-बीच में ।
सखियों को प्रसादी दी गयी… प्रसादी का लोभ ये छोड़ नही पाती हैं… बड़े प्रेम से सबने प्रसादी ली… रंगदेवी ने मुँह धुलाया युगल का… और रुमाल से पोंछा… स्वर्ण पात्र में बीरी (पान) युगल को दी गयी… पहले श्रीजी को पान खिलाकर स्वयं उनकी चर्वित पान को लाल जी ने पाया ।
अब ? रंगदेवी ने आज्ञा माँगी यमुना जी से…
पर देहभान भूली यमुना के कुछ समझ में नही आ रहा कि अब अपने पास से कैसे विदा करें युगल को…
कमल के पुष्पों से सजी आरती मंगाईं… और बड़े भाव रस से आरती करने लगीं… सब सखियाँ यमुना जी का ये प्रेम देखकर मुग्ध हैं आज ।
🙏निरखि हिताई दुहुँन की, हाव भाव हिय धारी !
सजि आरती वारति सबै, प्रातः मुदित सहचारी !!
शेष “रसचर्चा” कल –
🚩जय श्रीराधे कृष्णा🚩
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