हमें सम्बन्ध और सम्बन्धी को समझना है सम्बन्धी हमारी आत्मा का है हम जीवन भर घर परिवार और समाज के साथ सम्बन्ध बनाते और निभाते हैं। एक के बाद एक नया सम्बन्ध जोङने में प्रेम भाईचारे और खुशी की खोज करते हैं बहुत उत्साहित होते है।
बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। हम सब सदस्यों से मिलकर बात करके खुश होते हैं। वह खुशी कितने दिन की, हमे असली खुशी प्रेम आनंद को सम्बन्धो का सम्बन्धी देगा। खुशी मिलती नहीं है। खुशी होती तब मिलती, खुशी और आनंद बाहर नहीं है बाहर सब खुशी और आनंद के खरीदार है।
हमें सम्बन्धो के सम्बन्धी ईश्वर के साथ पक्का सम्बन्ध बनाना है। हमे खुशी पर नजर न रखकर आत्म आनंद की खोज करनी है। सम्बन्ध शरीर का मन का है शरीर की मृत्यु के साथ ही सब सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं।
सम्बंधी आत्मा का है। सम्बंधी शरीर का नही आत्मा का है सम्बन्ध को शरीर के साथ रखो। इस पंच भौतिक शरीर की मृत्यु सत्य है
मुझे सम्बंधी का बन जाना चाहीए मेरा सम्बंधी सबका ईश्वर है।मुझे ईश्वर के साथ पक्की डोर बांधनी है। नहीं तो फिर फिर के फेर में मै घुण की तरह पिसा जाऊगा। जन्म और मृत्यु के चक्कर को मिटाने के लिए परमात्मा ने मुझे मानुष जन्म दिया है।
मै इस पृथ्वी पर खाने पीने और सोने के लिए नहीं आया हूँ। मेरे जीवन का लक्ष्य परम के आनंद की झंकार से पृथ्वी माता को सिंचना है। हे पृथ्वी माता मै एक पाप की राशि तुझ पर बोझ रूप हूं। हे पृथ्वी माता ये नाम धन की थोड़ी सी कमाई तेरे चरणों में समर्पित करती हूँ। हे माता सत्य स्वरूप ईश्वर से कब मिलन होगा दिल की दशा को तुमसे अधिक कोन जानता है।
मुझे हर क्षण अन्दर बैठे परमात्मा में लीन होना है। अन्दर की नज़र गहरी होती है तब बाहर सब फीका है। अन्तर्मन का रस महारास है हमे जीतेजी निश्चल आनंद से सराबोर होना हैं।
न जाने कब मोत की आंधी आ जाए मै संसारिक सम्बन्ध में ही उलझ कर रह जाऊँ। हे स्वामी मेरे सबकुछ आप हो। अ आत्मा ये तेरा घर नहीं है। तु प्रभु प्राण नाथ के पास जा ईश्वर की बन जा। जय श्री राम अनीता गर्ग।