परमात्मा को प्रणाम है गुरु देव को प्रणाम प्रभु प्राण नाथ, आत्मसमर्पण, आत्म स्वरूप आत्म तत्व,आत्मा ईश्वर है विश्वात्मा ।चेतन का चिन्तन, चित को विश्वात्मा में लीन कर देना है पुरूषोत्तम आत्मज्ञान हरी ऊं त्त सत्, ईश्वर हृदय में विराजमान है। परमात्मा भक्ति ज्ञान और वैराग्य के आसन पर विराजमान होते हैं आत्मा अजर और अमर हैं। परम शांति, सत्य, दिक्षा, परमेशवर, दीनानाथ, राम कृष्ण हरि राधे राधे जय श्री राम ये सब हम उठते बैठते मन ही मन अपने आप को पढाते रहेंगे तब कुछ समय के बाद हम समझ पाएगें कि मन के अन्दर भाव और विचार अपने आप पवित्र हो गए हैं जय श्री राम
अनीता गर्ग
