भगवान की पूजा, नमन और वन्दन करते हैं।भगवान का सिमरण आरती करते हैं यह सब नित्य हम शरीर से करते हैं। जो किरया शरीर से होती है उसमें कर्ता कर्म है। जंहा करता है वहाँ मै है। मै यह वह करता हूँ। यह सब जब तक शरीर में मन में कर्ता पन का भाव है तब तक है जिस दिन कर्ता मर जाता है उस दिन से हम भगवान नाथ श्री हरी का स्मरण करते हैं।सिमरण माला आसन समय पर है। स्मरण मे माला और आसन नहीं है भक्त भगवान का स्मरण हर परिस्थिति मे करता है ।दिल के तार में झंकार पैदा हो जाती है तब थमती नहीं है। कई बार तो भक्त को यह संशय हो जाता है यह झंकार कोन प्रकट कर रहा है भगवान और भक्त दो नहीं है। भगवान ही कर्ता है भगवान ही पुजारी और पुजक हैं। भगवान कहते हैं मै माला के मनके में बंधता नहीं हूं। प्रेम की डोर से मै चला आता हूँ।भक्त भी जानता है यदि मै लगातार नाम जप करूगा तो मेरे स्वामी को कष्ट होगा। इसलिए वह मन ही मन भगवान की प्रार्थना करता है शीश नवाता है दिल की आंखों से निहारता है। बाहरी सब भाव भुल जाता है। भगवान बस तुम्हारा चिन्तन मनन चलता रहे। शरीर संसार के लिए है। संसार को शरीर दे दो अन्तर्मन प्रभु प्राण नाथ का है भक्त कहता है कि हे नाथ ये अन्तर्मन की विरह वेदना जागृत हो।मै तुम्हे अन्तर्मन से भजता रहु ।तङफ में शरीर हो सकता है अन्तर्मन के विरह में शरीर नहीं है भगवान ठाकुर है।भगवान दिया बाती भी भगवान हैं भगवान से भिन्न भक्त को कुछ दिखाई नहीं देता है। भक्त भाव में भरकर भगवान से कहता है कि हे नाथ यह आपकी विशेष कृपा है आप अन्तर्मन मे बैठकर मुझ पगली को नाम ध्वनि सुनाते हो यह बाहर से प्राप्त आनंद नहीं है । जैसे ही नाम ध्वनि थोड़ी सी धीमी पङती है सांस थम जाना चाहती है दिल में चिन्ता के बादल उमङते है। भक्त फिर बोल कर भगवान भाव में लीन होना चाहता है। सब किरयाओ को थाम देना चाहता है अपने भगवान का बन जाना चहता है। स्तुति भाव जाग्रत हो जाता है। हे मेरे भगवान मै तुम्हे बार बार शीश नवाकर नमन और वन्दन करती हू तुम जीवन हो मेरे अन्दर जितने भी शुभ गुण है हे नाथ ये सब आप के दिये हुए हैं। हे नाथ एक पल की भी दुरी अब सहन नहीं होती है। मेरे भगवान क्या कभी तुम्हें नज़र भरकर देख पाऊंगी ।क्या प्रेम परवान चढ़ेगा दिल के तार में झनकार पैदा कब होगी। तुम कंहा छुप गए हो ।फिर परम सत्य के स्वरूप परम पिता परमात्मा को प्रणाम करता है तुम आत्मा हो तुम परमात्मा हो तुम ही राम तुम ही कृष्ण हो। तुम मुझमें रहकर मुझी से पर्दा करना चाहते हो लेकिन दिल की पुकार तुम्हें परदे में छुपने नहीं देती है। नाम ध्वनि बज रही है।भक्त भगवान के चरणो में कभी बाहर से तो कभी भीतर से नतमस्तक है। भक्त जानता है कि बाहर के हाथ में इतना दम नहीं है कि वो प्रभु प्राण नाथ के प्रेम को निभा पाये। अन्तर्मन कभी प्रभु प्राण नाथ को छोड़ना नहीं चाहता है। दिल प्रभु का बन जाता है दिल तो एक ही है एक मे ही लीन है। अन्तर्मन की दशा के लिए शब्द छोटे पङ जाते हैं।राम राम राम राम जय श्री राम अनीता गर्ग
भगवान की पूजा, नमन और वन्दन करते हैं।भगवान का सिमरण आरती करते हैं यह सब नित्य हम शरीर से करते हैं। जो किरया शरीर से होती है उसमें कर्ता कर्म है। जंहा करता है वहाँ मै है। मै यह वह करता हूँ। यह सब जब तक शरीर में मन में कर्ता पन का भाव है तब तक है जिस दिन कर्ता मर जाता है उस दिन से हम भगवान नाथ श्री हरी का स्मरण करते हैं।सिमरण माला आसन समय पर है। स्मरण मे माला और आसन नहीं है भक्त भगवान का स्मरण हर परिस्थिति मे करता है ।दिल के तार में झंकार पैदा हो जाती है तब थमती नहीं है। कई बार तो भक्त को यह संशय हो जाता है यह झंकार कोन प्रकट कर रहा है भगवान और भक्त दो नहीं है। भगवान ही कर्ता है भगवान ही पुजारी और पुजक हैं। भगवान कहते हैं मै माला के मनके में बंधता नहीं हूं। प्रेम की डोर से मै चला आता हूँ।भक्त भी जानता है यदि मै लगातार नाम जप करूगा तो मेरे स्वामी को कष्ट होगा। इसलिए वह मन ही मन भगवान की प्रार्थना करता है शीश नवाता है दिल की आंखों से निहारता है। बाहरी सब भाव भुल जाता है। भगवान बस तुम्हारा चिन्तन मनन चलता रहे। शरीर संसार के लिए है। संसार को शरीर दे दो अन्तर्मन प्रभु प्राण नाथ का है भक्त कहता है कि हे नाथ ये अन्तर्मन की विरह वेदना जागृत हो।मै तुम्हे अन्तर्मन से भजता रहु ।तङफ में शरीर हो सकता है अन्तर्मन के विरह में शरीर नहीं है भगवान ठाकुर है।भगवान दिया बाती भी भगवान हैं भगवान से भिन्न भक्त को कुछ दिखाई नहीं देता है। भक्त भाव में भरकर भगवान से कहता है कि हे नाथ यह आपकी विशेष कृपा है आप अन्तर्मन मे बैठकर मुझ पगली को नाम ध्वनि सुनाते हो यह बाहर से प्राप्त आनंद नहीं है । जैसे ही नाम ध्वनि थोड़ी सी धीमी पङती है सांस थम जाना चाहती है दिल में चिन्ता के बादल उमङते है। भक्त फिर बोल कर भगवान भाव में लीन होना चाहता है। सब किरयाओ को थाम देना चाहता है अपने भगवान का बन जाना चहता है। स्तुति भाव जाग्रत हो जाता है। हे मेरे भगवान मै तुम्हे बार बार शीश नवाकर नमन और वन्दन करती हू तुम जीवन हो मेरे अन्दर जितने भी शुभ गुण है हे नाथ ये सब आप के दिये हुए हैं। हे नाथ एक पल की भी दुरी अब सहन नहीं होती है। मेरे भगवान क्या कभी तुम्हें नज़र भरकर देख पाऊंगी ।क्या प्रेम परवान चढ़ेगा दिल के तार में झनकार पैदा कब होगी। तुम कंहा छुप गए हो ।फिर परम सत्य के स्वरूप परम पिता परमात्मा को प्रणाम करता है तुम आत्मा हो तुम परमात्मा हो तुम ही राम तुम ही कृष्ण हो। तुम मुझमें रहकर मुझी से पर्दा करना चाहते हो लेकिन दिल की पुकार तुम्हें परदे में छुपने नहीं देती है। नाम ध्वनि बज रही है।भक्त भगवान के चरणो में कभी बाहर से तो कभी भीतर से नतमस्तक है। भक्त जानता है कि बाहर के हाथ में इतना दम नहीं है कि वो प्रभु प्राण नाथ के प्रेम को निभा पाये। अन्तर्मन कभी प्रभु प्राण नाथ को छोड़ना नहीं चाहता है। दिल प्रभु का बन जाता है दिल तो एक ही है एक मे ही लीन है। अन्तर्मन की दशा के लिए शब्द छोटे पङ जाते हैं।राम राम राम राम जय श्री राम अनीता गर्ग