हमारे दिल में तृष्णा बढे तो प्रभु प्राण नाथ से प्रेम की परमात्मा से मिलन की हो। परम पिता परमात्मा का हम चिन्तन और मनन इस तरह से करे की हमे स्वयं भी यह ध्यान न रहे कि मैं भगवान को याद कर रहा हूं भगवान से प्रीत बढ जाती है तब भक्त के जीवन का एक ही लक्ष्य होता है।
भगवान की सेवा करना भगवान के दर्शन का भाव जाग्रत करना। भगवान को हर समय हर घङी याद करना कब आत्म तत्व जाग्रत हो। भक्त को कभी कभी ऐसे महसूस होता जैसे सब में परमात्मा बैठे हैं।परमात्मा ही सब करते हैं परमात्मा के चिन्तन के साथ आत्म तत्व का चिन्तन होने लगता है।
भक्त बार बार कर जोङकर प्रार्थना करता है कि हे मेरे स्वामी स्वामी भगवान् नाथ हे जगदगुरु हे जगत पिता हे आत्माराम यह आपकी मुझ पर विशेष कृपा है तभी यह आत्म चिन्तन होता है
आप गुरु का रूप धारण कर के आए हैं मै आपके चरणों में शत शत कोटि प्रणाम करती हू। भक्त भगवान को दिल रूपी आसन पर विराजमान करके भगवान के नाम धन के अमृत का रसपान करता है ।
भगवान की विनती और स्तुति में जो भाव और आन्नद प्राप्त होता है। भक्त श्री हरि को समर्पित कर देता है। भक्त चाहता है कि क्षण भर भी भगवान को न भुलु ।भाव विभोर हो भक्त परम पिता की प्रार्थना करता और प्रार्थना करते करते
दिल में प्रभु भगवान नाथ के दर्शन की इच्छा तृव हो जाती है भगवान से मिलन की तङफ बढ जाए। तङफ तभी बढती है। जब भक्त भगवान से मिलन चाहता है भक्त के हृदय में एक ही भाव भगवान कैसे होंगे भगवान से कैसे मिलन हो भगवान क्या पता अभी प्रकट हो जाए। क्या मै भगवान को देख पाऊंगी ।भगवान मेरी तरफ भी नजर करेगे।
सांस सांस से भगवान को भजते हुए भक्त अपने आप को भुल जाता है। दर्शन की इच्छा भी गोण हो जाती है बस सम भाव से भजता है। सम भाव में आने पर भक्त का एक भाव परमात्मा रह जाता है। मै मर जाता है। मै भगवान का सिमरण और स्मरण का भाव भी खत्म हो जाता है भगवान ही भगवान को भजते है ।जीते जी मै का मर जाना प्रेम की गहराई है मै के मरने पर एक परम तत्व परमात्मा रह जाता है शरीर का भान मिट जाता है। इन सब भावो में कोई नियम नहीं है सम्बन्ध और समर्पण की गहराई है यह मानसिक भाव है जय श्री राम अनीता गर्ग