निराकार भाव में अध्यात्मवाद

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साकार ही निराकार है और निराकार ही साकार है। एक मां का छोटा बच्चा है। बच्चे का मां लालन पालन बहुत प्रेम से करती है। बच्चा स्कूल चला जाता है। तब बच्चा मां के दिल और दिमाग में समाया हुआ है। मां जो भी कार्य करती है। बच्चे को दिल से याद करते हुए कहती हैं कि मै जल्दी से कार्य कर लु बस अब मेरा लाल आने ही वाला है। फिर घङी देखती तो कभी जल्दी जल्दी अन्य काम करती है ऐसे हर क्षण अपने लाल को दिल से याद करती। इस तरह से मां का बच्चे में प्रेम साकार और निराकार दोनों रूप से समाया हुआ है। हम भगवान् को स्टार्टीगं में साकार रूप में भजते हैं। दिपक प्रज्वलित कर भगवान् की आरती और स्तुति करते हैं शिश नवाकर अन्तर्मन से प्रणाम करते हैं। हमारे दिल में धीरे धीरे भाव बनने लगते हैं। हम जब अन्य कोई बात करने के लिए नहीं मिलता तब अपने भावों को स्तुति के माध्यम से भगवान से बात करते हैं। मन ही मन अपने मालिक से बात करने लगते हैं। एक समय के बाद संसार में परिवार में अपनापन दूर होता जाता है। ऐसे में हम भगवान् को बार बार पुकारते हैं। भगवान् को मन्दिर और मुर्ति में देखते हुए जब मन से बातें करने लगते हैं तब भाव परिवर्तित हो जाते हैं। हमारा जब मन करता है तब भगवान से अपने विचारों में दिल ही दिल में अपने स्वामी के पास नतमस्तक हो जाते हैं। पुजा समय पर करते हैं। भाव को व्यक्त करते हुए भक्त समय की सीमा में नहीं बंधता है।

ऐसे में धीरे धीरे भगवान् भक्त के नैनो में समा जाते हैं। भक्त को संसार की हर चीज में जङ चेतन सब में भगवान् समाए हुए दिखते हैं। दिल मे उमंग और आनंद समा जाता है। दिल मे परमात्मा से मिलन की प्रभु को देखने की तङफ जग जाती है। तङफ सीमाओं को तोङ देती है। दरश की उमंग जिसके दिल में जागी है। वहीं घङी घङी पुकारता है। दिल मे लगन का दिपक जल जाता है। भगवान् के ध्यान और चिंतन में डुबा हुए को ही चीज के स्पर्श में भगवान की अनुभूति हो जाती है। भक्त कहता है ये मै रोटी पर घी नहीं लगा रहा हूँ। ये मेरे स्वामी की सेवा कर रहा हूं।मेरे स्वामी के चरणों की मालिश कर तब भक्त को बाहर की जरूरत नहीं होती है। बाहरी दिपक में असली दर्शन नहीं है दिल के दिपक में भगवान प्रकट हो जाते हैं। ऐसे भक्त के दिल में भगवान् हर क्षण विराजमान है। भक्त के दिल में कभी आनंद समा जाता है प्रभु प्राण नाथ को याद करके नाचता गाता है तो कभी भगवान से कहता है कि हे मेरे प्रियतम तुम मुझे कब पुरण करोगे ।कोनसी वह घङी होगी जब मैं तुम्हारे दर्शन कर पाऊगी। हे भगवान। जय श्री राम

अनीता गर्ग

In such a situation, gradually the Lord gets absorbed in the nano of the devotee. The devotee sees the Lord absorbed in everything that is conscious in the world. There is joy and happiness in the heart. In the heart, the desire to see the Lord awakens to meet the Supreme Soul. It breaks the boundaries. Darash’s zeal is awakened in his heart. That’s where the clock calls. The lamp of passion burns in the heart. Only one who is immersed in the meditation and contemplation of the Lord, gets the feeling of God at the touch of the thing. The devotee says that I am not applying ghee on the roti. I am serving my master. By massaging the feet of my master, then the devotee does not need outside. There is no real vision in the outer lamp, God appears in the heart’s lamp. The Lord is present in the heart of such a devotee every moment. Sometimes there is joy in the heart of the devotee, remembering Pran Nath and singing, sometimes he tells God that when will you fulfill me, my dear. What will be the time when I will be able to see you. Oh God. Long live Rama

Anita Garg

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