साधक परमात्मा से बात करते हुए कहता है कि हे परमात्मा जी ये हाड मास की काया है। मुझे इस काया में एक भी शुभ गुण दिखाई नहीं देता। यह विकारों से भरी हुई काल कोठरी है। इस कोठरी को भक्ति की ज्योत से उजागर करना है। जिस से इस मे शान्ति स्थापित हो जाए। साधक कहता है कि इस कोठरी को कितना ही खिलाओ पिलाओ इस की भुख शान्त होने वाली नही है। यह दिन प्रति दिन बिगड़ती ही जाती है। राम नाम का रस ऐसा मिठा हैं।
राम नाम के रस को पिने पर जन्म जनमान्तर की भुख शान्त हो जाती है। जिसने भुल से भी एक बार राम नाम का रस पी लिया उसके लिए संसार के सब पदार्थ फीके हैं।राम नाम का रस पीने वाला सबसे पहले कर्तव्य में अपने भगवान् को ढुंढता है। साधक कहता है कि मेरे कर्म में मेरा भगवान् छुपा बैठा है। भगवान् भक्त की कर्म निष्ठा की, समर्पण भाव की सत्यता की अनेक बार परिक्षा लेते हैं। तब कहीं साधना मार्ग को देते हैं।
अनीता गर्ग
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