साधक का प्रेम 2

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तन और मन दोनों भगवान के समर्पित नहीं होंगे। हृदय में मिलन की तङफ जागृत नही होगी। हर क्षण सांवरे का इन्तज़ार होगा। जैसे एक मां छोटे बच्चे के आने का इन्तजार करती है समर्पित भाव दिल से नहीं होगा तब तक इन्सान ऐसे ही चक्र लगाता रहेगा। हम भगवान को दिपक मुर्ति और माला में ग्रथों में ढुंढ कर पार पाना चाहते हैं।

अन्तर्मन में नहीं खोजते है। भगवान की भक्ति एक ऐसा रस है। जो आपकी हर किरया कर्म में टपक जाता है। मै रात को प्रैस कर रही थी भगवान के ध्यान में खोई हुई भगवान से बात कर रही हूं और भगवान से कहती हूं।

हे मेरे स्वामी तु जितना मुझमें समाया है उतना ही तु इन वस्त्रों में प्रैस में समाया है। ये मै किसी अन्य के वस्त्र प्रैस नहीं कर रही हूं ये मेरे स्वामी भगवान् नाथ के वस्त्र प्रैस कर रही हूं।

हृदय में प्रेम समा जाता है तब मुर्ति बोलती है भक्त कहता है कि हे प्रभु वस्त्रों को सहलाकर प्रभु के चरणों में प्रेम समर्पित करता है ।जय श्री राम जय श्री राधे कृष्ण राधे राधे जी जय श्री राम अनीता गर्ग

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