आहा ! प्रेम का स्वरूप अनिर्वचनीय है ये सूत्र अद्भुत है ।
प्रेम के विषय में जो भी बोलेगा कहेगा वह अधूरा ही होगा ….क्यों की अनिर्वचनीय है प्रेम ।
बाबा !
इस पर तो आप ही बोलिये …”अनिर्वचनीय तत्व” पर मैं क्या बोलूँ ! मैं क्या बोल सकता हूँ ।
गदगद हृदय से बाबा के चरणों में हम लोग नतमस्तक होकर प्रार्थना कर रहे थे
मैं कह दूँ …मैं जो भी प्रेम पर कहने जा रहा हूँ वो अधूरा ही होगा …प्रेम पर पूरा कोई बोल ही नही सकता । बाबा भी आनंदित होकर गा उठे थे ।
ज्ञान ईश्वर को प्रकट नही करता ….ज्ञान तो आपके भीतर जो अज्ञान है उसको नष्ट मात्र करता है ……ज्ञान का कहना है ईश्वर तो आपके अन्दर है ही ..अज्ञान के कारण ही उसकी अनुभूति आपको नही होती …इसलिए ज्ञान अज्ञान को हटाने का काम करता है ।
किन्तु प्रेम ! विचित्र है ….ईश्वर को वो पूरा का पूरा अपने हृदय उतारना चाहता है …अधूरा नही …प्रेम अधूरा चाहता ही नही है …वो पूरा चाहता है। बाबा भावातिरेक में कहते हैं। ये असम्भव है ….ये सम्भव नही है। ईश्वर तो असीम है अखण्ड है …उसे पूरा कैसे उतारा जा सकता है किन्तु …प्रेम की ये जिद्द है …( ये कहते हुए बाबा के अश्रु बह रहे थे और वो मुस्कुरा भी रहे थे ) …..इसलिए प्रेम अनिर्वचनीय है …..अब ऐसे प्रेम के बारे में क्या कहें ?
देखो ….जैसे ब्रह्म को अनिर्वचनीय कहा गया है …ऐसे ही प्रेम भी यहाँ अनिर्वचनीय है …..ब्रह्म, शब्द का विषय कहाँ है ? ब्रह्म इंद्रियों से परे है ….ऐसे ही क्या कहोगे प्रेम के बारे में ? क्यों की प्रेम और ब्रह्म दोनों एक हैं ।
प्रेम प्यास है ? नही प्रेम तृप्ति है ….नही नही प्रेम तो कभी न बुझने वाली प्यास है ….तो प्रेम तृप्ति का परमरूप है …..तृप्ति और प्यास दोनों ही है प्रेम ।प्रेम दिल से बहती अविरल धारा है
श्री राधारानी का रूप क्या है ?
प्यास या तृप्ति ?
दोनों ही हैं …..कभी प्यास बन जाती हैं तो उनके उन मोटे मोटे नयनों से बस सावन भादौं की तरह बरसात होती रहती है ….तो कभी तृप्ति का रूप बन अपने हृदय में विराजमान प्रियतम में मग्न हो जाती हैं ……ये दोनों साथ साथ चलते हैं ।
“प्यारी जू को रूप मानौं प्यास ही को रूप है”
इसलिए तो कहा गया है कि अनिर्वचनीय है प्रेम । क्या कहोगे प्रेम के विषय में ?
आली , रस की रीत निराली,
प्याली भरे न खाली होय ।
बाबा ये गाते हैं …..इस रस की रीत को कौन समझ सकता है …..जितना भरते जाओ उतना ही ख़ाली होता जाता है ….या कहें – प्याला भरता ही नही है …न खाली होता है ।
प्रेम का वर्णन सम्भव नही है …कोई नही कर सकता …जो भी करेगा वो अधूरा ही होगा ।
“मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की”
दवा प्रियतम है ….दर्द उठा , हृदय से पुकार उठी …हा प्रियतम ! प्रियतम आगये ….दवा मिल गयी …पर ये क्या दवा ने तो दर्द को और बढ़ा दिया ……उफ़ !
प्रेम की रीत निराली है ……बाबा कहते हैं ।
“प्रेम इतना ही है” ये बात प्रेम में आती ही नही है …और और और …..उसको भर लूँ अपनी बाहों में ….पूरा भर लूँ …अभी भी अधूरा है …..ये मेरे हार आभूषण बाधक हैं …उतार दिया पर नही अभी कंचुकी बाधक है …वो भी उतार दिया अब धड़कती साँसें बाधक हैं अब ये देह भी बाधक है देह को भी छोड़कर प्रियतम को भर लूँ ”मैं” ही न रहूँ
अद्भुत है ये प्रेम रहस्य !
बस बस बस ….इतना समझ लो कि न प्यास प्रेम है , न तृप्ति ही प्रेम है …अनन्त प्यास और अनन्त तृप्ति का नाम प्रेम है …..इसके आगे बाबा कुछ बोल न सके ।
कुँज में आज बधाई है ….श्रीविदेहराज दुलारी श्रीकिशोरी जू का आज प्राकट्य महामहोत्सव है …गौरांगी ने – श्रीरघुनाथ जी के द्वारा श्रीकिशोरी जी को जो प्रेम सन्देश भिजवाया था हनुमान जी के माध्यम से , उन प्रेमपूर्ण चौपाई का आज गान किया ।
“तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा , जानत प्रिया एकु मन मोरा ।
सो मन सदा रहत तोहि पाहीं, जानूँ प्रीति रस इतने ही माहीं ।”
आहा ! भगवान श्रीराघवेंद्र सरकार भी प्रेम का वर्णन नही कर सके ।
प्रेम का अनुभव होता है प्यारी ! मन में , और मन तो तुम्हारे पास है ।
संकोची नाथ श्रीरघुनाथ जी ने इतने में ही सब कुछ कह दिया था ।
Ouch! The nature of love is indescribable, this formula is amazing.
Whoever speaks about love, he will say that it will be incomplete….because love is indescribable.
Dad ! You only speak on this… what should I say on the “indescribable element”! what can I say .
We were praying with our hearts bowing down at the feet of Baba.
Let me say…whatever I am going to say on love will be incomplete…No one can speak completely on love. Baba also sang with joy.
Knowledge does not reveal God.. Knowledge only destroys the ignorance that is within you. ..therefore knowledge works to remove ignorance.
But love! It is strange….to God, he wants to take off his whole heart…not incomplete…love doesn’t want incomplete…he wants complete. Baba says in Bhavatirek. It’s impossible….It’s not possible. God is infinite and unbroken…how can he be brought down completely but…this is the stubbornness of love…(Baba’s tears were flowing while saying this and he was smiling too)….. That’s why love is indescribable…..now what to say about such love?
Look… just as Brahman is said to be indescribable… in the same way love is also indescribable here….. Brahma, where is the matter of the word? Brahman is beyond the senses…. What will you say about love in the same way? Because both love and Brahma are one.
Is love thirsty? No, love is fulfillment….no no, love is a never quenching thirst….so love is the ultimate form of fulfillment….. Satisfaction and thirst are both there. Love. Love is a continuous stream flowing from the heart.
What is the form of Shri Radharani?
Thirst or satisfaction?
Both are there…..sometimes she becomes thirsty, then her thick eyes keep on raining just like a savannah ….Sometimes she becomes a form of fulfillment and becomes engrossed in the beloved seated in her heart. …..these two go together.
“Beloved Zoo is the form of thirst as it is the form”
That’s why it is said that love is indescribable. What would you say about love?
Aali, the way of juice is unique, Do not fill the cup empty.
Baba sings… Is .
It is not possible to describe love.
“Merge increased as did medicine”
The medicine is dearest. Dearest Aayeye …. got the medicine … but what medicine has made the pain worse…… Oops!
The way of love is unique… says Baba.
“Love is this only” This thing doesn’t come in love…and and more…..Let me fill it in my arms….I’ll fill it…Still incomplete….. This is a hindrance to my necklace, jewelery … Removed it but not yet a thorn is a hindrance … Removed that too, now throbbing breath is a hindrance, now this body is also a hindrance, leave the body and fill the beloved, I should not remain only
This love secret is amazing!
Just understand that neither thirst is love, nor fulfillment is love…the name of eternal thirst and eternal gratification is love…..before this Baba could not say anything.
Today is the congratulation in the Kunj …. Today is the grand festival of Shrividehraj Dulari Shrikishori Ju. …
“Tattva love kar mama aru tora, know priya aku man mora. So the mind is always there, I know that love is only for so many months.
Ouch! Even Lord Shri Raghavendra Sarkar could not describe love.
Love is felt dear! In the mind, and the mind is with you.
Shri Raghunath ji, the shy nath, had said everything in this very moment.