हमारा मन हर समय विचार बनाता है, सुख के साधन ढुंढता है। मन एक क्षण के लिए भी ठहरता नहीं है। हम जिस सुख के पीछे दौङ रहे हैं, वह बहुत छोटा क्षणिक सुख है। हमे हमारे मन को, हमारे अन्तर्मन से परिचित कराना है। अन्तर्मन आनंद का सागर है। मन से बात करे मन में कैसे विचार बन रहे हैं। मन कितने समय खुश रहा। मन दुख के अधीन क्यों हो रहा है। मन को खुश कैसे रखा जाऐ।
मन आंनद रस के स्वाद से परिपूर्ण होना चाहता है। हमारा जीवन बीत जाता है मन में शान्ति तृप्ति त्याग की उत्पत्ति नहीं होती है। यह सब हमे बाहर से किसी अन्य के माध्यम से नहीं मिल सकता है। यह हमारे अन्दर है। हम जिस सुख से मन को बहलाना चाहते हैं वह स्थायी सुख नहीं है। कभी आपके साथ ऐसा हुआ आप बहुत अच्छा बाहर भोजन करके आए आप की घुमने की इच्छा थी खुब घुमे फिर आप के मन में कुछ भी और लेने की इच्छा ही नहीं हुई। मन तभी कहता है यह और होता तब कितना अच्छा होता। मन की और और की इच्छा पूर्ण नहीं होती है।
अब प्रश्न उठता है मन तृप्त कैसे हो। मन शांत हो मन प्रेममय हो। हम जो प्राप्त करना चाहते हैं। जिस चीज से हम मन को खुश रखना चाहते हैं। हम मन को स्थायी सुख से परिचित नहीं कराएगे। हमारा जीवन गिरते पङते बीत जाएगा हम यह नहीं समझ सकेंगे कि हमारे पास सब साधन होते हुए भी हम आनंदमय क्यो नहीं है।
हमने अपने मन को अपने अन्तर्मन से जोङना होगा। हमारे दो मन है मन और अन्तर्मन। मन दो विचार करता है अन्तर्मन मे दृढ सकंल शक्ति हैं।अन्तर्मन को पढना अध्यात्मवाद है अन्तर्मन मन को शांत करता है।
आनंद रस में डूबने पर मन बाहर की सैर तो करेंगा फिर वह आनन्द रस को चखना चाहेंगा।अतः अनआनन्द रस संसार के किसी भी पदार्थ में आपको नहीं मिलेगा। आनन्द रस आपके दिल में है। आनन्द रस अमृत है। आप भोजन करने बैठते हैं, भोजन बहुत स्वादिष्ट है आप उसे अपनी भूख के अनुसार ही भोजन करोगे, अधिक खाते ही पेट में अपच हो जाएगी। आनन्द रस को कितने ही समय तक पीओगे डुबते चले जाओगे ।
मन का ऐसा स्वभाव है एक बार कुछ अच्छा लगता है तब उसे वह प्राप्त करने के लिए अथक परिश्रम करता है। मन उस खुशी प्रेम मे डुब जाना चाहता है। मन प्रेम सागर में बह जाना चाहता है। प्रेम आपके ह्दय मे है। आपको अपने अन्तर्मन को जाग्रत करने पर यह सब प्राप्त होगा। अपने मन से यदि आप दो मिनट भी बात करते हो। तब आप अक्षण भर में बडी से बडी समस्याओं का हल ढुढं सकते हो। समस्या बङी नही होती है हम मन से समस्या को बडी बनाते हैं।
बाहर के साधनों और सहारे से समस्या को सुलझाना चाहते हैं। हम यदि कठिन परिस्थितियों में तन मन लगाकर लगन से कार्य करते हैं तब हमारे कदम आगे बढ जाते हैं। भगवान पर विश्वास, अपने पर विश्वास है। आपके अन्दर आत्मा की शक्ति है। हम उसे दिमाग, मस्तिष्क, अन्तर्मन, ऊर्जा, आत्मबल, आत्मविश्वास, परमात्मा, परम तत्व, आत्मा ईश्वर कहते हैं।
हम जितने अपने आत्मविश्वास के नजदीक है, उतने ही हम ऊर्जावान खुश और शान्त है। मनुष्य शरीर की ऐसी रचना है। हम जितनी शारीरिक और मानसिक मेहनत करते हैं हम अन्दर से खुश शान्त होगे। हमारे अन्दर आत्मविश्वास की जागृति होगी क्योंकि जब हम मेहनत करते हैं तब हमारी सांस की किरया गति पकङ लेती है।
हम अच्छा महसूस करते हैं। हम हमारे मन को उस समय अपने अन्तर्मन से जोड़ते हैं। हमारे मन में उठते हुए विवाद शान्त हो जाते हैं और खुश होते हैं। हमे हमारे मन को पढना सीखना होगा। मन को पकड़ कर रखना आना चाहिए। आपका अन्तर्मन इतना मज़बूत हो, मन को चुप रह कह कर, हमें स्थिर करना आ जाए।
हमे अपनी आत्मा की शक्ति को जाग्रत करना होगा। मन को अन्तर्मन की प्रार्थना से जोड़कर रखे। हमारे धर्म शास्त्रों में भगवान राम कृष्ण के द्वारा आत्मा की पहचान बताई हैं। जब हम भगवान राम का आत्म चिन्तन करते हैं तब हम हमारे अन्तर्मन से जुड़ेगे।
प्रार्थना हमारे अन्तर्मन से जुड़ने का सबसे श्रेष्ठ साधन है। प्रार्थना मे अद्भुत शक्ति हैं
हिन्दू संस्कृति में कर्म की प्रधानता का महत्व है।
जय श्री राम अनीता गर्ग