अन्तर्मन मे ईश्वर की खोज

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परम पिता परमात्मा को हम आंखों में बसा ले जिससे कुछ भी करते हुए प्रभु हमारे दिल में बैठे रहे और हम भगवान के नाम धन के अमृत रस का रसपान करते रहे ।भगवान की विनती और स्तुति में जो भाव और आन्नद भरा हुआ है उसकी तुलना ही नहीं है ।

भाव विभोर हो हम परम पिता की प्रार्थना करते रहे और प्रार्थना करते करते हमारे दिल में प्रभु भगवान नाथ के दर्शन की इच्छा तृव हो भगवान से मिलन की तङफ बढ जाए।


श्री राम राम राम हे प्रभु प्राण नाथ ये तङफ भी बहुत अच्छी है। जो अन्तर्मन से प्रभु को निहारती है। भक्त अन्तर्मन से प्रभु प्राण नाथ के भाव मे लीन  हो जाता है तब बाहरी पुजा छुट जाती है। खो जाता है अपने भगवान मे भुल जाता है मै कोन हूँ। तब बाहरी संसार में आंसू बहाता है और कहता है मैने भगवान की पूजा तो की ही नहीं है मै तो थोथा ही हूँ अहो मै कब और कैसे किसी भी तरह से मै भगवान की पूजा कर लु।

अन्तर्मन की पुकार दिन प्रतिदिन और बढ़ती जाती है। फिर एक दिन बाहर से भगवान के भजन गाने लगता है आरती करता है ग्रंथ पढता पर रस की आनंद की उत्पत्ति नहीं होती है तब वह समझ जाता है जो तेरे अन्तर्मन के भाव हीअसली आनंद  है।अन्तर्मन के भाव मे पुरण समर्पण है। अन्तर्मन मे ईश्वर की झांकी करो। जय श्री राम अनीता गर्ग

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