सारे संत महापुरुष एक ही संदेश देते है… वस्तु तेरे भीतर है… सब कुछ तेरे भीतर है… सब कुछ तुझसे है.. तू सर्वाधार है… बाहर तो केवल कंकड़ पत्थर के अलावा कहीं कुछ नहीं है… असली खजाना तो भीतर है… पर जन्म जन्मांतर कि तेरी पुरानी आदत पड़ी हुई है.. बाहर ढूंढने की… नकली को तू असली मानता आया… क्योंकि तेरे पास असली की पहचान नहीं थी… तूने असली साच को जाना नहीं और झूठ को सत्य मानता आया.. तू मोह के वश में आकर नश्वर संसार के पीछे पड़ा रहा.. उसे प्राप्त होने पर तू सुखी हुआ और बिछुड़ने पर दुखी… तूने कभी ये तलाश नहीं की इस सुख दुःख के बीच एक सच्चा शाश्वत सुख भी है.. और वह शाश्वत सुख तेरे भीतर ही है… वह तू स्वयं सुख की खान है.. तू आनंद स्वरूप है.. तुझे न पाप स्पर्श कर सकता है और न ही पुण्य स्पर्श कर सकता है.. तू पाप पुण्य से भी पार है… तू असंग है… तू निरालंब है.. तू निराधार है… पर तू अपनी पहचान खो चुका है.. तूने संसार के साथ अपना झूठा संबंध स्थापित कर.. तू अपने आप को संसार या संसारी मानने लग गया.. तेरे दर्पण में पड़ने वाले चेहरे को सच मान लिया… तूने कभी ये नहीं सोचा कि.. दर्पण के टूटने पर तेरी पहचान भी मिट जाएगी… क्यों तू अपने आपसे अनजान रहा.. अब तो चेत जा, जाग जा, मूर्च्छा को तोड… आंखे खोल … जान ले अपने आप को..!
All the saints and great men give the same message… the thing is within you… everything is within you… everything is from you. .. the real treasure is inside… but after birth that your old habit is lying.. of looking outside… you used to consider the fake as real… because you didn’t have the identity of the real… you were real Not knowing the truth and believing the lie to be truth. There is also a true eternal happiness in the middle.. And that eternal happiness is within you. .. you are beyond sin and virtue… you are inconsistent… you are helpless.. you are baseless. Started considering yourself as world or worldly.. Accepted the face in your mirror as the truth. When the mirror is broken, your identity will also be erased.