भीतर का प्रकाश

हरि ॐ तत् सत् जय सच्चिदानंद

चाहे पूरी पृथ्वी को दीपकों से सजा दो फिर भी तुम्हारे हृदय में रोशनी नहीं होगी
असली रोशनी तो तब होगी जब तुम्हारे हृदय का दीपक जले
कभी तुमने विचार किया के बाहर की जितनी भी रोशनी, प्रकाश है वो किस से प्रकाशित हो रहे हैं?
तुम्हारे आंखों से जो प्रकाश निकल रहा है,उसी के प्रकाश से तो बाहर के सारे प्रकाश प्रकाशित हो रहे हैं।
तुम्हारे भीतर के प्रकाश के बिना तो बाहर जगत में घुप अंधेरा है।
साधो
अंधा धुंध अंधियारा
लेकिन
तुम सोचते हो की
राम चौदह साल के बाद अयोध्या आए थे
इसलिए
दिवाली मनाओगे?
ये बाहर की दिवाली मनाते मनाते तो न जाने कितने दीपक जलाएं
लेकिन
तुम्हारे मन के भीतर का जो ज्ञान का दीपक है। नाम दिपक जलाओ देखो नाम दीपक की लो ज्ञान दीपक की ओर ले जाती है। कर्म उत्सव है कर्म उत्सव बाहर से रगडाई के साथ भीतर के प्रकाश दीपक
असली दीपक तो उस दिन जलेगा जिस दिन तुम्हारे भीतर का ज्ञान दीपक जलेगा
भीतर के ज्ञान दीप जलाने से ही तुम्हारी असली दीवाली मनेगी
बाहर जितना भी भटक लो मार्ग नहीं मिलेगा
बाहर कितना भी धन कमा लो साथ नहीं जाएगा
असली खजाना तो तुम्हारे भीतर छिपा हुआ है
तुम तो पहले से ही मालामाल हो
तुम तो पहले से ही धनवान हो
खोलो अब मन के द्वार
भीतर झांको एक बार
खूब नहा लो अमृत की बरसात में
जिस दिन
इस अमृत को चख लिया उसी दिन तुम्हारा सबसे बड़ा त्योहार है।
वहीं तुम्हारे लिए असली दीवाली है।
अगर समय के रहते अपने भीतर के उस परमात्मा का साक्षात्कार नहीं किया वो तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी हार है।

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