भगवान तुम ही हो

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एक भक्त की जन्म से ही मन में ये इच्छा बन जाती है भगवान की पूजा आरती करनी है भगवान की प्रार्थना मन्दिर में करता है बाल मन होता है मन ही मन भी भगवान को याद करने लगता है। भगवान नाम सिमरन करता है और उसके मन में बैठ जाता है ये भगवान हैं भगवान राम को देखता है बाल मन है कुछ जानता नहीं है। भगवान को निहारने लगता है। घंटो बीत जाते हैं निहारते हुए। ऐसे एक भक्तवव की नींव बनती है।
भगवान को बस ध्याते रहो।भगवान को का चिन्तन मन्न भगवान के भाव का हदय मे बनना दर्श तङफ की जागृति ही समर्पण भाव है। समर्पण भाव का मिनीगं चोला धारण करना घर बार त्यागने से नहीं है। भगवान को दिल मे बिठा कर भी गृहस्थ जीवन के सब कार्य करें। क्योंकि गृहस्थ जीवन में अपनी श्रेष्ठता को महत्व न देकर कर्तव्य कर्म जिम्मेदारी को श्रेष्ठता दी गई है।यही सही मायने में भगवान के बनना है। भगवान को समर्पित कर देना है। हमे भगवान को भजने के लिए चोले को रंगने की आवश्यकता नहीं है ।दिल को भगवान का बनाना है। गृहस्थ जीवन में एकदम से कोई काम कभी नहीं होता है ऐसे ही भगवान की भक्ति भी भक्त धीरे-धीरे मन ही मन करता है। जब हम पुरणतः भगवान् के बन जाएगे तब अन्तर्मन का मै और मेरापन मिट जाएगा। उस समय हम भगवान के बन जाएगे ।भगवान के बनते ही लेनदेन का सब हिसाब भगवान का होगा क्योंकि भक्त उस समय है ही नहीं सबकुछ प्रभु प्राण नाथ ही है।

भगवान को भजते हुए भगवान को नमन और वन्दन करते हुए जितने हम शरीर से गोण होते जाएंगे। हमे सबकुछ करते हुए भी ऐसे लगने लग जाएंगा मै तो हूँ ही नहीं सब कुछ भगवान मय है तब हम कंही भी बैठे हैं अन्तर्मन से प्रभु प्राण नाथ को ध्या रहे हैं।  हम उस समय भगवान मे खोए हुए हैं अन्तर्मन की पुकार जीतनी गहरी होगी खोज  गहरी होगी उतनी ही मै तो कुछ भी नहीं जानती मेरे भगवान बस तेरे नाम को भजती मेरा भगवान मेरा स्वामी ही मुझ में बैठा अपने नाम की धुन सुनाता है। मै तो कबकी मर चुकी हूँ।

हे परमात्मा पृथ्वी जल वायु अग्नि और आकाश तेरे ही बनाएं हुए हैं तब मै तुम से भिन्न कैसे हो सकता हूं मेरे रोम रोम में तुम्हारी ज्योति देदीपयमान है।

जय श्री राम अनीता गर्ग



From the very birth of a devotee, this desire is formed in the mind, worship of God is to be done, the prayer of God is done in the temple. God chants the name and sits in his mind, this is God, sees Lord Rama, has a child’s mind, does not know anything. Looks at God. Hours pass by looking at him. The foundation of such a devotee is formed. Just keep meditating on God. Contemplation of God, the formation of the feeling of God in the heart, the awakening of the vision is the spirit of surrender. Wearing a mini chola of dedication is not about renouncing the house again and again. Do all the work of household life even by keeping God in your heart. Because without giving importance to one’s own superiority in household life, duty has been given priority to responsibility. To be dedicated to God. We do not need to paint the bodice to worship God. The heart has to be made of God. No work is ever done in a household life, in the same way, the devotee also gradually feels the devotion of God. When we become completely of the Lord, then the inner self and my self will disappear. At that time we will become God’s. As soon as God is created, all the accounts of the transaction will be of God because not only the devotee is there at that time, everything is only Lord Pran Nath.

While worshiping God and bowing down to God, the more we will become corporeal from the body. Even after doing everything, we will start feeling like I am not only God, everything is God, then wherever we are sitting, we are meditating on Prabhu Prannath from the innermost heart. We are lost in God at that time, the call of the conscience will be deep to win, the search will be deep, as much as I do not know anything, my God, just worshiping your name. When have I died?

O God, the earth, the water, the air, the fire and the sky have been created by you, then how can I be different from you, your light is resplendent in my hair.

Jai Shri Ram Anita Garg

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