भक्त का भगवान मे वात्सल्यमयी भाव

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भक्त के दिल में प्रेम भाव में वात्सल्य भाव है। भक्त भगवान को ऐसे समेट लेना चाहता है कि जैसे एक मां अपने छोटे शिशु को आंचल में छुपा कर रखती है।

वात्सल्य भाव बाहरी पुजा का पार्ट नहीं है। भक्त भगवान को भाव से कभी अंजली में बिठाकर झुलाता है। तो कभी सर्दी के मौसम में भगवान से प्रार्थना करता है कि हे प्रभु हे दीनदयाल हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ आज सर्दी बहुत है आज तुम इस दिल में विश्राम कर लो।

हे मेरे भगवान् नाथ मेरे पास ये दिल रुपी आसन हैं। और कुछ नहीं है। भक्त भोजन पका रहा है भाव विभोर हो कभी निहारती कभी वन्दन करती और कहती हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ एक तो ये दिल मेरे बस का नहीं रहा ऐसे में मेरे स्वामी भगवान् नाथ तुम्हें भुख भी लगी होगी मेरे प्रभु मै तुम्हे कैसे भोजन कराऊ मुझे सब में तुम ही दिखाई देते हो। और कभी सोचती अहो भगवान कभी रात को आकर कहे माई मै भुखा हूँ और भाव में भगवान के लिए एक रोटी बनाकर रख देती। भगवान फिर रोटी पर घी लगाते हुए कहते कि देख तेरी रोटी में भी मैं हूँ और चम्मच में भी मैं ही हूँ। जब प्रभु आ जाते हैं तब आनंद प्रकट हो जाता है। शब्द गोण हो जाते हैं।

भगवान के वात्सल्य भाव में भक्त जब गहरी डुबकी लगाता है तब कई बार ऐसा लगता है जैसे भगवान आए हैं भगवान के भाव मे छोटा सा ग्रास तोड़ता है उसको प्रेम भाव से नरम और मुलायम करता है फिर ग्रास को प्रेम की सब्जी में डुबोकर भगवान से मौन विनती करते हुए खाता है

0 प्रार्थना करता है मेरे प्रभु दीनानाथ ये दासी तुम्हें भोग लगाती है भोग को ग्रहण करो नाथ भक्त के दील में प्रेम उमङ रहा है भगवान को अन्तर्मन से भोग की विनती करते हुए कब भोजन कर लेता है। भक्त को कई बार गहरे भाव में ऐसे महसूस होता है ये मै नहीं हूं ये मेरे हृदयेश्वर भोग धारण कर रहे हैं भक्त ध्यानावस्था मे चला जाता है जय श्री राम अनीता गर्ग

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